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इंदौर में नाबालिगों द्वारा संथारा करने का विरोध शुरू, हाई कोर्ट में याचिका लगाकर इसे बंद करने की मांग

इंदौर 
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने साढ़े तीन वर्षीय बच्ची वियाना के संथारा (मृत्यु का प्रयास) की कथित सहमति के मामले में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और उसके माता-पिता को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने यह सवाल उठाया है कि इतनी छोटी बच्ची, जो समझने की स्थिति में नहीं थी, वह संथारा की सहमति कैसे दे सकती थी। इंदौर में साढ़े 3 साल की बच्ची के संथारा करने के मामले में इंदौर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. कोर्ट ने सुनवाई करते हुए बच्ची के माता-पिता के अलावा केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी.

बच्ची को थी ब्रेन ट्यूमर की बीमारी

बता दें कि इसी साल 21 मार्च को साढ़े 3 वर्ष की एक बच्ची ने इंदौर में संथारा लिया था. उसे ब्रेन ट्यूमर की बीमारी थी. इसके बाद जैन संतों ने बच्ची के माता-पिता को संथारा दिए जाने मार्गदर्शन दिया. बच्ची के माता-पिता ने संथारा कराया. इतनी कम उम्र में बच्ची को संथारा करवाने को लेकर इंदौर में रहने वाले प्रांशु जैन ने एडवोकेट शुभम शर्मा के माध्यम से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की.

नाबालिग के संथारा पर रोक लगाने की मांग

याचिका में कोर्ट को बताया गया "जैन समुदाय में 3 नाबालिगों का संथारा हुआ है. ये तीनों नाबालिग बालिकाएं थीं. इनमें हैदराबाद की 13 वर्षीय बच्ची, मैसूर की 10 वर्षीय और इंदौर की साढ़े 3 वर्षीय बालिका शामिल हैं." कोर्ट से मांग की गई है "याचिका का अंतिम निराकरण होने तक नाबालिग के संथारा करने पर रोक लगाई जाए." याचिकाकर्ता की बातों को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने गंभीरता से लिया.

दोनों पक्षों की बात सुनेगी हाई कोर्ट

याचिका पर सुनवाई करने के बाद हाई कोर्ट ने इंदौर में रहने बच्ची के माता-पिता के सथ ही केंद्र व राज्य सरकार से जवाब मांगा है. कोर्ट ने कहा "यह जैन समाज से जुड़ा हुआ मामला है. अतः समाज का पक्ष जानना जरूरी है. उनका पक्ष सुने बगैर आदेश नहीं दे सकते."

बच्ची दिमागी बीमारी से गंभीर रूप से पीड़ित थी
मामले में याचिकाकर्ता प्रांशु जैन ने अपने एडवोकेट शुभम शर्मा के माध्यम से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। याचिका में नाबालिग बच्चों और मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति को संथारा दिलाए जाने पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिका में उल्लेख किया है कि मानसिक रूप से कमजोर और नाबालिग बच्चों के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं किया जा सकता। बच्चों के साथ इस तरह की प्रथा बंद किए जाने की मांग याचिका में की गई है। हालांकि जिस बच्ची को संथारा दिलाया गया था वह दिमागी बीमारी से गंभीर रूप से पीड़ित थी। मंगलवार को याचिकाकर्ता ने नोटिस जारी करने की जानकारी दी। जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की डबल बेंच ने इन सभी 10 प्रतिवादीगण को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। 

यह है मामला
मामला 21 मार्च का है। बच्ची वियाना ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित थी। उसे माता-पिता इंदौर में एक आध्यात्मिक संकल्प अभिग्रहधारी महाराज के पास दर्शन करने ले गए। महाराज ने बालिका की दूसरे दिन मृत्यु की भविष्यवाणी की थी। साथ ही उसे संथारा दिलाने के लिए कहा था। इस पर माता-पिता ने उसे संथारा दिलाया था। 'गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड' में इसे सबसे कम उम्र में संथारा का रिकॉर्ड बताते हुए उन्हें सर्टिफिकेट जारी किया था। 

  क्या होती है संथारा प्रथा

बता दें कि संथारा जैन धर्म में एक धार्मिक प्रथा है, जिसमें मृत्यु को स्वीकार करने के लिए व्यक्ति स्वेच्छा से उपवास करता है. यह एक स्वैच्छिक मृत्यु है, जिसे धीरे-धीरे भोजन और पानी का त्याग किया जाता है. इसे आत्मा की शुद्धि और मुक्ति का मार्ग माना जाता है. संथारा तब लिया जाता है, जब व्यक्ति मृत्यु के करीब आने लगता है. 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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