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राजनीति

बीजू जनता दल और नवीन पटनायक की हार के बाद उनके सबसे करीबी सहयोगी और पूर्व IAS अधिकारी वीके पांडियन लापता

भुवनेश्वर
ओडिशा में लोकसभा और विधान सभा चुनावों में बीजू जनता दल (बीजद) और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की हार के बाद उनके सबसे करीबी सहयोगी और पूर्व IAS अधिकारी वीके पांडियन लापता हो गए हैं। उन्हें इस हार के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। TOI की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चुनाव नतीजों के बाद से पांडियन सार्वजनिक तौर पर कहीं नहीं दिखे हैं। जब निवर्तमान मुख्यमंत्री नवीन पटनायक इस्तीफा देने राजभवन गए, तब भी पांडियन उनके साथ नहीं थे। इतना ही नहीं, जब बुधवार को नवीन पटनायक ने नवीन निवास में बीजद के  नवनिर्वाचित 51 विधायकों के साथ बैठक की, तब वहां से भी पांडियन नदारद थे, जबकि वह चौबीसों घंटे नवीन पटनायक के साथ साए की तरह रहते रहे हैं। पांडियन के इस तरह गायब होने पर अब बीजद के अंदर ही सवाल उठने लगे हैं। साथ ही हार का ठीकरा उसके सिर पर फोड़ने पर भी सवाल उठाए जाने लगे हैं।

बीजू जनता दल की पूर्व विधायक सौम्य रंजन पटनायक ने कहा कि ओडिशा के निवर्तमान मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को अपने करीबी सहयोगी वी के पांडियन पर दोष मढ़कर राज्य में हार की जिम्मेदारी लेने से बचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नवीन बाबू को हार की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और ओडिशा के लोगों के लिए काम करना चाहिए और एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए। बीजद की हार में पांडियन की भूमिका पर सौम्य रंजन ने कहा, ‘‘वी के पांडियन कौन हैं और वह हेलीकॉप्टर में राज्य के विभिन्न हिस्सों का दौरा कैसे कर रहे थे? उन्हें पूर्ण शक्ति किसने दी?’’ रंजन ने कहा, ‘‘वह मुख्यमंत्री ही थे, जिन्होंने उन्हें ऐसा करने की उन्हें अनुमति दी थी।’’

बता दें कि भाजपा ने ओडिशा में 147 विधानसभा सीट में से 78 सीट जीतकर सत्ता पर कब्जा जमा लिया है, जबकि बीजद केवल 51 सीट ही जीत सकी है। कांग्रेस ने 14 सीट और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने एक सीट जीती है, जबकि तीन निर्दलीय उम्मीदवार भी विजयी हुए हैं। लोकसभा चुनावों में भी बीजद की करारी हार हुई है। पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी है। इस तरह राज्य में पिछले 24 साल से चल रहे नवीन पटनायक का शासन खत्म हो गया है।

वर्ष 1997 में अपने पिता एवं बीजद के संस्थापक बीजू पटनायक के निधन के बाद राजनीति में प्रवेश करने के बाद ओडिशा की राजनीति में एकछत्र राज करने वाले नवीन पटनायक के लिए यह सुखद अंत नहीं रहा। हालिया विधानसभा चुनाव में अपनी पारंपरिक हिंजिली निर्वाचन क्षेत्र के साथ ही कांटाबांजी विधानसभा सीट से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2019 के चुनाव में उन्होंने हिंजिली सीट 60,160 वोटों के अंतर से जीती, जबकि 2014 में उन्होंने 76,586 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी।

पांच बार मुख्यमंत्री का पदभार संभाल चुके और छठी बार पदभार संभालने की आकांक्षा लिए पटनायक भारतीय राजनीति में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का इतिहास बनाने वाले से सिक्किम के पवन कुमार चामलिंग का रिकॉर्ड तोड़ने से चूक गये। वीके पांडियन के उत्तराधिकारी होने के सवाल पर कुछ दिनों पहले नवीन पटनायक ने कहा था कि वह उनके उत्तराधिकारी नहीं हैं। पटनायक ने ये भी साफ किया था कि ओडिशा की जनता ही उनके उत्तराधिकारी का चुनाव करेगी। 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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