RO.No. 13047/ 78
राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

हमास – इजरायल युद्ध में क्रिप्टोकरेंसी बन रहा मुख्य हथियार

नई दिल्ली

Israel-Hamas War: इजरायल और हमास के बीच चल रही जंग सिर्फ गोले-बारूद से ही नहीं लड़ी जा रही है. बल्कि इसमें मोबाइल फोन कैमरा और इंटरनेट का भी खूब इस्तेमाल किया जा रहा है. इनका इस्तेमाल दुनियाभर में इस युद्ध के वीडियो को फैलाने के लिए हो रहा है. हमास इस युद्ध में रॉकेट, ड्रोन और पैराग्लाइडर्स जैसी मॉडर्न टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहा है. 

इन सब के बीच एक सवाल कई बार आता है कि इस तरह के समूहों के पास पैसे कहां से आते हैं. दुनियाभर में कई संगठन इन समूहों की मदद करते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में इन लोगों तक वित्तीय मदद डिजिटल रूप में पहुंच रही है. हम बात कर रहे हैं क्रिप्टोकरेंसी की, जो एक डिसेंट्रलाइज्ड करेंसी है. 

Cryptocurrency में इकट्ठा होते हैं पैसे

डिसेंट्रलाइज्ड करेंसी की मॉनिटरिंग हमेशा से ग्लोबल फाइनेंस सिस्टम के लिए चुनौती रही है. यही वजह है कि कई देश इसे मान्यता नहीं दे रहे हैं. ब्लैक मार्केट में कई बार क्रिप्टो के इस्तेमाल की जानकारी मिलती रही है, लेकिन इसका इस्तेमाल आतंकी समूहों को आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए भी किया जाता है.

अगस्त 2020 में अमेरिकी सरकार ने लाखों डॉलर्स की क्रिप्टोकरेंसी को आतंकी संगठनों से सीज किया था. ये आतंकी संगठन पैसे इकट्ठा करने के लिए क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल कर रहे थे.

 

Elliptic का कहना है कि जून 2021 से अगस्त 2023 के बीच फिलिस्तीन इस्लामिक जिहाद नाम के एक आतंकी संगठन ने लगभग 9.3 करोड़ डॉलर क्रिप्टोकरेंसी के रूप में इकट्ठा किए हैं. इस संगठन ने ही इजरायल में आम लोगों को होस्टेज बनाया है. हमास ने खुद 4.1 करोड़ डॉलर डिजिटल पेमेंट की मदद से इकट्ठा किए हैं. 

Elliptic क्रिप्टो बिजनेसेस को फाइनेंस रेगुलेशन में मदद करती है. हालांकि, इस बात की जानकारी नहीं है कि इन पैसों को किस तरह से यूज किया गया है. साल 2022 में अमेरिकी अथॉरिटीज ने हमास के इन्वेस्टमेंट ऑफिस को मंजूरी दी थी, तब उन्होंने बताया कि उनके पास 50 करोड़ डॉलर का असेट है. 

क्यों होता है क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल? 

क्रिप्टोकरेंसी कई बार विवादों में रही है. इसकी कई वजहें हैं. कभी इनकी स्टेबिलिटी को लेकर, तो कभी इनके यूज को लेकर. ये एक डिसेंट्रलाइज्ड करेंसी होती है. यानी इस तरह की करेंसी का कोई केंद्र नहीं होता है. आम भाषा में समझें, तो हम जिसे रुपये का इस्तेमाल करते हैं, इसके RBI कंट्रोल करता है. 

कितनी नोट छपी हैं, इनकी वैल्यू, लेन-देन इन सब का ब्योरा आरबीआई के पास होता है. वहीं डिसेंट्रलाइज्ड करेंसी इसका उल्टा है. इसे कोई सरकार, बैंक या संस्था अकेले नियंत्रित नहीं कर सकती है. इसमें ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का यूज किया जाता है.

 

इसका लेन देने सीक्रेट और सिक्योर होता है. यही वजह है कि इस करेंसी को कहां यूज किया गया है इसका पता नहीं लगाना मुश्किल हो जाता है. इसका फायदा ही आतंकी संगठनों को मिलता है. 

क्रिप्टोकरेंसी का कैसे होता है इस्तेमाल? 

