राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

17 भाषाओं के ज्ञाता नरसिम्हा राव हिंदी में क्यों थे कमजोर? नायडू की चाल ने पलटा स्टालिन का खेल!

तमिलनाडु
हिंदी भाषा को लेकर महाराष्ट्र से लेकर तमिलनाडु तक एक नया विवाद पसर गया है. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 में प्रस्तावित तीन भाषा सिद्धांत में हिंदी को शामिल करने का प्रावधान है. इसी को लेकर दक्षिणी राज्यों में तीखी प्रतिक्रिया दी है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस नीति का जोरदार विरोध करते हुए द्रविड़ संस्कृति और क्षेत्रीय अस्मिता का हवाला दिया है. उन्होंने दक्षिण के अन्य राज्यों को एकजुट करने की कोशिश की, लेकिन उनके पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने इस राजनीति पर करारा प्रहार किया है. नायडू ने हिंदी को लेकर एक ऐसा बयान दिया, जिसने स्टालिन की रणनीति को ध्वस्त कर दिया.

नायडू ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव हिंदी सहित 17 भाषाओं के जानकार थे. उन्होंने अपने बहुभाषी ज्ञान के बल पर देश और दुनिया में प्रतिष्ठा हासिल की. नायडू ने जोर देकर कहा कि यदि कोई व्यक्ति हिंदी जैसी भाषा सीखता है तो इसमें क्या दिक्कत है? यह बयान सीधे तौर पर स्टालिन पर निशाना है, जो हिंदी को दक्षिण पर थोपी जाने वाली भाषा बता रहे हैं. नरसिम्हा राव आंध्र प्रदेश से ताल्लुक रखते थे. वे 1991 में आर्थिक उदारीकरण के जनक के रूप में जाने जाते हैं. वे 17 भाषाओं तेलुगु, हिंदी, मराठी, तमिल, बंगाली, गुजराती, ओडिया, कन्नड़, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, फ्रेंच, अरबी, जर्मन, फारसी और स्पेनिश के जानकार थे. उनकी यह काबिलियत उनकी बौद्धिक क्षमता का प्रतीक थी. नायडू ने इसे एक उदाहरण के तौर पर पेश किया कि भाषा सीखना व्यक्तिगत विकास और राष्ट्रीय एकता का हिस्सा हो सकता है.

एनडीए के सहयोगी हैं नायडू
चंद्रबाबू नायडू केंद्र में सत्ताधारी एनडीए के महत्वपूर्ण सहयोगी हैं और आंध्र प्रदेश में भी उनकी अगुआई वाली सरकार एनडीए का हिस्सा है. ऐसे में उनका यह बयान न केवल क्षेत्रीय राजनीति, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण हो जाता है. उनका समर्थन केंद्र की नीतियों को मजबूती देता है, खासकर तब जब तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्य हिंदी थोपने का आरोप लगा रहे हैं. स्टालिन ने दावा किया कि तीन-भाषा फॉर्मूला द्रविड़ पहचान को नुकसान पहुंचाएगा, लेकिन नायडू ने इसे व्यक्तिगत पसंद और प्रगति का मुद्दा बनाकर उनकी दलील को कमजोर कर दिया.
 
इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी महाराष्ट्र में मराठी वाया हिंदी विवाद को शांत करने की कोशिश की. हाल ही में उन्होंने राज्यसभा के लिए नामित वकील उज्ज्वल निकम को फोन कर मराठी में बात की. यह कदम मराठी भाषा के प्रति उनके सम्मान को दर्शाता है. पीएम मोदी खुद गुजराती बोलते हैं, लेकिन वह हिंदी, मराठी और अन्य भाषाओं में निपुण हैं, जिससे उनकी बहुभाषी क्षमता सामने आई. पीएम मोदी का यह कदम महाराष्ट्र में शिवसेना और मनसे जैसे दलों के हिंदी विरोधी रुख को नरम करने की कोशिश मानी जा रही है. हिंदी विवाद ने दक्षिण और पश्चिमी राज्यों में सियासी तनाव बढ़ाया है. तमिलनाडु में डीएमके और महाराष्ट्र में शिवसेना-उद्धव ठाकरे गुट ने केंद्र पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया, जबकि कर्नाटक में भी विरोध देखा गया. दूसरी ओर नायडू का बयान आंध्र प्रदेश को इस विवाद से अलग रखता है.

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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