राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

रैगिंग की वजह से बदनाम एमपी, देशभर में तीसरे नंबर पर, UGC रिपोर्ट ने खोला पोल

भोपाल 

 एतिहासिक धरोहर और संस्कृति वाला राज्य मध्य प्रदेश लगातार तीन सालों से रैगिंग के मामले में दूसरे स्थान पर बना हुआ है. ना मुंबई ना दिल्ली ना बैंगलोर बल्कि भारत के इस दूसरे सबसे बड़े राज्य मध्य प्रदेश में रैंगिग के मामलों में कोई कमी दर्ज नहीं की गई है. वर्तमान में यहां औसतन हर चौथे दिन रैगिंग की एक शिकायत यूजीसी की एंटी रैगिंग हेल्पलाइन पर दर्ज हुई है. इस मामले में मेडिकल कॉलेज जबलपुर, बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी भोपाल जैसे प्रतिष्ठित संस्थाओं का नाम शामिल है. 

रैगिंग के मामलों में इन राज्यों को पीछे किया एमपी
अगर आप ये सोच रहे कि पूरे देश में रैगिंग के मामले में कौन सा राज्य नंबर वन है तो इसका जवाब है उत्तर प्रदेश. यूपी की यूनिवर्सिटी रैगिंग के मामले में नंबर वन है वहीं मध्य प्रदेश लगातार दूसरे नंबर पर टिका हुआ है. इस लिस्ट में बिहार, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के संस्थानों के भी नाम शामिल है. 

रैगिंग के मामले भोपाल, रतलाम समेत प्रदेश के कई तकनीकी कॉलेजों से आ रहे हैं। कई बार विद्यार्थियों के आगे आने पर रैगिंग सामने आती है। कई बार कॉलेजों में ही दबा दिया जाता है, लेकिन यूजीसी हेल्पलाइन के आंकड़ों ने स्थिति बयां कर दी है।

रैगिंग के मामलों में मध्यप्रदेश देश में तीसरे स्थान पर है। राष्ट्रीय एंटीरैगिंग हेल्पलाइन पर दर्ज शिकायतों के मुताबिक सितंबर तक देश से 510 शिकायतें दर्ज हुईं। इनमें 140 शिकायतों के साथ उत्तरप्रदेश पहले नंबर पर है। 84 शिकायतों के साथ बिहार दूसरे और 82 शिकायतों के साथ मध्यप्रदेश तीसरे नंबर पर है। मप्र में 13 शिकायतें अकेले सितंबर में ही आईं हैं।

एमपी के किन संस्थानों ने रैगिंग के ज्यादा मामले
1 जनवरी 2025 से अब तक पूरे देश से रैगिंग के 789 शिकायत दर्ज हुई है. इसमें यूपी से 124 मध्य प्रदेश में 81, बिहार में 79, पश्चिम बंगाल में 66 और महाराष्ट्र में 49. वहीं मध्य प्रदेश के इन टॉप 5 संस्थाओं से रैगिंग केस ज्यादा सामने आए हैं. इनमें मेडिकल कॉलेज जबलपुर में 23, आरजीपीवी भोपाल में 14, बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी भोपाल4, खुशीलाल आयुर्वेद कॉलेज 3 और NLIU से 2 केस शामिल है. 

एमपी के संस्थानों में रैगिंग पर लगाम कब
कॉलेज रैगिंग के अंतर्गत जारी हुए आंकड़े साफ तौर पर यूनिवर्सिटी और कॉलेजों की लापरवाही को उजागर करते हैं. यूनिवर्सिटी प्रबंधक की ओर से हर बार इस दिशा में कार्य करने की बात कही जाती है लेकिन साल दर साल बढ़ते आंकड़े प्रबंधकों के दावों की पोल खोलती नजर आ रही है. एक दशक पहले के सर्वे को गौर से देखा जाए तो 10 साल पहले भी एमपी रैगिंग के मामले में टॉप 5 राज्यों में शमिल था. अब सवाल ये है कि आखिर कब तक कॉलेज स्टूडेंट रैगिंग का शिकार होते रहेंगे..आखिर कब तक वे ये प्रताड़ना झेलते रहेंगे और कब तक कॉलेज प्रबंधक अपने दावों पर अमल करेंगे. 

सितंबर में मप्र में दर्ज प्रमुख घटनाएं

– 1 सितंबर: खुशीलाल शर्मा आयुर्वेद कॉलेज, भोपाल में जूनियर से दूसरी बार मारपीट।

– 3 सितंबर: एम्स भोपाल में जूनियर छात्र से दुर्व्यवहार।

– 3 सितंबर: जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में झगड़ा।

– 4 सितंबर: जेपी यूनिवर्सिटी ऑफ इंजीनियरिंग में विवाद।

– 5 सितंबर: राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विवि में सीनियर छात्राओं ने किया दुर्व्यवहार।

– 8 सितंबर: जीवाजी विवि ग्वालियर में जूनियर से रैगिंग।

– 8 सितंबर: पीपुल्स मेडिकल यूनिवर्सिटी भोपाल में जूनियर से दुर्व्यवहार किय गया।

– 9 सितंबर: एनएलआइयू भोपाल में जूनियर को मेंडोरा ले जाकर पीटा।

– 9 सितंबर: श्रीराम इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जबलपुर में जूनियर से विवाद।

– 10 सितंबर: आरजीपीवी भोपाल, छात्रों से दुर्व्यवहार।

– 11 सितंबर: केंद्रीय विवि सागर में छात्रों से मारपीट।

– 15-16 सितंबर: आरजीपीवी में दो बार नकाबपोश सीनियरों ने जूनियर से मारपीट की।

कागजों में ही सख्ती

राज्य सरकार और विवि प्रशासन ने एंटी-रैगिंग कमेटी व हेल्पलाइन जैसी व्यवस्थाएं बना रखी हैं। इसके बाद भी शिकायतों से साफ है कि जमीन पर सब ठीक नहीं। विशेषज्ञों का कहना है, कॉलेजों में कागज पर सब पुता है, लेकिन हकीकत में जूनियर-सीनियर की निगरानी की व्यवस्था लचर है।

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button