हमास से जुड़े मिलिट्री विंग अल-क़सम ब्रिगेड ने साल 2019 में लोगों से बिटकॉयन डोनेशन मांगा था. इस तरह के ग्रुप्स कई दूसरी करेंसी से भी जुड़े हुए हैं, जिसमें Dogecoin, Tether और USDC तक शामिल हैं. इस तरह के सगंठन पब्लिक मार्केट से ट्रेडिशनल फाइनेंस ऐसेट को आसानी से नहीं खरीद सकते हैं, लेकिन वे स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स का फायदा जरूर उठा सकते हैं. 

Elliptic की मानें तो कुछ ग्रुप्स को क्रिप्टो माइनिंग में भी पाया गया है, जिसकी वजह से उन्हें क्रिप्टोकरेंसी नेटवर्क के मेंटेनेंस से भी फायदा मिलता है. आतंकी संगठनों को क्रिप्टोकरेंसी यूज करने से रोकने के लिए अमेरिका और इजरायल एक साथ काम कर रहे हैं.

 

उन्होंने Binance जैसे क्रिप्टो एक्सचेंज से आतंकी ग्रुप्स से जुड़े आकाउंट्स के एक्सेस को ब्लॉक करने की मांग की है. इसके लिए फाइनेंस ऐक्शन टास्क फोर्स (FATF) का गठन भी किया गया है, जिसका काम मनी लांड्रिंग को रोकना है.

पिछले साल इजरायल मनी लांड्रिंग एंड टेरर फाइनेंसिंग प्रोहिबिशन अथॉरिटी की पूर्व प्रमुख श्लोमिट वैगमैन ने लिखा था कि क्रिप्टो टेक्नोलॉजी विकसित कर रही कंपनियों को लनी लांड्रिंग और टेरर फंडिंग को रोकने पर काम करना चाहिए. उन्होंने कहा था कि जब तक क्रिप्टोकरेंसी के गलत इस्तेमाल के खतरों को रोका नहीं जाएगा, इंडस्ट्री पर इसका असर पड़ता रहेगा. 

UN की रिपोर्ट में भी हुआ था जिक्र 

पिछले साल आई UN की रिपोर्ट में भी ऐसे ही कुछ तथ्यों का खुलासा किया गया था. UN ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि नॉर्थ कोरिया परमाणु प्रोग्राम और मिसाइलों की टेस्टिंग के लिए पैसे जुटाने में क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल करता है. रिपोर्ट की मानें तो क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज पर साइबर अटैक के जरिए पैसे इकट्ठा किए जाते हैं. 

 

अपनी रिपोर्ट में UN ने बताया था कि क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज और वित्तीय संस्थाओं पर साइबर हमला करके पैसे इकट्ठा करना नॉर्थ कोरिया की आय का सबसे बड़ा स्रोत है. साल 2020 से 2021 के बीच नॉर्थ कोरिया ने 5 करोड़ डॉलर से अधिर की रकम साइबर अटैक के जरिए चुराई है. 

भारत से भी चुराई गई है क्रिप्टोकरेंसी 

क्रिप्टोकरेंसी से पैसे जुटाए ही नहीं चुराए भी जा रहे हैं. साल 2022 में दिल्ली में एक शख्स के क्रिप्टो वॉलेट से क्रिप्टोकरेंसी चोरी हुई थी. दिल्ली पुलिस की जांच कहती है कि चोरी की गई क्रिप्टोकरेंसी को हमास से जुड़े आतंकियों को भेजा गया था. साल 2022 में एक शख्स के अकाउंट से 30 लाख रुपये की रकम वाली Bitcoin, Ethereum और दूसरी करेंसी को चोरी किया गया था. 

जांच में पता चला था कि इस वॉलेट से जुड़े ज्यादातर पैसों को अल-क़सम ब्रिगेड से जुड़े अकाउंट्स में ट्रांसफर किया गया है. इसका ज्यादातर हिस्सा मिस्र और फिलिस्तीन से जुड़े अकाउंट्स में ट्रांसफर किया गया है. हालांकि, इन सभी अकाउंट्स को इजरायल ने सीज कर दिया था.

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

RO.No. 13047/ 78

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button