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शिवराज सिंह चौहान ने कहा- बार-बार चुनावों के कारण कई फैसले प्रभावित होते , गवर्नेंस प्रभावित होती है

भोपाल
 केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में एक कार्यक्रम के दौरान ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि देश में बार-बार चुनाव होने से विकास कार्य प्रभावित होते हैं. सरकारें पूरे साल चुनावी प्रक्रिया में व्यस्त रहती हैं, जिससे प्रशासनिक अमला भी चुनावी गतिविधियों में लगा रहता है और विकास योजनाओं की गति धीमी हो जाती है.

शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि बार-बार चुनाव होने से सरकारें केवल चुनावी फायदों वाली योजनाएं बनाने में जुट जाती हैं और ऐसे में कई अहम और कड़े फैसले पीछे रह जाते हैं. इससे न केवल लॉन्गटर्म विकास प्रभावित होता है बल्कि जनता को भी वास्तविक सुधारों से वंचित रहना पड़ता है.

बार-बार चुनाव से संसाधनों की भारी बर्बादी – शिवराज सिंह चौहान

चौहान ने बार-बार होने वाले चुनावों को संसाधनों की भारी बर्बादी करार दिया. उन्होंने कहा कि प्रत्येक चुनाव में लाखों करोड़ रुपये खर्च होते हैं. चुनाव आयोग की ओर से जब्त किए गए पैसों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यदि देश में एक साथ चुनाव कराए जाएं तो इस धन को विकास कार्यों में लगाया जा सकता है.

एक साथ चुनाव से धन और संसाधनों की होगी बचत

शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लागू करने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति ने इस विषय पर व्यापक रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें सभी संभावित समस्याओं के समाधान दिए गए हैं. उन्होंने जनता, विशेष रूप से युवाओं से अपील की कि वे राजनीतिक दलों पर दबाव बनाएं ताकि धन और संसाधनों की बचत करते हुए देश में एक साथ चुनाव कराए जा सकें.

सारे राजनैतिक दल अगले चुनाव की तैयारी में लगे रहते हैं

शिवराज ने कहा, अपने देश में और कुछ हो या न हो लेकिन सारे राजनैतिक दल पांचों साल, 12 महीने, हर सप्ताह, 24 घंटे एक ही तैयारी करते हैं वो है अगला चुनाव। उसी तैयारी में लगे रहते हैं। अब एक साल ही देख लो पिछले साल नवंबर-दिसंबर में मप्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विधानसभा चुनाव हुए। विधानसभा चुनाव की थकान उतरी नहीं थी कि चार महीने बाद ही लोकसभा घोषित हो गया।

विधानसभा चुनाव में 6 महीने तो कुछ हुआ ही नहीं था। आचार संहिता, कोड ऑफ कंडक्ट के कारण विकास के काम ठप थे। वो चुनाव संपन्न हुए और चार महीने बाद फिर लोकसभा के चुनाव आ गए। फिर चार-छह महीने नहीं गुजरे फिर हरियाणा, जम्मू कश्मीर, झारखंड, महाराष्ट्र के चुनाव आ गए और नेता फिर चुनाव में भिड़ गए।

 

एक भी चुनाव हारे तो मीडिया कहता है जमीन खिसक गई

शिवराज ने कहा, अभी एक चुनाव निपटा नहीं कि दिल्ली का दंगल शुरू हो गया। दिल्ली के चुनाव खत्म नहीं हुए कि हम लोगों ने बिहार के लिए कमर कस ली। चलो बिहार। और कोई काम हो न हो, चौबीसों घंटे चुनाव की तैयारी। ये हमेशा होने वाले चुनाव देश की प्रगति और विकास में कितने बाधक हैं।

एक तो सभी की एनर्जी लगती है, जिसमें प्रधानमंत्री भी चुनाव की तैयारी में लगते हैं। एक भी विधानसभा चुनाव अगर हार गए तो मीडिया कहती है, पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई है। गए काम से। सबको लगता है कि कमर कस के चुनाव जीतना है। गवर्नेंस पर ध्यान नहीं रह पाता।

तीन महीने सब छोड़कर झारखंड में पड़ा रहा शिवराज ने कहा, चुनाव में पीएम, सीएम सब लगे रहे। केन्द्रीय मंत्री मुझे बनाया गया कृषि और ग्रामीण विकास का और कहा गया झारखंड के चुनाव में जाओ । तीन महीने वहीं पड़े रहे। कृषि की तरफ ध्यान ही नहीं रहा। फोकस चुनाव पर हो गया। मेरे जैसे कितने लोग लगे रहे।

