RO.NO.12879/162
राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में नोटा को मिले वोटों ने बढ़ाई राजनैतिक दलों की चिंता

भोपाल
 नोटा (इनमें से कोई नहीं) के इंदौर में अपवाद वाले प्रदर्शन को छोड़ दें तो भी कुछ आदिवासी बहुल सीटों पर नोटा को मिले वोट भाजपा-कांग्रेस की चिंता बढ़ा सकते हैं। अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए सुरक्षित सभी छह सीटों पर अन्य सीटों की तुलना में अधिक वोट हुआ है।

जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन समेत अन्य संगठनों ने प्रत्याशी पसंद न आने पर नोटा में वोट करने के लिए कहा था। वहीं, भाजपा और कांग्रेस के नेता आदिवासी बहुल क्षेत्रों में मतदाताओं को वोट का महत्व समझाने में नाकाम रहे।

भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों ने आदिवासी बहुल क्षेत्रों पर फोकस किया था क्योंकि सुरक्षित छह सीटों के अलावा छिंदवाड़ा, सतना, बालाघाट समेत अन्य क्षेत्रों में ये परिणाम को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।

इंदौर में कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने आखिरी दिन नाम वापस ले लिया था। इससे कांग्रेस चुनावी लड़ाई से बाहर हो गई। कांग्रेस ने किसी को समर्थन न देते हुए नोटा को वोट देने की अपील की थी। इंदौर में नोटा को 2,18,674 वोट मिले हैं।

वहीं, अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए सुरक्षित सीट रतलाम को देखें तो वहां 31,735 वोट नोटा मिले। वह चौथे स्थान पर रहा। इसी तरह धार में भी नोटा को 15,651, खरगोन में 18,257, मंडला में 18,921, बैतूल में 20,322 और शहडोल में 19,361 वोट मिले यानी महाकोशल, विंध्य हो या फिर मालवा-निमाड़ अंचल सभी जगह आदिवासियों ने भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशियों को छोड़कर नोटा को चुना।

बालाघाट में 11,510, छिंदवाड़ा में 9093, सतना में 2,553 और सीधी में 4,216 मतदाताओं ने नोटा में वोट दिया। नोटा के बढ़ते प्रभाव को प्रत्याशियों और पार्टियों के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता है।

समाज को तोड़ने वाले तत्व नोटा को बढ़ावा देते हैं

भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल का कहना है कि नोटा लोकतंत्र में चुनाव के मूल विचारों के विपरीत है। उपलब्ध में बेहतर को चुनकर जनप्रतिनिधि के रूप में भेजना ही स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है। समाज को तोड़ने वाले और देश को कमजोर करने वाले तत्व नोटा को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं।

भाजपा की सर्वव्यापी योजनाओं ने जीवन में बदलाव लाया है। यही कारण है कि पार्टी सभी 29 सीटें जीती हैं। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पार्टी लगातार जागरुकता के काम कर रही है और इसे और बढ़ाया जाएगा।

वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के मीडिया सलाहकार केके मिश्रा का कहना है कि आदिवासी बहुल क्षेत्रों में नोटा का बढ़ना वाकई चिंता का विषय है। हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि आदिवासी मतदाताओं में यह प्रवृत्ति क्यों हो रही है। सभी दलों को इस पर गहन चिंतन करना चाहिए।

Dinesh Purwar

Editor, Pramodan News

RO.NO.12879/162

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button