राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

भारत-चीन को साथ लाने पर अड़ा रूस, बातचीत शुरू कर दी, त्रिगुट फिर खड़ा होगा

 मॉस्को

हाल के वर्षों में वैश्विक भू-राजनीति में तेजी से बदलाव आया है। इस बदलती दुनिया में रूस, भारत और चीन (RIC) त्रिपक्षीय मंच को दोबारा खड़ा करने की दिशा में सक्रिय प्रयास कर रहा है। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने हाल ही में इस मंच को फिर से सक्रिय करने की इच्छा जताई है। लावरोव ने कहा कि भारत और चीन के बीच तनाव में “काफी” कमी आई है और त्रिपक्षीय समूह‘आरआईसी’ का रुका हुआ काम फिर से शुरू हो सकता है। रूसी राजधानी मॉस्को में ‘2050 भविष्य का मंच’ को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आरआईसी प्रारूप में संयुक्त कार्य की बहाली बहुध्रुवीय ढांचे के निर्माण समेत यूरेशियाई प्रक्रियाओं की दिशा में पहला कदम हो सकता है। लेकिन सवाल यह है कि रूस इस त्रिगुट को फिर से खड़ा करने के लिए इतना उत्सुक क्यों है? और क्या यह प्रयास वास्तव में भारत-चीन संबंधों को सामान्य कर सकता है? आइए विस्तार से समझते हैं।
RIC त्रिगुट का इतिहास

रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिपक्षीय मंच की शुरुआत 1990 के दशक के अंत में हुई थी, जब रूस के तत्कालीन विदेश मंत्री येवगेनी प्रिमाकोव ने इसे अमेरिका-केंद्रित एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था के खिलाफ एक वैकल्पिक रणनीतिक गठजोड़ के रूप में प्रस्तावित किया था। इस मंच का उद्देश्य तीनों देशों के साझा हितों को बढ़ावा देना और वैश्विक मंच पर बहुपक्षीय सहयोग को मजबूत करना था। 2000 के दशक में यह मंच ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे अन्य बहुपक्षीय मंचों के साथ पूरक रूप से काम करता रहा।

हालांकि, 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हिंसक झड़प के बाद RIC मंच लगभग निष्क्रिय हो गया। भारत-चीन सीमा विवाद और दोनों देशों के बीच बढ़ते अविश्वास ने इस त्रिगुट को कमजोर कर दिया। इस बीच, यूक्रेन युद्ध के बाद रूस और चीन के बीच निकटता बढ़ती चली गई। हालांकि रूस बार-बार इस बात पर जोर देता रहा है कि वह भारत को अपने सबसे भरोसेमंद साझेदारों में से एक मानता है और RIC को दोबारा खड़ा करने की कोशिशों में लगा हुआ है।
रूस की उत्सुकता के पीछे की वजहें

रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने इससे पहले मई में भी एक बयान में कहा था कि भारत और चीन के बीच सीमा पर स्थिति को शांत करने की दिशा में प्रगति हुई है, और अब RIC मंच को फिर से सक्रिय करने का सही समय है। इस बयान के पीछे कई भू-राजनीतिक और रणनीतिक कारण हैं।

पश्चिमी दबाव का जवाब: लावरोव ने बार-बार पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका और नाटो, पर भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ाने का आरोप लगाया है। उनका दावा है कि पश्चिम ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के तहत भारत को चीन-विरोधी गठजोड़ (जैसे क्वाड और AUKUS) में शामिल करने की कोशिश कर रहा है। रूस का मानना है कि RIC का पुनर्जन्म पश्चिमी प्रभाव को संतुलित करने में मदद करेगा और तीनों देशों को एक स्वतंत्र, बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की दिशा में काम करने का अवसर देगा।

चीन के साथ संतुलन: रूस और चीन के बीच बढ़ती साझेदारी के बावजूद, रूस नहीं चाहता कि वह बीजिंग के प्रति अत्यधिक निर्भर हो जाए। रूस को डर है कि जनसांख्यिकीय असंतुलन और साइबेरिया जैसे क्षेत्रों में चीनी प्रवासियों की बढ़ती मौजूदगी भविष्य में उसके लिए चुनौती बन सकती है। भारत, जो रूस का दशकों पुराना साझेदार है, वह इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण संतुलन की भूमिका निभा सकता है। भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और वैश्विक मंच पर उसकी बढ़ती भूमिका रूस के लिए आकर्षक है।

भारत की रणनीतिक स्वायत्तता: भारत ने वैश्विक भू-राजनीति में अपनी स्वतंत्र नीति बनाए रखी है। वह न तो पूरी तरह पश्चिम के साथ है और न ही रूस-चीन धुरी का हिस्सा। रूस भारत की इस स्वायत्तता को महत्व देता है और इसे RIC मंच के माध्यम से मजबूत करना चाहता है। लावरोव ने कहा कि रूस के मित्र देश भारत की क्वाड में भागीदारी मुख्य रूप से केवल व्यापार और आर्थिक सहयोग तक सीमित है, और भारत इसे सैन्य गठजोड़ में बदलने के पश्चिमी प्रयासों का समर्थन नहीं करता।

