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धार्मिक

जीवन के हर सवाल का जवाब है भगवत गीता

श्रीमद्भागवत गीता हिंदू धर्म का एक पवित्र आध्यात्मिक ग्रंथ है. इस उपनिषदों का सार भी माना जाता है. हर साल मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गीता जयंती का मानाई जाती है. आज श्रीमद्भागवत गीता की 5161 वीं वर्षगांठ हैं. श्रीमद्भगवागीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मानाई जाती है. इस दिन मोक्षदी एकादशी भी मनाई जाती है. भगवद गीता में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक है, जो मनुष्यों को जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में विस्तार ज्ञान प्रदान करते हैं. यानी श्रीमद्भागवत गीता में जीवन का सार छुपा है. जिसके अध्ययन करने से व्यक्ति को जीवन के सत्य और सभी उलझनों से निकलने का मार्ग मिलता है. इस महान ग्रंथ की रचना महर्षि वेदव्यास ने थी. भगवाद गीता की गणना उपनिषदों में होने के कारण इसे गीतोपनिष्द भी कहा जाता है.

श्रीमद्भागवत गीता जीवन सार
श्रीमद्भागवत गीता के पहले से लेकर अंतिम अध्याय तक भगवान कृष्ण युद्ध के दौरान अर्जुन को जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे रिश्तों का मोह, त्याग, नश्वर शरीर के बारें में बताते हैं. हर अध्याय अपने आप में जीवन के विभिन्न स्तर और स्थितियों को उजागर करता है. भगवद गीता के 18 अध्याय में 18 योग का वर्णन कर भगवान कृष्ण ने अर्जुन के अंदर प्रेम, मोह और डर को दूर किया था. गीता के हर योग ईश्वर से मिलने का मार्ग दिखाता है. यहां योग का अर्थ है आत्मा से परमात्मा का मिलन.

जो कि इस प्रकार हैं- 1. अर्जुनविषाद योग, 2. सांख्य योग, 3. कर्म योग, 4. ब्रह्मयोग, 5. कर्म संयास योग, 6. आत्मसंयम योग, 7.ज्ञान-विज्ञान योग, 8. अक्षरब्रह्म योग, 9. राज विद्या गुह्य योग, 10. विभूति विस्तारा योग, 11. विश्वरूप दर्शन योग, 12. भक्ति योग, 13. क्षेत्र विभाग योग, 14. गुणत्रय विभाग योग, 15. पुरुषोत्तम योग, 16. दैवासुरस्मपद् विभाग योग, 17. श्रद्धात्रय विभाग योग, 18. मोक्ष सन्यास योग. इनमें से तीन योग ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग जो मनुष्य के जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं .

श्रीमद्भागवत गीता का सार
महाभारत युद्ध की के साथ भगवद गीता के उपदेशों की भी शुरुआत हुई. जिसमें श्रीकृष्ण अपने उपदेशों से अर्जुन को मोह से बहर निकलकर कर्म करने की करने की ओर अग्रसर होने का संदेश देते हैं. वहीं भगवद गीता का दूसरा अध्याय सबसे महत्वपूर्ण हैं. क्योंकि इस अध्याय में संपूर्ण गीता सार निहित है. इसमें अर्जुन पूर्ण रूप से श्रीकृष्ण अपना गुरु और मार्गदशक स्वाकर करते हैं. जिसके युद्ध और बदलती स्थितियों के हिसाब से भगवान कृष्णु अर्जुन को उपदेश देते हैं.

भगवान गीता के अंत यानी आखिरी अध्याय में श्रीकृष्ण संन्यास और त्याग के बारे में बताते है. वह कहते है कि आध्यात्मिक अनुशासन के लिए एक संन्यासी परिवार और समाज का त्याग कर देते है. लेकिन त्याग करने वाला व्यक्ति परिवार और समाज के साथ रहकर औऱ अपने कार्मो और उससे मिलने वाले फलों की चिंता किए बिना भगवान के प्रति समर्पित होकर निष्काम भाव से कर्म करता हैं. इसके अलावा जीवन-मृत्यु चक्र और आत्मा की शुद्धता और महत्व को विस्तार से समझाया गया है.

श्रीमद्भागवत गीता अध्ययन के लाभ
श्रीमद्भागवत गीता में निहित श्लोको जीवन दर्शन का एहसास कराते हैं. जिसमें व्यक्ति को जीवन के हर सवाल का जवाब मिलता है. रोजाना गीता पाठ करन से व्यक्ति को बहुत से लाभ मिलते हैं. मन हमेशा शांत रहता है. वितरित परिस्थियों में भी वह अपने मन पर काबू पाने की क्षमता रखता है. कामवासना, क्रोध, लालच और मोह, माया आदि के बंधनों से मुक्त हो जाता है और जो व्यक्ति इन सभी से मुक्ति पा लेता है उसका जीवन सुखमय तरीके से बीतता है. इसके अलावा श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करने से व्यक्ति का आत्मबल बढ़ता है और व्यक्ति साहसी और निडर बनकर अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ता रहता है.

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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