अखिलेश यादव के जिस पीडीए फार्मूले को भाजपा नेताओं ने बहुत महत्व नहीं दिया था, सपा के लिए वही सबसे बड़ा हथियार बना
लखनऊ
अखिलेश यादव के जिस पीडीए फार्मूले को भाजपा नेताओं ने बहुत महत्व नहीं दिया था, समाजवादी पार्टी के लिए वही सबसे बड़ा हथियार बनता गया और जातीय समीकरणों को अपनी साइकिल लेकर सपा सरपट दौड़ पड़ी। संसदीय चुनावों में समाजवादी पार्टी का यह अब तक सबसे अच्छा प्रदर्शन है। उसे अब तक का सर्वाधिक 33 प्रतिशत से अधिक वोट मिले हैं। यह चुनाव अखिलेश के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि इस बार सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव नहीं थे। उनके बगैर सपा ने यह चुनाव लड़ा।
भाजपा के कई दिग्गजोंं पर भारी पड़े सपा प्रत्याशी
इसके अलावा वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा व कांग्रेस का गठबंधन हुआ था और यह गठबंधन कोई कमाल नहीं दिखा सका था। इसके बावजूद अखिलेश ने इस बार के लोकसभा चुनाव में फिर कांग्रेस का साथ लिया और इस बार वे भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बन गए। भाजपा के कई दिग्गजों पर इस बार सपा के प्रत्याशी भारी पड़ गए। सपा के इस प्रदर्शन ने विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए को बड़ी संजीवनी दी है। सपा मुखिया ने इस चुनाव में पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) का जो मूल मंत्र दिया था, उसने बड़ा काम किया है। चुनाव परिणाम यह बता रहे हैं कि सपा व कांग्रेस ने बसपा के वोटबैंक में बड़ी सेंधमारी की है। पार्टी 34 सीटों पर आगे चल रही है, उसे 33.02 प्रतिशत वोट मिले हैं। वर्ष 2004 में उसे सबसे अधिक 35 सीटें मिली थीं उस समय भी उसे मात्र 26.74 प्रतिशत ही मत मिले थे। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भी उसे 32 प्रतशित वोट मिले थे, इस बार उससे भी अधिक मत मिले हैं।
गैर यादव पिछड़ी जातियों व दलितों पर फोकस
अखिलेश यादव ने इस बार अपने मूल मतदाता एमवाई (मुस्लिम-यादव) को आधार बनाए रखने के साथ ही गैर-यादव ओबीसी व दलित वोट बैंक पर खास फोकस किया। सपा ने इस बार 62 सीटों में से यादव बिरादरी के केवल पांच उम्मीदवारों को टिकट दिया था। यह सभी मुलायम सिंह यादव परिवार के हैं। 2019 में 10 व 2014 में 12 यादवों को टिकट दिया गया था।
सपा ने इस बार सर्वाधिक 10 टिकट कुर्मी व पटेल बिरादरी को दिए जिसका उसे लाभ भी मिला। सपा ने इस बार दलित 17 प्रत्याशी उतारे हैं। मेरठ व अयोध्या सामान्य सीट पर भी दलित कार्ड खेलकर भाजपा को खूब छकाया। पार्टी ने इस बार केवल चार मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया और चुनाव में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण न हो जाए इसलिए मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर हिंदू उम्मीदवार उतारे। गैर यादव पिछड़ी जातियों में इस बार सपा ने निषाद व बिंद समाज के भी तीन प्रत्याशियों को टिकट दिया था।
मुलायम परिवार के पांच में से चार जीते
इस चुनाव में मुलायम परिवार के पांच लोग चुनाव लड़ रहे थे, इनमें से चार ने जीत हासिल कर ली है। नेताजी की राजनीतिक विरासत संभाल रहीं उनकी बहू व अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव मैनपुरी से दूसरी बार चुनाव जीती हैं। उन्होंने मुलायम के निधन पर हुए उपचुनाव में भी भाजपा को हराया था। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कन्नौज से भाजपा के सुब्रत पाठक को हराकर पत्नी डिंपल यादव की हार का बदला ले लिया है। वर्ष 2019 के चुनाव में डिंपल यहां से हार गईं थीं। अखिलेश के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव ने आजमगढ़ से भाजपा के दिनेश लाल निरहुआ को हरा दिया है। अक्षय यादव ने फिरोजाबाद से चुनाव जीत लिया है। वे भी पिछले चुनाव में हार गए थे। सपा के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव बदायूं से चुनाव हार गए हैं।