धार्मिक

144 साल बाद पड़ रहा महाकुंभ देश के लिए मंगलकारी, ग्रह नक्षत्रों के विशिष्ट संयोग…..

महाकुम्भनगर
 ज्योतिषाचार्यों की गणना के अनुसार ग्रह नक्षत्रों के विशिष्ट संयोग से इस वर्ष प्रयागराज में 144 वर्ष बाद पड़ने वाले महाकुम्भ का आयोजन होने जा रहा है। महाकुम्भ 2025, 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के स्नान से शुरू हो कर 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के स्नान के साथ पूरा होगा। मेले के लिए तैयारियां युद्ध स्तर पर चल रही हैं। महाकुम्भ का इंतजार न केवल साधु-संन्यासी, कल्पवासी, श्रद्धालु बल्कि प्रयागराजवासी भी बेसब्री से कर रहे हैं। महाकुम्भ में संगम, मेला क्षेत्र और प्रयागराज के दुकानदार पूजा सामग्री, पत्रा-पंचाग, धार्मिक पुस्तकें, रुद्राक्ष और तुलसी की मालाओं को नेपाल, बनारस, मथुरा-वृदांवन से मंगा रहे हैं। महाकुम्भ में आने वाले श्रद्धालु लौटते समय अपने साथ संगम क्षेत्र से धार्मिक पुस्तकें, पूजन सामग्री, रोली-चंदन और मालाएं जरूर ले जाते हैं।

नेपाल, उत्तराखण्ड, बनारस, मथुरा-वृंदावन से आ रही रुद्राक्ष और तुलसी की मालाएं

महाकुम्भ, सनातन आस्था का महापर्व है। इस अवसर पर सनातन धर्म में आस्था रखने वाले देश के कोने-कोने से प्रयागराज आते हैं और त्रिवेणी संगम में स्नान कर पुण्य के भागी बनते हैं। इस वर्ष महाकुम्भ के अवसर पर 40 से 45 करोड़ श्रद्धालुओं के प्रयागराज में आने का अनुमान है। श्रद्धालुओं के प्रयागराज आने, उनके स्नान और रहने की व्यवस्थाओं का प्रबंध सीएम योगी के दिशानिर्देश पर मेला प्राधिकरण पूरे जोश और उत्साह के साथ कर रहा है। साथ ही प्रयागराजवासी और यहां के दुकानदार,व्यापारी भी महाकुम्भ को लेकर उत्साहित हैं। महाकुम्भ उनके लिए पुण्य और सौभाग्य के साथ व्यापार और रोजगार के अवसर भी लेकर आया है। पूरे शहर में होटल, रेस्टोरेंट, खाने-पीने की दुकानों के साथ पूजा सामग्री, धार्मिक पुस्तकों, माला-फूल की दुकानें भी सजने लगी हैं। थोक व्यापारियों का कहना है कि महाकुम्भ में आने वाले श्रद्धालुओं के अनुमान के मुताबिक दूसरे शहरों से समान मंगाया जा रहा है। रुद्राक्ष की मालाएं उत्तराखण्ड और नेपाल से तो तुलसी की मालाएं मथुरा-वृंदावन से, रोली, चंदन और अन्य पूजन सामग्री बनारस और दिल्ली के पहाड़गंज से मंगाई जा रही हैं।

गीता प्रेस में छपी धार्मिक पुस्तकों की सबसे ज्यादा मांग

प्रयागराज के दारागंज में धार्मिक पुस्तकों के विक्रेता संजीव तिवारी का कहना है कि सबसे ज्यादा गीता प्रेस, गोरखपुर से छपी धार्मिक पुस्तकों की मांग होती है। अधिकांश श्रद्धालु राम चरित मानस, भागवत् गीता, शिव पुराण और भजन व आरती संग्रह की मांग करते हैं। इसके अलावा पूजा-पाठ का काम करने वाले पुजारी वाराणसी से छपे हुए पत्रा और पंचाग भी खरीद कर ले जाते हैं। इसके अलावा मुरादाबाद और बनारस में बनी पीतल और तांबें की घंटियां, दीपक, मूर्तियां भी मंगाई जा रही है। मेले में कल्पवास करने वाले श्रद्धालु और साधु-संन्यासी पूजा-पाठ के लिए हवन सामग्री, आसन, गंगाजली, दोनें-पत्तल, कलश आदि की मांग करते हैं। जिसे भी बड़ी मात्रा में दुकानदार अपनी दुकानों में मंगा कर स्टोर कर रहे हैं।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने नव वर्ष की मंगलकामना देने के साथ ही नए साल 2025 को महाकुंभ का वर्ष बताया है. उनका कहना है कि इस नए साल में मौके पर सदी का एक बहुत बड़ा आयोजन होने जा रहा है. 144 सालों के बाद ग्रहों का ऐसा नक्षत्र बन रहा है जिसमें त्रिवेणी संगम में गंगा स्नान करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी और इसके साथ ही जाने अनजाने में हुए पापों से भी मुक्ति पाने का अद्भुत संयोग है. इस पुण्य काल मे सनातन धर्म को मानने वाले हर व्यक्ति को गंगा यमुना सरस्वती की पावन त्रिवेणी तट पर आकर आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य लाभ अर्जित करना चाहिए.

1 जनवरी से शुरू हुआ छावनी प्रवेश का सिलसिला : महाकुंभ मेला क्षेत्र में 1 जनवरी से छावनी प्रवेश शोभा यात्रा का सिलसिला शुरू होने जा रहा है. जो 12 जनवरी तक जारी रहेगा. एक जनवरी से लेकर 12 जनवरी तक अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से जुड़े हुए सभी 13 अखाड़ों की छावनी प्रवेश यात्राएं निकलकर कुंभ नगरी में प्रवेश करेंगी. इसके साथ ही जिन अखाड़ों की धर्म ध्वजा की स्थापना अभी नहीं हुई है उनकी धर्म ध्वजा की स्थापना भी महाकुम्भ मेला क्षेत्र में बने शिविरों में कर दी जाएगी.

महंत रवींद्र पुरी ने यह भी कहाकि कुंम्भ मेला भले ही 13 जनवरी से शुरू होगा लेकिन 1 जनवरी में इस मेले की भव्यता लगातार बढ़ती जाएगी. क्योंकि जनवरी के इन्हीं शुरुआती 12 दिनों में मेला क्षेत्र में देश भर के साधु संतों का आगमन हो जाएगा. क्योंकि 14 जनवरी को होने वाले पहले शाही स्नान पर्व पर सभी साधु संत महामंडलेश्वर अपने अपने अखाड़े के साथ त्रिवेणी तट पर पहुँचकर संगम में आस्था की डुबकी लगाएंगे.

प्रयागवासी करें अतिथियों का स्वागत : इसके साथ ही अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने कहा कि सनातन धर्म की अतिथि देवो भवः की संस्कृति रही है. इसलिए प्रयागराज में आने वाले सभी श्रद्धालुओं का अतिथि के रूप में स्वागत करने का काम प्रयागराज में रहने वालों को करना चाहिए. कुंभ में आने वाले अतिथियों का स्वागत सत्कार एक मुस्कान के साथ करें. साथ ही शहर में रहने वाले लोगों से यथा संभव श्रद्धालुओं की सेवा और मदद करने की भी अपील उन्होंने प्रयागराज के रहने वाले लोगों से की है.

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button