RO.NO. 13073/99
राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

आम समझ है कि सेक्शन 498ए दहेज की मांग पर लगता है, दहेज नहीं मांगा, तब भी लग सकता है पति और परिजनों पर

नई दिल्ली
आम समझ है कि सेक्शन 498ए दहेज की मांग पर लगता है। यदि दहेज की मांग नहीं की गई है तो फिर ऐसे केस से महिला के पति और परिवार वाले बच सकते हैं। लेकिन देश के सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्थिति स्पष्ट की है। अदालत ने कहा कि सेक्शन 498ए का उद्देश्य महिलाओं को घरेलू उत्पीड़न, हिंसा और अत्याचार से बचाना है। इसका उद्देश्य सिर्फ दहेज की मांग करते हुए उत्पीड़न से बचाव करना ही नहीं है। यदि किसी महिला का पति और ससुराल वाले दहेज नहीं मांगते, लेकिन हिंसा करते हैं और उसे प्रताड़ित करते हैं तो भी सेक्शन 498ए के तहत उन पर ऐक्शन हो सकता है। आम धारणा रही है कि यह कानून दहेज उत्पीड़न के मामलों से महिलाओं को बचाने के लिए ही है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है।

एक केस की सुनवाई करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी. वाराले ने कहा कि सेक्शन 498ए का मुख्य उद्देश्य क्रूरता से बचाना है। यह सिर्फ दहेज उत्पीड़न के मामलों से ही निपटने के लिए नहीं है। बेंच ने कहा कि यदि दहेज की मांग ससुराल वाले नहीं कर रहे हैं, लेकिन महिला के साथ शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न किया जा रहा है तो फिर उनके खिलाफ ऐक्शनहो सकता है। 12 दिसंबर, 2014 को जारी आदेश में कहा गया, 'इस सेक्शन के तहत क्रूरता की परिभाषा तय करने के लिए दहेज की मांग करना ही जरूरी नहीं है।' शीर्ष अदालत ने यह फैसला आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए दिया। उच्च न्यायालय ने ए.टी. राव के खिलाफ 498ए के तहत ऐक्शन को खारिज कर दिया था। अब उच्चतम न्यायालय ने उस आदेश को ही खारिज कर दिया है।

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

RO.NO. 13073/99

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button