राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

जीआई टैग के लिए नरसिंहपुर के बैगन व इमली और इंदौर के आलू को किया शामिल, बुरहानुपर के केले में मिनरल्‍स का भंडार

बुरहानपुर
करीब दो साल की लंबी प्रतीक्षा के बाद गुरुवार को उज्जैन में जीआई टैग के लिए प्रेजेंटेशन बैठक हुई। इस बैठक में प्रदेश के सोलह से ज्यादा जिलों के अधिकारियों को बुलाया गया था, लेकिन दस जिलों के अधिकारी ही शामिल हुए। साथ ही केंद्र सरकार की टीम और जीआई टैग मप्र के डायरेक्टर लक्ष्मीकांत दीक्षित मौजूद थे। सूत्रों के अनुसार बैठक में शामिल बुरहानपुर जिले के विज्ञानी और उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने केले की विशेषता बताई। इसके साथ ही देवास जिले से पहुंचे अधिकारियों ने वहां के खुरचन (मलाई से बना मिष्ठान) और गुलाब जामुन की विशेषता बताई। इसके अलावा जीआई टैग के लिए नरसिंहपुर के बैगन व इमली और इंदौर के आलू को भी शामिल किया गया है। सभी जिलों के अधिकारियों ने अपने उत्पादों की विशेषता, गुणवत्ता और उनमें मौजूद तत्वों के संबंध में जानकारी दी। केंद्र से आई टीम प्रेजेंटेशन के दौरान सामने आए तथ्य व जानकारी लेकर दिल्ली रवाना हो गई है। इस बैठक को पूरी तरह गोपनीय रखा गया था। वहां मीडिया का प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित था। बताया जा रहा है कि जल्द ही इस प्रेजेंटेशन का परिणाम आ सकता है। यदि बुरहानपुर के केले को जीआई टैग मिला तो इसके एक्सपोर्ट में कई गुना की वृद्धि संभव है।

वर्ष 1960 से शुरू केले का उत्पादन
जिले में केेले का उत्पादन वर्ष 1960 से शुरू हुआ था। पहली बार जलगांव से बैलगाड़ी में टिश्यू कल्चर लाकर पांच एकड़ खेत में फसल लगाई गई थी। इसके बाद धीरे-धीरे अन्य किसानों ने फसल लगाना शुरू किया। इससे पहले तक जिले में मोसम्बी और संतरे की खेती की जाती थी। यह जिला चारों ओर से पहाड़ों से घिरा है। केला उत्पादन के लिए जलवायु पूरी तरह उपयुक्त है।

छब्बीस हजार हेक्टेयर में होता है केला
जिले में करीब 26 हजार हेक्टेयर में केले का उत्पादन होता है। इस काम में 16 हजार से ज्यादा किसान सक्रिय हैं। चार प्रमुख बिंदुओं पर प्रजेंटेशन तैयार किया था। इनमें जिले में केले का इतिहास, मिट्टी की गुणवत्ता, जलवायु और पोषक तत्व शामिल थे। केले को जीआई टैग प्रदान करने के लिए वर्ष 2023 में आवेदन किया गया था। अब जाकर जीआई टैगिंग के लिए बैठक बुलाई गई। उल्लेखनीय है कि बुरहानपुर का केला स्वाद और गुणवत्ता में हमेशा से बेहतर रहा है। यही वजह है कि इसकी मांग देश के कई राज्यों के साथ खाड़ी देशों तक है।

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

RO.NO.13286/93

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