राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

डॉ. मोहन भागवत का बयान: स्वास्थ्य और शिक्षा के व्यवसायीकरण से आम लोगों की पहुंच घटी

इंदौर
 स्वास्थ्य और शिक्षा समाज की आवश्यकता है। ज्ञान के लिए शिक्षा और ज्ञान पाने के लिए स्वस्थ शरीर जरूरी है। दुर्भाग्य है कि अच्छा स्वास्थ्य और शिक्षा सामान्य आदमी की पहुंच से बाहर हैं। यह काम पहले सेवा के नाते किए जाते थे, लेकिन अब स्वास्थ्य और शिक्षा भी व्यावसायिक हो गई है। पहले शिक्षा देना कर्तव्य माना जाता था। अभी भी ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को अच्छी चिकित्सा के लिए शहरों की ओर जाना पड़ता है।

कैंसर के उपचार के लिए दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों का रुख करना पड़ता है। वर्तमान में समाज को सहज, सुलभ और कम खर्च वाली चिकित्सा की जरूरत है। ये बातें सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने इंदौर में गुरुजी सेवा न्यास के तहत माधव सृष्टि आरोग्य केंद्र के द्वितीय चरण में तैयार हुए कैंसर केयर व रिसर्च सेंटर के शुभारंभ अवसर पर कही।

उन्होंने कहा कि इंदौर में कम दाम में गुणवत्ता पूर्ण स्वास्थ्य सेवा देने का यह प्रयास प्रशंसनीय कार्य है। कार्यक्रम के दौरान प्रांत संघचालक प्रकाश दीक्षित और सिंबायोटिक कंपनी के डायरेक्टर अनिल सतवानी भी उपस्थित थे।

हमारी संस्कृति कहती है सशक्त लोग सभी को जीवन देंगे

डॉ. भागवत ने कहा कि पश्चिमी देशों के लोग कहते हैं कि सशक्त लोग ही जीएंगे। हमारी संस्कृति कहती है कि सशक्त लोग सभी को जीवन दिलवाएंगे। समाज सुखी होगा तो व्यक्ति सुखी होगा। उन्होंने कहा कि बचपन में मलेरिया होने पर मैं तीन दिन स्कूल नहीं गया। उस समय मेरे स्कूल शिक्षक घर आए। वे मेरे लिए जंगल में जाकर जड़ी-बूटी ले आए। उन्हें चिंता थी कि जो छात्र मेरे पास आया है, वो स्वस्थ भी रहना चाहिए। समाज को सहज सुलभ चिकित्सा चाहिए। कार्पोरेट युग में अब शिक्षा हब बन चुके हैं।

संवेदना, सहवेदना से ही मिलता है समाधान

भागवत बोले कि संवाद से मनुष्य को अपनी वेदना में सहयोग मिलता है। कैंसर मरीजों से यदि संवाद किया जाए तो उसे हिम्मत मिलती है। एक किस्सा सुनाते हुए वे बोले कि एक सज्जन से बीमार व्यक्ति से मिला। उन्होंने उसे सिर्फ यह हिम्मत दी कि तुम्हारे उपचार के लिए 10 लाख मैं दे दूंगा। इतनी राशि उनके पास नहीं थी, लेकिन उनकी दी गई हिम्मत से ही युवक स्वस्थ हुआ और परेशानियों को दूर कर सका।
मरीज की जरूरत के अनुसार संबंधित पैथी से हो उपचार

डॉ. भागवत ने कहा कि पश्चिम का दृष्टिकोण यह है कि एक ही बात दुनिया पर लागू करना। विदेश में चिकित्सा पर हुई रिसर्च सब जगह लागू नहीं हो सकती, क्योंकि विश्व में विविधता है। किसी को नैचुरोपैथी से फायदा होता है तो किसी को होम्योपैथी से। कोई एक पैथी सर्वश्रेष्ठ नहीं हो सकती।

भारतीय चिकित्सा पद्धति मरीजों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुसार इलाज करती है। कुछ बीमारियों में होम्योपैथी, आयुर्वेद और नैचुरोपैथी से भी इलाज संभव है। मनुष्य की विविधता का ध्यान रख उनके इलाज अनुरूप पैथी में होना चाहिए।
भागवत की पाठशाला के मंत्र

    ‘विद्या ददाति विनयं, विनयाद्याति पात्रतां | पात्रत्वाद्धनमाप्नोति, धनाद्धर्मं ततः।’ विद्या के साथ स्वास्थ्य लाभ लेने में भी विनय होना चाहिए।

    इंदौर में लोगों को बेहतर उपचार के लिए प्रकल्प बेहतर काम कर रहा है। कभी यह मन में न आए कि हम तीस मार खां हैं। नेकी करो, कुएं में डालो। गर्व का भाव रहे, लेकिन अहंकार नहीं आए।

    मराठी में कहावत है कि देने वाला देता जाए, लेने वाला लेता जाए, लेने वाला भी आगे जाकर देने वाला भी बन जाए।

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button