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सड़क हादसे में मौत पर 1.98 करोड़ का मुआवजा, कोर्ट का ये फैसला बनेगा नजीर

नई दिल्‍ली:

साल 2016 में एक नाबालिग द्वारा एक्‍सीडेंट करने के मामले में हाल ही में आया दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण का निर्देश पुणे पोर्श हिट एंड रन जैसे मामलों के लिए नजीर है. न्यायाधिकरण ने लगभग 8 साल बाद मृत व्यक्ति के परिवार को 1.98 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करने का निर्देश दिया है. बता दें कि पोर्श कार एक्‍सीडेंट मामले में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने दुर्घटना के दिन ही नाबालिग को जमानत दे दी थी और उसे अपने माता-पिता और दादा के पास रहने का आदेश दिया था. साथ ही नाबालिग से सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने को कहा गया था.

माता-पिता को मिले मुआवजा

दिल्ली में एक मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने एक बीमा कंपनी को 32 वर्षीय एक मृत व्यक्ति के परिवार को 1.98 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करने का निर्देश दिया है. वर्ष 2016 में एक नाबालिग द्वारा चलाई जा रही एक तेज रफ्तार मर्सिडीज की टक्कर से इस व्यक्ति की मौत हो गई थी. न्यायाधिकरण ने नाबालिग के पिता को भी फटकार लगाते हुए कहा था कि अपने नाबालिग बेटे को गाड़ी चलाने से रोकने के बजाय उसने इसे अनदेखा करना चुना जो उसकी ओर से 'मौन सहमति' को दर्शाता है. पीठासीन अधिकारी पंकज शर्मा पीड़ित सिद्धार्थ शर्मा (32) के माता-पिता द्वारा दायर मुआवजे के दावे की सुनवाई कर रहे थे.

न्यायाधिकरण ने बीमा कंपनी को दिया ये निर्देश

चार अप्रैल 2016 को सिविल लाइंस इलाके में सड़क पार करते समय सिद्धार्थ को मर्सिडीज ने टक्कर मार दी थी. न्यायाधिकरण ने कहा कि दुर्घटना नाबालिग चालक की 'लापरवाही और जल्दबाजी' के कारण हुई थी. न्यायाधिकरण ने कार की बीमा कंपनी एचडीएफसी एर्गो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को पीड़ित परिवार को 1.21 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया, साथ ही 77.61 लाख रुपये ब्याज भी देने को कहा. कुल मुआवजा 1,98,89,820 रुपये है.

पुणे में पोर्श कार सवार नाबालिग ने 2 लोगों को कुचला था

19 मई को पुणे में पोर्श कार सवार नाबालिग युवक ने दो लोगों को कुचल दिया था. नाबालिग पर आरोप है कि उसने बाइक को जोरदार टक्कर मारी, जिसकी वजह से एक युवक और युवती की मौत हो गई. युवक एक बड़े कारोबारी का बेटा है, उस पर नशे की हालत में कार चलाने का आरोप है. हैरानी तो तब हुई जब पुलिस ने आरोपी से सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने को कहा. दुर्घटना के कुछ ही घंटों के बाद आरोपी को पुलिस स्टेशन से छोड़ दिया गया था. इसको लेकर लोगों में भयंकर आक्रोश था. लोगों के भारी विरोध के बाद पुणे पुलिस ने आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया था.

जुवेनाइल मामलों के लिए नजीर

पुणे पोर्श दुर्घटना में मारे गए अनीश और अश्विनी मध्‍य प्रदेश के रहने वाले थे. पुणे में काम करने वाले पेशे से इंजीनियर अनीश और अश्विनी अपने दोस्तों के साथ डिनर के लिए बाहर गए थे. ये दोनों ही मध्‍यमवर्गी परिवार से थे. अनीश के पिता ओम अवधिया एक प्रिंटिंग प्रेस चलाते हैं, जबकि उसने अपने छोटे भाई की बीटेक की पढ़ाई का खर्च उठाने की जिम्मेदारी खुद ली थी. दिल्ली न्यायाधिकरण का निर्देश, पुणे पोर्श जैसे मामलों के लिए नजीर साबित हो सकते हैं, क्‍योंकि अनीश और अश्विनी के कंधों पर पूरे परिवार का भार था. दरअसल, आमतौर पर ऐसे मामलों में जुवेनाइल को बेहद कम सजा मिलती है, वो कुछ समय बाद ही छूट जाता है. लेकिन पीडि़त को कोई मुआवजा नहीं मिलता है. दिल्‍ली वाले मामले में न्‍यायाधिकरण का आदेश आने के बाद आगे भी ऐसे मामलों में ये निर्देश दिये जा सकते हैं.  

क्‍यों बच निकलते हैं जुवेनाइल?

भारत में 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को जुवेनाइल माना जाता है. किशोरों से संबंधित मामलों को किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 द्वारा नियंत्रित किया जाता है. इसका उद्देश्य किशोरों को अपराध से बचाना, उनके पुनर्वास का प्रावधान करना और उन्हें अच्‍छास्वस्थ नागरिक बनने में मदद करना है. बोर्ड में एक अध्यक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता, मनोवैज्ञानिक, शिक्षाविद या बाल कल्याण में अनुभव रखने वाले अन्य व्यक्तियों सहित सदस्य होते हैं. नियम के मुताबिक, पुलिस को 24 घंटे से अधिक समय तक किशोर को हिरासत में रखने की अनुमति नहीं है. किशोरों को आमतौर पर जमानत पर रिहा किया जाता है. ऐसे में ज्‍यादातर जुवेनाइल गंभीर अपराध करके भी उनती सजा नहीं पाते, जितनी मिलनी चाहिए. 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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