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आत्महत्या रोकने की रणनीतियों में सामाजिक जोखिम कारकों पर ध्यान होना चाहिए : अनुसंधानकर्ता

नई दिल्ली
आत्महत्या रोकने के उद्देश्य से परेशानी में घिरे लोगों के लिए नैदानिक सेवाएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इस मकसद से बनायी गयीं राष्ट्रीय रणनीतियों में लोगों को ‘‘बदतर स्थिति’’ में पहुंचने से रोकने के लिए सामाजिक समस्याओं से निपटने के उपाय भी शामिल होने चाहिए।

‘द लांसेट पब्लिक हेल्थ’ पत्रिका में प्रकाशित छह शोधपत्रों की एक नई शृंखला के लेखकों ने यह तर्क दिया है। लेखकों के अंतरराष्ट्रीय दल ने आत्महत्या को लेकर धारणा में बदलाव का आह्वान किया है और इसे पूरी तरह से मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे के रूप में पेश करने से बचने और गरीबी, घरेलू हिंसा, नशे की लत और अलगाव जैसे सामाजिक जोखिम कारकों के प्रभाव को स्वीकार करने पर जोर दिया गया है।

यह खासतौर से भारत के लिए प्रासंगिक है जिसने नवंबर 2022 में राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति जारी की और पुलिस के आंकड़ों में आत्महत्या के पीछे की वजह लैंगिकता, रोजगार और तनावपूर्ण जिंदगी बताए जाने के बावजूद अपने ज्यादातर प्रस्तावित समाधान मानसिक स्वास्थ्य के दायरे में रखे हैं।

इस रणनीति का उद्देश्य 2030 तक आत्महत्या के कारण देश में मौत का आंकड़ा 10 प्रतिशत तक कम करना है। इसके उद्देश्यों में आत्महत्या के लिए प्रभावी निगरानी प्रणालियां स्थापित करना और शैक्षणिक संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी पाठ्यक्रम शामिल करना है।

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर प्रकाशित रिपोर्ट में लेखकों ने आत्महत्या को रोकने में जन स्वास्थ्य के छह पहलुओं का जिक्र किया।

इस शृंखला की लेखक एवं ‘पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ में जन स्वास्थ्य की प्रोफेसर राखी डंडोना ने कहा, ‘‘भारत में आत्महत्या के कारण हर वर्ष 1,70,000 से अधिक लोगों की जान चली जाती है, जिसके कारण मानसिक स्वास्थ्य के अलावा अंतर्निहित सामाजिक-आर्थिक दबावों से निपटना एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय प्राथमिकता है। जन स्वास्थ्य उन्मुख दृष्टिकोण अपनाकर और विभिन्न क्षेत्रों के बीच सहयोग मजबूत कर, हम अधिक सहयोगात्मक माहौल बना सकते हैं जिसमें जल्द से जल्द दखल, भ्रांतियों को कम करने और आखिरकार जान बचाने को प्राथमिकता दी जाती है।’’

एक शोधपत्र में लेखकों ने कहा कि कम और मध्यम आय वाले देशों में खराब आर्थिक स्थिति और आत्महत्या के बीच एक जुड़ाव बताया गया है। उन्होने कहा कि भारत में बेरोजगारी के उच्च स्तर वाले राज्यों में पुरुषों में आत्महत्या की दर अधिक देखी जाती है। महिलाओं के बीच भी बेरोजगारी आत्महत्या के सबसे जोखिम वाले कारकों में से एक है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 15 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में आत्महत्या मौत का तीसरा प्रमुख कारण है और इसके कारण हर साल 7.2 लाख से अधिक लोगों की मौत होने का अनुमान है। दुनियाभर में करीब तीन-चौथाई आत्महत्याएं कम और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं।

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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