आम आदमी पार्टी को सुप्रीम कोर्ट ने दी 2 महीने की मोहलत
नई दिल्ली
आम आदमी पार्टी को सुप्रीम कोर्ट से एक बड़ी राहत मिली है। सर्वोच्च अदालत ने राउज एवेन्यू स्थित पार्टी दफ्तर को खाली करने की तय तारीख बढ़ा दी है। 'आप' को अब करीब दो महीने का अतिरिक्त समय मिल गया है। सुप्रीम कोर्ट ने दफ्तर खाली करने के लिए 10 अगस्त की समय सीमा तय कर दी है। साथ ही यह भी साफ कर दिया कि यह अंतिम मौका है।
सुप्रीम कोर्ट ने 'आप' को यह राहत उसकी उस याचिका पर सुनवाई के बाद दी जिसमें पार्टी ने पूर्व निर्धारित समय सीमा में वृद्धि की मांग की थी। 4 मार्च को कोर्ट ने 15 जून तक दफ्तर खाली करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने 'आप' से कहा कि यह अंतिम बार मौका दिया जा रहा है और यह शपथ पत्र दिया जाए कि संपत्ति को 10 अगस्त तक हैंडओवर कर दिया जाएगा।
जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की अवकाशकालीन बेंच ने आम आदमी पार्टी की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलों को स्वीकार कर लिया और समय सीमा 10 अगस्त तक बढ़ाने का आदेश दिया। बेंच ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा, 'तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए अंतिम मौके के रूप में हम 4 मार्च के आदेश में दिए गए समय को विस्तार दे रहे हैं।' कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता (आप) को एक सप्ताह के भीतर कोर्ट की रजिस्ट्री को लिखकर देना है कि वे 10 अगस्त तक शांतिपूर्वक जमीन हैंडओवर कर देंगे।
गौरतलब है कि यह परिसर दिल्ली हाई कोर्ट को आवंटित किया गया है जहां जिला अदालतों के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास करना प्रस्तावित है। कोर्ट को यह जमीन 2020 में आवंटित की गई थी। वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि 10 अगस्त तक मोहलत मांगी जा रही है क्योंकि दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में केंद्र सरकार को आम आदमी पार्टी की अपील पर वैकल्पिक दफ्तर के लिए छह सप्ताह में स्थान देने को कहा है। बेंच ने यह बी कहा कि परिसर को 2020 में ही दिल्ली हाई कोर्ट को आवंटित किया गया था और आवदेक के कब्जे की वजह से इमारत की निर्माण लागत बढ़ गई है। दिल्ली हाई कोर्ट की तरफ से पेश हुए वकील के परमेश्वर ने कहा कि 4 साल बाद भी एचसी को कब्जा नहीं मिला है।
परमेश्वर ने कहा, 'आवदेक और केंद्र के बीच खींचतान चलती रहेगी। क्योंकि उन्होंने राजधानी के केंद्रीय इलाके में जमीन मांगी है। हम नहीं चाहते कि इस वजह से देर हो। हम कोर्ट रूम्स की कमी के कारण गंभीर संकट में हैं। हम न्यायिक अधिकारियों के लिए जगह किराए पर लेने के लिए मजबूर हैं।'