भोपाल का जहांगीरिया स्कूल अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा, कभी पूर्व राष्ट्रपति ने की थी यहाँ पढ़ाई

भोपाल
दीवारों में दरारें, सीलन से भीगी ईंटें और कक्षाएं जो अब खंडहरों जैसी नज़र आती हैं, ये किसी प्राकृतिक आपदा के बाद की तस्वीरें नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश के हजारों सरकारी स्कूलों की हकीकत है. राज्य सरकार की ओर से स्कूली शिक्षा के लिए इस साल 3,000 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत किया गया था, लेकिन ज़मीनी हकीकत इस राशि के प्रभाव से बिल्कुल अछूती दिखती है. जर्जर ढांचे, अधूरी मरम्मत और वादों के मलबे के बीच स्कूलों में पढ़ाई नहीं, बल्कि साहस की परीक्षा होती है. यहां बच्चे किताबों से कम और छत से ज़्यादा डरते हैं.
भोपाल में ही विडंबना की कहानी शुरू होती है. शहर की ऐतिहासिक सदर मंज़िल, जो कभी जर्जर हालत में थी, आज एक आलीशान होटल में तब्दील हो चुकी है. इसे PPP मॉडल के तहत शानदार तरीके से रेनोवेट किया गया है. इतिहास की गरिमा बरकरार रखते हुए आधुनिकता की झलक दी गई है, लेकिन इस चमक से ठीक 800 मीटर दूर एक और इमारत है- जहांगीरिया स्कूल. ये स्कूल अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है. साल 1830 में बनी और 1901 से शिक्षा का केंद्र रही इस इमारत की दीवारों से आज पानी टपकता है, प्लास्टर झड़ चुका है और छत कभी भी गिर सकती है. ये वही स्कूल है जहां भारत के पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा पढ़े थे, जिनकी तस्वीर अब एक सीलन भरी दीवार पर लटकी है. कुछ महीने पहले एक कक्षा की छत का हिस्सा अचानक ढह गया. बाहर एक पोस्टर चिपका है- यह मंज़िल असुरक्षित है, लेकिन क्लास अब भी उसी मंज़िल में लगती है.
कई बार छत से गिर चुका है प्लास्टर
एक छात्रा ज़ीनत बताती है कि हर बार बारिश होती है, तो हमारी नज़र किताबों पर नहीं, छत पर जाती है. छत से प्लास्टर कई बार गिर चुका है. हमारे माता-पिता पूछते हैं कि कब मरम्मत होगी, लेकिन प्रिंसिपल हर बार यही कहती हैं बहुत जल्दी. और वो जल्दी कभी आती ही नहीं. स्कूल के पिछले हिस्से में एक कमरा पहले ही ढह चुका है.
टीकमगढ़ में भी भरभराकर गिरी स्कूल की बिल्डिंग
टीकमगढ़ में भी बारिश के बाद एक पुराना स्कूल भवन भरभराकर गिर पड़ा. गनीमत रही कि ये स्कूल पहले से बंद था और कोई बच्चा मौजूद नहीं था, लेकिन यह घटना इस बात का संकेत है कि मध्यप्रदेश में ऐसे कई स्कूल हैं, जो अब केवल दुर्घटना के इंतज़ार में खड़े हैं.
भोपाल की तत्कालीन बेगम के आग्रह पर दान में दी थी इमारत
भोपाल के जहांगीरिया स्कूल की कहानी तब और भावुक हो जाती है, वे उसी परिवार से हैं जिन्होंने ये इमारत राज्य को दान दी थी. शहनाज़ बताती हैं कि ये बिल्डिंग भोपाल की तत्कालीन बेगम के आग्रह पर दान में दी गई थी, ताकि बच्चे पढ़ सकें. लेकिन आज शहनाज़ की आंखों में आंसू हैं. उन्होंने कहा कि हर साल बजट पास होता है, लेकिन कभी स्कूल तक नहीं पहुंचता. जब विरासत भवनों को होटल बनाया जा सकता है, तो इस स्कूल को क्यों नहीं बचाया जा सकता?
सुल्तानिया स्कूल भी कमजोर ढांचे में तब्दील
भोपाल का सुल्तानिया स्कूल भी अब कमजोर ढांचे में तब्दील हो चुका है. 50 साल पुरानी इस इमारत में बारिश के दौरान छत टपकती है. दीवारें रिसती हैं और बिजली की तारें खुलकर लटकती हैं. स्कूल का निचला तल पूरी तरह बंद कर दिया गया है. हालांकि इसका कोई सरकारी आदेश नहीं आया, बल्कि ये निर्णय स्कूल प्रशासन ने बच्चों की सुरक्षा के लिए लिया है. पुरानी इलेक्ट्रिक फिटिंग बड़े हादसे को न्योता देती है.
हर पल रहता है खतरा
प्रिंसिपल रूबीना अरशद ने ऐसी फाइलें दिखाईं जिनमें कई सालों की चिट्ठियां, निवेदन और रिमाइंडर दर्ज हैं. दो साल पहले PWD के इंजीनियर ने साफ शब्दों में कहा था कि ये भवन असुरक्षित है, इसे गिराकर दोबारा बनाया जाना चाहिए, लेकिन तब से फाइलें, दूसरी फाइलों में ही दबी हैं. महिला शिक्षक रशीदा और सुषमा हर दिन क्लास लेती हैं, इस डर के साथ कि कहीं आज कुछ टूट न जाए.
क्या बोले स्कूली शिक्षा मंत्री?
स्कूली शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह से सवाल किया, तो उन्होंने स्वीकार किया कि हां, खामियां हैं. मंत्री राव उदय प्रताप ने ये भी कहा कि आजतक इसके पहले भी कई बार जर्जर स्कूल को लेकर कई रिपोर्ट कर चुका है, जिसके आधार पर उन्होंने कई बार संज्ञान भी लिया है. उन्होंने कहा कि मरम्मत के लिए वित्त विभाग को भेजा गया है, स्वीकृति का इंतज़ार है. कुछ बजट विभाग के पास है जिससे जल्द ही मरम्मत का काम शुरू होगा. बच्चों को दूसरी जगहों पर शिफ्ट भी किया जाएगा और सरकार इसे लेकर चिंतित है. जल्द काम पूरा होगा.