राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

सुप्रीम कोर्ट ने 28 भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज एफआईआर को हाईकोर्ट द्वारा निरस्त करने के आदेश को बरकरार रखा

रांची/नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे, झारखंड के पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास, पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, भाजपा सांसद संजय सेठ सहित 28 भाजपा नेताओं के खिलाफ झारखंड सचिवालय घेराव के मामले में दर्ज एफआईआर को हाईकोर्ट द्वारा निरस्त करने के आदेश को बरकरार रखा है। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली झारखंड सरकार की याचिका (एसएलपी) सोमवार को खारिज कर दी। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जवल भुइयां की बेंच ने इस एसएलपी की सुनवाई के दौरान, देश में विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए पुलिस-प्रशासन की ओर से बार-बार दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 का इस्तेमाल किए जाने पर तल्ख टिप्पणी की।

कोर्ट ने कहा, ‘एक सामान्य प्रवृत्ति बन गई है कि कोई विरोध प्रदर्शन हो रहा है, तो उसे रोकने के लिए सीआरपीसी की धारा 144 का आदेश जारी कर दिया जाता है। इससे गलत संदेश जाएगा। यदि कोई प्रदर्शन करना चाहता है तो धारा 144 लगाने की आवश्यकता क्या है? यह तो धारा 144 का दुरुपयोग है।’ झारखंड सचिवालय के घेराव के मामले में भाजपा के नेताओं के खिलाफ 11 अप्रैल 2023 को एफआईआर हुई थी। उस दिन भाजपा ने तत्कालीन हेमंत सोरेन सरकार की विफलताओं के खिलाफ सचिवालय घेराव का आह्वान किया था। इसे देखते हुए पुलिस ने सचिवालय और आसपास के इलाके में सीआरपीसी की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लगा दी थी।

पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए वाटर कैनन, आंसू गैस का इस्तेमाल किया था। उन पर लाठी चार्ज भी हुआ था। इस दौरान रांची का धुर्वा चौक करीब पौने दो घंटे तक रणक्षेत्र बना रहा था और 60 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इस प्रकरण को लेकर रांची जिला प्रशासन के कार्यपालक दंडाधिकारी उपेंद्र कुमार के बयान पर एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसमें आरोपियों पर उपद्रव करने, दंगा भड़काने, सरकार के निर्देशों का उल्लंघन करने, सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने, अपराध के लिए उकसाने और दूसरे व्यक्तियों को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया गया था।

एफआईआर में कहा गया था कि धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू रहने के बावजूद नामजद आरोपियों और अज्ञात कार्यकर्ताओं ने बैरिकेडिंग उखाड़ने का प्रयास किया, उत्पात मचाया, ड्यूटी पर तैनात पुलिस बल को निशाना बनाते हुए बोतल फेंकी, पत्थरबाजी की। इससे ड्यूटी में तैनात एसडीओ दीपक कुमार दुबे, धुर्वा के थानेदार विमल नंदन सिन्हा, दारोगा नारायण सोरेन, सिपाही मनीष कुमार, सिपाही संतोष कुमार शर्मा, अनिल कुमार महतो व अन्य पुलिसकर्मी और घटना की रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकार घायल हो गए।

एफआईआर में कहा गया था कि भाजपा नेताओं ने भीड़ को उकसाने का प्रयास किया। इस केस में सांसद अर्जुन मुंडा, सांसद संजय सेठ, सांसद निशिकांत दुबे, सांसद समीर उरांव, सांसद सुनील कुमार सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, विधायक अमित मंडल, विधायक बाबूलाल मरांडी, विधायक विरंची नारायण सिंह सहित 41 लोगों को नामजद किया गया था। इनमें से 28 ने एफआईआर निरस्त करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद 14 अगस्त, 2024 को सुनाए गए फैसले में एफआईआर निरस्त कर दी थी। हाईकोर्ट के इसी फैसले को झारखंड सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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