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भारत में ऑर्गन ट्रांसप्लांट से जुड़ा सरकारी आंकड़ों के अनुसार, ट्रांसप्लांट कराने वालों में 10 प्रतिशत विदेशी

नई दिल्ली
भारत में ऑर्गन ट्रांसप्लांट कराने वालों को लेकर नई जानकारी सामने आई है। सरकारी डेटा के अनुसार, देश में होने वाले लगभग हर 10 में से 1 अंग प्रत्यारोपण विदेशी लोगों का होता है। नैशनल ऑर्गेन एंड टिश्यू ट्रांस्पालांट ऑर्गेनाइजेशन ने बताया कि साल 2023 में भारत में कुल 18,378 ट्रांस्प्लांट हुए थे। इनमें से 42 लोगों को एक से ज्यादा अंग मिले। यानी कुल मिलाकर 18,336 लोगों ने अंग लिए। इनमें से 1,851 लोग (यानी लगभग 10%) विदेशी थे। विदेशी लोगों के अंग प्रत्यारोपण दिल्ली (1,445), राजस्थान (116), पश्चिम बंगाल (88), उत्तर प्रदेश (76), तेलंगाना (61), महाराष्ट्र (35), कर्नाटक (15), गुजरात (11), तमिलनाडु (3) और मणिपुर (1) में किए गए हैं। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे ज्यादातर मरीज पड़ोसी देशों से आते हैं जहां अंग प्रत्यारोपण की अच्छी सुविधाएं नहीं हैं या अभी शुरूआती दौर में हैं, जैसे बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार।

भारत में अंग प्रत्यारोपण कराने वाले ज़्यादातर विदेशी पड़ोसी देशों से आते हैं, लेकिन कुछ विकसित देशों जैसे अमेरिका और ब्रिटेन से भी आते हैं। ये लोग जीवित व्यक्ति से अंग लेना पसंद करते हैं क्योंकि भारत में इस प्रक्रिया की कीमत उनके देशों के मुकाबले दसवें हिस्से से भी कम होती है। लीवर ट्रांस्प्लांट सर्जन और मैक्स सेंटर फॉर लीवर एंड बिलियरी साइंसेज के चेयरमैन डॉक्टर सुभाष गुप्ता ने बताया कि उनके सेंटर में करीब 30 प्रतिशत मरीज विदेशी होते हैं।

समझिए पूरी प्रक्रिया
अंग प्रत्यारोपण में किसी जीवित या मृत व्यक्ति (दानदाता) से अंग निकालकर उसे जरूरतमंद मरीज (ग्राही) में लगाया जाता है। जो व्यक्ति अंग देता है उसे दानदाता कहते हैं और जो व्यक्ति अंग लेता है उसे ग्राही कहते हैं। एक जीवित व्यक्ति अपनी एक किडनी (क्योंकि एक किडनी शरीर के कामकाज के लिए काफी होती है), पैंक्रियास का एक हिस्सा (क्योंकि आधा पैंक्रियास पैंक्रियास के कामकाज के लिए पर्याप्त होता है) और लीवर का एक हिस्सा (क्योंकि दान किए गए कुछ हिस्से कुछ समय बाद फिर से बन जाते हैं) दान कर सकता है। दूसरी तरफ, एक मृत या ब्रेन डेड व्यक्ति कई अंग और टिश्यू दान कर सकता है, जैसे दिल, फेफड़े, लीवर, किडनी, आंतें और कॉर्निया।

मरने के बाद अंग दान मुश्किल
अंगदान के क्षेत्र में काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन मोहन फाउंडेशन की पल्लवी कुमार ने कहा कि भारत में मरने के बाद अंग दान दुर्लभ है और ऐसे दाताओं से निकाले गए अंग प्राप्त करने के लिए भारतीयों को वरीयता दी जाती है। उन्होंने कहा कि विदेशियों से जुड़े अधिकांश प्रत्यारोपण जीवित दाता प्रत्यारोपण हैं। NOTTO डेटा भी इसी रुझान को दर्शाता है। इसमें दिखाया गया है कि भारत में 2023 में हुए 1,851 विदेशी प्रत्यारोपणों में से केवल नौ में ही मृतक दाता से अंगदान शामिल था।

विदेशियों के लिए भी हैं सख्त नियम
विदेशियों के लिए जीवित दाता से अंग प्रत्यारोपण कराने के सख्त नियम हैं। प्रत्यारोपण की इजाजत देने से पहले कई स्तरों पर जांच की जाती है कि डोनर मरीज का खून का रिश्तेदार है या नहीं। यह बात लीवर प्रत्यारोपण सर्जन और मेदांता-द मेडिसिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर ट्रांसप्लांटेशन एंड रीजेनरेटिव मेडिसिन के चेयरमैन डॉक्टर एएस सोइन ने बताई। हाल ही में विदेशी नागरिकों के साथ अंग प्रत्यारोपण में व्यावसायिक लेन-देन की खबरें आई थीं, जिसके बाद केंद्र सरकार ने राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे सभी अंग प्राप्तकर्ताओं की एक राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) आईडी बनाएं, चाहे वह जीवित दाता से हो या मृतक दाता से अंग प्रत्यारोपण हो।

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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