राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई शुरू, खजुराहो मंदिर का जिक्र

नई दिल्ली
वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज से फिर सुनवाई शुरू हुई है। इस मामले की सुनवाई पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना कर रहे थे, जिन्होंने अपने रिटायरमेंट से पहले मौजूदा सीजेआई बीआर गवई की बेंच को केस सौंप दिया। याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखते हुए सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार इस ऐक्ट के माध्यम से वक्फ की संपत्तियां ही कब्जा कराना चाहती है। उन्होंने कहा कि वक्फ का अर्थ अल्लाह के लिए समर्पण से है। यदि कोई वक्फ में अपनी संपत्ति देता है तो वह एक तरह से अल्लाह के लिए दान है और उसका इस्तेमाल नहीं बदला जा सकता। वक्फ की संपत्ति को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। एक बार जो संपत्ति वक्फ रहती है, वह हमेशा वक्फ ही कहलाती है। उसमें बदलाव संभव नहीं है।

कपिल सिब्बल ने वक्फ ऐक्ट को गलत ठहराते हुए कहा, 'इसे यह कहते हुए लाया गया है कि वक्फ का इससे संरक्षण होगा, लेकिन उससे तो कब्जा होगा। इस कानून को ऐसे बनाया गया है कि बिना किसी प्रक्रिया के ही वक्फ की संपत्ति को लिया जा सके। कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं। यह तय करने वाला एक सरकारी अधिकारी होगा। यदि वह कोई फैसला इधर-उधर कर दे तो वक्फ संपत्ति पर विवाद हो सकता है। आइए अब बात करें कि आखिर वक्फ क्या है। वक्फ तो अल्लाह के प्रति एक समर्पण है। इसे किसी और को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता।'

खजुराहो मंदिर का चीफ जस्टिस गवई ने क्यों किया जिक्र
केस की सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने एक दलील प्राचीन स्थलों को लेकर भी दी। उन्होंने कहा कि कुछ ऐतिहासिक स्मारक हैं, उन्हें पहले जब सरकार के नियंत्रण में लिया जाता था, तब भी उनका वक्फ का दर्जा खत्म नहीं होता था। अब यदि किसी वक्फ संपत्ति को स्मारक का दर्जा मिलेगा तो फिर उसे वक्फ नहीं माना जाएगा। फिर एक बार जब वक्फ का दर्जा समाप्त हो जाएगा तो लोगों को प्रार्थना करने से रोक दिया जाएगा। इस तरह स्वतंत्रता के साथ उपासना करने का अधिकार प्रभावित होगा। इस पर चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि ऐसा नहीं है कि सरकारी नियंत्रण में जाने से उपासना का अधिकार प्रभावित होगा। उन्होंने कहा कि खजुराहो फिलहाल संरक्षित स्मारक है। इसके बाद भी वहां के मंदिर में आम लोग जाकर पूजा कर सकते हैं।

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

RO.NO.13286/93

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