राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

प्यू रिसर्च रिपोर्ट में सबसे ज्यादा पलायन करने वाले लोगों का आंकड़ा धर्म के लिहाज से ईसाई अव्वल हैं

नई दिल्ली
पलायन को प्रकृति का नियम कहा जाता है। कभी रोजी-रोटी, कभी शिक्षा या फिर किसी संकट के चलते लोग अकसर पलायन करके एक से दूसरे स्थान पर बसते रहे हैं। यही नहीं दूसरे देशों में भी लोगों ने बीती कुछ सदियों में बसना शुरू कर दिया है। इसे ग्लोबल विलेज की अवधारणा का एक बड़ा कारक माना जाता है। प्यू रिसर्च के आंकड़ों पर गौर करें तो दुनिया की आबादी में 3.6 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो उस देश में नहीं रहते, जहां उनका जन्म हुआ था। इनकी संख्या करीब 28 करोड़ है। प्यू रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक दूसरे देशों में रहने वाले लोगों का आंकड़ा धर्म के लिहाज से देखा जाए तो इसमें ईसाई अव्वल हैं।

पलायन करके दूसरे देशों में रहने वाले लोगों में ईसाइयों की संख्या सबसे ज्यादा 47 फीसदी है। वहीं मुसलमान दूसरे नंबर पर आते हैं और पलायन करके रहने वालों में उनकी आबादी 29 फीसदी है। इस मामले में हिंदू तीसरे नंबर पर हैं, लेकिन ईसाई और मुसलमानों के मुकाबले यह अंतर बहुत बड़ा है। महज 5 फीसदी हिंदू ही उस देश से अलग जाकर बसे हैं, जहां उनका जन्म हुआ। इस मामले में चौथे नंबर पर बौद्ध 4 फीसदी और यहूदी एक फीसदी हैं। पर एक दिलचस्प बात यह है कि पलायन करने वाले 13 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो खुद को नास्तिक बताते हैं। ईसाई और इस्लाम के बाद ऐसे लोग तीसरे नंबर पर हैं।

वहीं एक और चौंकाने वाला आंकड़ा यह है कि दुनिया भर में पलायन में तेजी से इजाफा हुआ है। अपना देश छोड़कर दूसरे देशों में जाकर बसने की संख्या में 83 फीसदी का इजाफा हुआ है, जबकि वैश्विक आबादी में 47 फीसदी का ही इजाफा हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पलायन करने वाले लोगों में सभी वयस्कों और बच्चों को शामिल किया गया है। इसमें किसी भी दौर में पलायन करके देश छोड़ने वाले लोगों को शामिल किया गया है। रिपोर्ट में युद्ध, आर्थिक संकट, अकाल जैसी आपदाओं को भी पलायन का बड़ा कारक माना गया है।

रिपोर्ट का कहना है कि पलायन करने की मुख्य वजहों में से एक धार्मिक उत्पीड़न भी है। दरअसल अल्पसंख्यकों के बीच ऐसा ट्रेंड ज्यादा दिखता है। वे अत्याचार के चलते अमूमन ऐसे देशों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं, जहां उनके ही पंथ को मानने वाले लोग बहुसंख्यक हों। रिपोर्ट कहती है कि इस तरह के पलायन से कई देशों की डेमोग्रेफी में भी बड़ा बदलाव हुआ है।

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

RO.NO.13286/93

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