कश्मीर हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि बच्चों का भरण पोषण करने की जिम्मेदारी पिता की होती है
श्रीनगर-जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि बच्चों का भरण पोषण करने की जिम्मेदारी पिता की होती है। उन्होंने कहा है कि यह पिता का दायित्व है कि वह अपने नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण करे, भले ही मां कामकाजी हो और कमाती भी हो। जस्टिस संजय धर ने सुनवाई के दौरान कहा कि मां कामकाजी हो तो भी पिता अपने बच्चों का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं है। कोर्ट में एक शख्स ने दलील दी थी कि उसके पास अपने नाबालिग बच्चों को भरण-पोषण देने के लिए पर्याप्त आय नहीं है। शख्स ने यह भी तर्क दिया कि उसकी अलग रह रही पत्नी (और बच्चों की मां) एक कामकाजी महिला है, जिसके पास बच्चों की देखभाल करने के लिए पर्याप्त आय है। हालांकि कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा, “नाबालिग बच्चों के पिता होने के नाते का उनका भरण-पोषण करना पिता की कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है। यह सच है कि बच्चों की मां कामकाजी महिला हैं और उनके पास आया का स्रोत है लेकिन इससे पिता होने के नाते याचिकाकर्ता को अपने बच्चों का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी से मुक्ति नहीं मिलती। इसलिए यह तर्क निराधार है।” शख्स ने कोर्ट में जिसने अपने तीनों बच्चों के लिए 4,500 रुपये भरण-पोषण के रूप में भुगतान करने के मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। सेशन कोर्ट द्वारा भरण-पोषण देने के आदेश को चुनौती दिए जाने के बाद शख्स ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
शख्स ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि उसकी मासिक आय केवल 12,000 रुपये है और उसके लिए अपने बच्चों के लिए 13,500 रुपये भरण-पोषण के रूप में देना संभव नहीं है। उसने बताया कि उसे अपने बीमार माता-पिता का भी भरण-पोषण करना है। उसने आगे तर्क दिया कि बच्चों की मां एक सरकारी टीचर थी, जिसे अच्छा वेतन मिलता था। ऐसे में बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी अकेले उस पर नहीं डाली जा सकती। हालांकि उसने ट्रायल कोर्ट के सामने कोई सबूत पेश नहीं किया जिससे पता चल सके कि वह हर महीने 12,000 रुपए ही कमाता है। दूसरी तरफ कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि वह एक योग्य इंजीनियर था जिसने पहले विदेश में भी काम किया था।