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ग्वालियर-चंबल संभाग से लेकर ओरछा तक स्थित पांच अभयारण्यों में अब पर्यटन बढ़ाने के प्रयास बढ़ाए जा रहे है

ग्वालियर
ग्वालियर-चंबल संभाग से लेकर ओरछा तक स्थित पांच अभयारण्यों में अब पर्यटन बढ़ाने के प्रयास बढ़ाए जा रहे हैं। केंद्र सरकार के निर्देश पर मध्य प्रदेश टूरिज्म बोर्ड ने इन अभयारण्यों को इको सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) के तौर पर चिह्नित कर यहां जोनल मास्टर प्लान तैयार करना शुरू किया है।

पर्यावरण सुधार के साथ ही पर्यटक हितैषी उपाय, पर्यटकों के लिए परिवहन की व्यवस्था, कनेक्टिविटी, पार्किंग सहित ठहरने की उचित व्यवस्था जैसे कई घटकों को शामिल किया गया है। इन पांच अभयारण्यों में कूनो नेशनल पार्क के अलावा ग्वालियर का सोनचिरैया अभयारण्य, माधव नेशनल पार्क, ओरछा अभयारण्य और राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य को शामिल किया गया है।

मास्टर प्लान तैयार करने की जिम्मेदारी दिल्ली की एक कंपनी सांई कंसल्टिंग इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड को दी गई है। कंपनी ने प्राथमिक तौर पर कूनो नेशनल पार्क और सोनचिरैया अभयारण्य के मास्टर प्लान पर काम शुरू भी कर दिया गया है। कंपनी जिला स्तरीय निगरानी समिति के साथ समन्वय कर प्लान तैयार कर रही है। श्योपुर कलेक्टर किशोर कान्याल के अनुसार कूनो के ड्राफ्ट प्लान को स्वीकृति के लिए शासन को भेजा गया है। वहीं, सोनचिरैया अभयारण्य को लेकर मैदानी सर्वे शुरू किया गया है।

कूनो नेशनल पार्क के 725.90 वर्ग किमी इलाके में होगा काम
कूनो नेशनल पार्क का क्षेत्रफल 748.76 वर्ग किमी है। इसमें से 725.90 किमी इलाके को इको सेंसिटिव जोन के तौर पर चिह्नित किया गया है। चीतों के आने के बाद कूनो के आसपास के इलाके में पर्यटन गतिविधियां बढ़ी हैं। श्योपुर जिले में कुछ होटलों के अलावा पर्यटन बोर्ड ने भी अपनी तरफ से पैकेज जारी कर पर्यटकों को आकर्षित करने के प्रयास किए हैं।

मास्टर प्लान में इन घटकों पर ध्यान
पर्यटन से संबंधित गतिविधियां बढ़ाने पर फोकस। इसमें पर्यटकों के आवागमन को सुविधाजनक बनाने के साथ ही नई गतिविधियां शामिल करने के साथ ही वन्य प्राणियों के साथ ही उनका क्षेत्र की संस्कृति और विरासत से परिचय करवाया जाएगा। अभयारण्यों के पर्यावरण संरक्षण पर भी ध्यान दिया जाएगा। इसमें विशेष तौर पर पहाड़ी ढलानों और नदी तटों की सुरक्षा को प्राथमिकता पर रखा जाएगा। इको सेंसिटिव जोन में खदानों, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों, ईंट-भट्टों और चिमनियों पर प्रतिबंध रहेगा। स्थानीय लोगों द्वारा संचालित डेयरियों, डेयरी फार्मिंग, जलीय कृषि और मत्स्य पालन मुर्गी पालन के साथ-साथ चल रही कृषि और बागवानी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाएगा। प्राकृतिक जल निकायों या भूमि क्षेत्र में ट्रीटमेंट प्लांट के जरिये पानी का शोधन किया जाएगा। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन को भी शामिल किया गया है। इलाके में दिशासूचक और होर्डिंग आदि भी लगाए जाएंगे।

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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