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55 वर्षीय ज्योति रात्रे अंटार्कटिका जाएंगी, माउंट विंसन पर जाने वाली MP की पहली महिला होंगी; -30° से -60° टेंप्रेचर बनेगा चुनौती

भोपाल

55 वर्षीय ज्योति रात्रे, जिन्होंने इस साल 19 मई 2024 को माउंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त की थी। वह अब अपनी अगली चुनौती के लिए तैयार हैं। वह 14 दिसंबर को अंटार्कटिका के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट विन्सन, जिसकी ऊंचाई (4892 मीटर) को फतह करने रवाना होंगी।

यह उनकी “7 समिट्स मिशन” की छठी चोटी होगी। ज्योति रात्रे माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली सबसे उम्र दराज भारतीय महिला हैं। इस अभियान के तहत वह 15 दिसंबर को चिली के पंटो अरेना पहुंचेंगी और 18 दिसंबर को यूनियन ग्लेशियर के लिए प्रस्थान करेंगी। उनका यह अभियान 12 दिनों तक चलेगा, उनका लक्ष्य 7 महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को फ़तह करना है।

बता दें कि ज्योति माउंट विन्सन पर जाने वाली मध्य प्रदेश से पहली महिला हैं, ज्योति 15 दिसंबर को चिली के पंटो अरेना पहुंचेंगी और वहां से 18 दिसंबर को यूनियन ग्लेशियर की ओर प्रस्थान करेंगी।

भीषण मौसम सबसे बड़ी चुनौती ज्योती रात्रे ने बताया अंटार्कटिका के लिए बहुत सारे चैलेंज हैं, सबको लगता है कि एवरेस्ट हो गया तो सब हो जाएगा, पर ऐसा होता नहीं है। अंटार्कटिका के दो सबसे बड़े चैलेंज यह है कि एक तो इस वक्त वहां 24 घंटे दिन यानी रोशनी होगी। दूसरा वहां का मौसम जो कि -30 से -60 तक चला जाता है।

कोई भरोसा नहीं होता है कि कभी भी आंधी आ सकती है, कभी भी स्नो फॉल हो सकता है। कई बार टेम्परेचर माइनस में होता है लेकिन अगर बेहद तेज धूप है तो आप उसको सहन कर सकते हैं। वहीं अगर मौसम भी खराब हो और टेम्परेचर भी डाउन हो तो फिर बहुत मुश्किलें होती हैं। यहां बर्फीली आंधियां व तूफ़ान पर्वतारोहियों की परीक्षा लेते हैं।

इस मौसम में शरीर को गर्म और सुरक्षित रखना किसी जंग से कम नहीं होता।

ऐसे कर रहीं प्रैक्टिस अंटार्कटिका जाने की अपनी तैयारी को लेकर उन्होंने बताया- वहां पर हमें अपना पूरा सामान स्लेश से खींचना है। उसकी प्रैक्टिस के लिए मैंने एक जुगाड़ निकाला है। मैं टायर में पत्थर रख कर उसका वजन करीब 15-20 किलो करके मनुआभान टेकरी पर प्रैक्टिस कर रही हूं। एक दिन छोड़कर 2-3 राउंड मैं लगा रही हूं।

अंटार्कटिका में हमें टेंट और खाना लेकर लगभग 30-35 किलो का सामान लेकर चलना है। लेकिन मैं अभी फिलहाल 15-20 किलो के सामान के साथ ही प्रैक्टिस कर रही हूं। सड़क पर होने के कारण 15-20 किलो भारी हो रहा है लेकिन वहां बर्फ पर मुझे लगता है कि थोड़ा आसान रहेगा।

यहां यह भी चुनौती एवरेस्ट पर तो हमारे साथ शेरपा होते हैं लेकिन यहां बस जिस कंपनी के द्वारा हम जाते हैं, उनका गाइड होता है। जो अक्सर रास्ता दिखाने का काम करता है। वहां ऑक्सीजन नहीं लगती है, फिर भी अगर किसी क्लाइंबर को जरुरत महसूस होती है तो वह ऑक्सीजन लगा लेता है। 90% मामलों में हम बिना ऑक्सीजन के माउंट विंसन फतेह कर लेते हैं।

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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