ये केवल एक पार्टी में नहीं सभी पार्टियों के मंत्री, मुख्यमंत्री, विधायक सांसद लगे रहते हैं। अभी कहा अब सब बिहार जाओ, चार महीने सब छोड़ो। आप गंभीरता से सोचकर देखिए। बार-बार चुनाव से गवर्नेंस पर ध्यान नहीं रहता। पैसा अलग खर्च होता है।

 

पैसा बर्बाद होता है सरकारें लंबी प्लानिंग नहीं करतीं

शिवराज ने कहा- अलग-अलग चुनाव क्यों होने चाहिए? हर चार-छह महीने में चुनाव हो रहे हैं। गवर्नेंस प्रभावित होती है। धन का अपव्यय होता है। असल में तो औपचारिक खर्चा दिखता है, पीछे से और कितना खर्चा होता है। चुनाव आयोग ने इस चुनाव में गाडियों से पैसे पकड़े थे। अकेले पैसा नहीं कई और चीजें पकड़ी जाती हैं। एक तरफ धन का अपव्यय होता है दूसरी तरफ सरकारें लॉन्ग टर्म प्लानिंग नहीं करतीं।

एक बार चुनाव कराने में साढ़े चार लाख करोड़ का खर्च आता है। शिक्षा और स्वास्थ्य पर यह खर्च हो तो कितना फायदा होगा।

चुनाव के डर से कई फैसले नहीं हो पाते केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा- प्रधानमंत्री मोदी ने कई बडे़ और कड़े फैसले लिए हैं। लेकिन, कई बार चुनाव के डर में कई ऐसे फैसले नहीं हो पाते कि वोट बिगड़ गया और नुकसान हो गया तो वोट बचाओ। ऐसे कई फैसले प्रभावित होते है जो बच्चों के भविष्य को बेहतर बना सकते हैं प्रदेश का विकास कर सकते हैं। देश को आगे बढ़ा सकते हैं। वोट के डर में फैसले प्रभावित होते हैं।

कितना विकास प्रभावित होता है। अगर संविधान में संशोधन करके लोकसभा विधानसभा के चुनाव एक साथ हो जाएं तो साढ़े चार साल जनता और विकास के लिए ईमानदारी से मिलेंगे। अपने देश में भी लोकसभा के चुनाव के साथ उड़ीसा और तीन विधानसभा के चुनाव हुए।

मोदी की लोकप्रियता से घबराते हैं शिवराज ने कहा- मैं पूछता हूं कि एक साथ चुनाव से डरते क्यों हैं तो कुछ लोग कहते हैं कि मोदी जी बहुत लोकप्रिय हैं तो गड़बड़ हो जाएगी। जनता बहुत समझदार है वो लोकसभा में अलग वोट डालती है विधानसभा में अलग वोट डालती है। उड़ीसा में दो बार लोकसभा विधानसभा के एक साथ चुनाव हुए लेकिन उसी राज्य की जनता ने पिछले चुनाव में राज्य के लिए बीजेडी के नवीन पटनायक को चुना और देश के लिए मोदी जी को चुना।

अब समय आ गया है कि देश ये तय करे कि फालतू का खर्चा चुनाव आचार संहिता के साथ विकास ठप होना, देश की प्रगति और विकास रूकना अब नहीं चलेगा। 1967 तक अपने देश में एक साथ चुनाव होते थे। मशीन से नहीं बैलेट पेपर से चुनाव होते थे। पहले तो डिब्बा रखते थे उसमें चुनाव चिन्ह रहता था। जिसको वोट देना है उसमें बैलेट पेपर डाल दो। बाद में चुनाव चिन्ह और नाम वाले बैलेट पेपर आए। फिर ईवीएम आ गई।

शिवराज बोले- कमजोर समझोगे तो मक्खी पड़ोसी को उड़ानी पड़ेगी शिवराज सिंह चौहान ने कार्यक्रम में मौजूद युवाओं से कहा- अपने आप को दीन हीन मत समझो, ईश्वर के अंश, अनंत शक्तियों के भंडार हो। मनुष्य जैसा सोचता है वैसा बन जाता है। दुनिया में जितने भी बड़े काम किए वो हमारे जैसे हाड़ मांस के पुतलों ने ही किए। अंतर सिर्फ इतना है कि वो दृढ़ निश्चयी होते हैं।

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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