क्षेत्रीय स्थिरता और ब्रिक्स की भूमिका: रूस, भारत और चीन तीनों ब्रिक्स के प्रमुख सदस्य हैं। रूस का मानना है कि RIC का पुनर्जन्म ब्रिक्स को और मजबूत करेगा, जो पश्चिमी-प्रभुत्व वाली वैश्विक व्यवस्था के खिलाफ एक वैकल्पिक मंच के रूप में उभर रहा है। इसके अलावा, रूस भारत और चीन के बीच तनाव को कम करके एशिया में स्थिरता सुनिश्चित करना चाहता है, खासकर तब जब वह स्वयं यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है।
बातचीत शुरू कर दी है, त्रिगुट फिर खड़ा होगा- रूस

रूसी समाचार एजेंसी ‘तास’ के अनुसार लावरोव ने  कहा, ‘‘मुझे वाकई उम्मीद है कि हम ‘रूस-भारत-चीन’ त्रिपक्षीय समूह के काम को फिर से शुरू कर पाएंगे। पिछले कुछ वर्षों से हमारी विदेश मंत्रियों के स्तर पर बैठक नहीं हुई है, लेकिन हम अपने चीनी सहयोगी और विदेश विभाग के भारतीय प्रमुख के साथ इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे वास्तव में उम्मीद है कि अब जब भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव कम हो गया है- मेरी राय में यह काफी हद तक कम हुआ है और हालात स्थिर हो रहा है, नई दिल्ली और बीजिंग के बीच संवाद हो रहा है, तो हम ‘रूस-भारत-चीन’ त्रिगुट के कार्य को फिर से शुरू करने में सक्षम होंगे।’’ लावरोव ने कहा कि रूस और चीन बहुध्रुवीय संरचना के निर्माण सहित अखिल महाद्वीपीय प्रक्रिया में अग्रणी और सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए। उन्होंने कहा कि आरआईसी प्रारूप की बहाली इस दिशा में पहला कदम हो सकता है। उन्होंने कहा, “यह महाद्वीपीय प्रक्रियाओं की गति में भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम होगा।”

भारत और चीन के बीच संबंधों में हाल के महीनों में कुछ सुधार के संकेत दिखे हैं। अक्टूबर 2024 में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सैनिकों को पीछे हटाने के समझौते ने चार साल से चले आ रहे गतिरोध को खत्म करने में मदद की। इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 2024 में हुई मुलाकात और विदेश मंत्रियों की बार-बार की बैठकों ने संबंधों को सामान्य करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाए हैं।

चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भी मार्च 2025 में कहा था कि दोनों देशों के बीच सहयोग ही एकमात्र सही विकल्प है। यह रुख उस समय सामने आया जब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी ने वैश्विक भू-राजनीति में अनिश्चितता पैदा की है। ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति भारत और चीन दोनों के लिए आर्थिक और रणनीतिक चुनौतियां खड़ी कर सकती है, जिसके कारण दोनों देश एक-दूसरे के साथ सहयोग बढ़ाने की दिशा में सोच रहे हैं।

हालांकि, भारत और चीन के बीच अविश्वास की खाई अभी भी गहरी है। ऑपरेशन सिंदूर (2025) के दौरान पाकिस्तान द्वारा चीनी हथियारों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करने ने तनाव को और बढ़ा दिया। इसके अलावा, देपसांग और देमचोक जैसे क्षेत्रों में LAC पर पूरी तरह से डिसएंगेजमेंट अभी बाकी है। भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता और क्षेत्रीय अखंडता पर कोई समझौता करने को तैयार नहीं है, जिसके कारण RIC मंच की सफलता पूरी तरह से भारत-चीन संबंधों की प्रगति पर निर्भर करेगी।
रूस की भूमिका और भारत की स्थिति

रूस ने भारत-पाकिस्तान तनाव को कम करने में भी मध्यस्थ की भूमिका निभाने की कोशिश की है। अप्रैल में पहलगाम हमले के बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी से बात की और आतंकवाद के खिलाफ भारत का समर्थन किया। साथ ही, रूस का लंबे समय से रुख रहा है कि जम्मू-कश्मीर भारत-पाकिस्तान का द्विपक्षीय मसला है और दोनों देशों को द्विपक्षीय बातचीत के जरिए समाधान निकालना चाहिए। यह रुख भारत के प्रति रूस की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। रूस की इस पहल का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत और चीन अपने द्विपक्षीय मुद्दों, खासकर सीमा विवाद, को कितनी प्रभावी ढंग से सुलझा पाते हैं। साथ ही, वैश्विक स्तर पर ट्रंप प्रशासन की नीतियां और पश्चिमी गठजोड़ों का रुख भी इस त्रिकोण की दिशा को प्रभावित करेगा।

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button