सावधान! अल नीना का असर, भारी बारिश के बाद पड़ेगी कड़ाके की ठंड

नई दिल्ली
देशभर के कई हिस्सों में मूसलाधार बारिश की वजह से बाढ़ के हालात हैं। खासकर पंजाब-हरियाणा में हालात बदतर हो चले हैं। इस बीच, विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने ताजा जानकारी देते हुए पूर्वानुमान जताया है कि सितंबर में और अधिक बारिश हो सकती है और इस साल कड़ाके की ठंड पड़ सकती है क्योंकि ‘ला नीना’ सितंबर में वापस आ रहा है। इसका मौसम और जलवायु प्रणाली पर गंभीर असर पड़ता है। ला नीना के प्रभाव से ठंड के दिनों में तापमान में बड़ी गिरावट होने की संभावना रहती है। इससे उत्तर भारत में हांड़ कंपाने वाली ठंड का दौर भी रह सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 'ला नीना' के अस्थायी शीतलन प्रभाव (यानी ठंडा करने के प्रभाव) के बावजूद दुनिया के अधिकतर हिस्सों में वैश्विक तापमान अब भी औसत से अधिक रहने की संभावना है। बता दें कि 'ला नीना' और 'अल नीनो' प्रशांत महासागर के जलवायु चक्र के दो विपरीत चरण हैं। अल नीनो पेरू के निकट समुद्री जल के समय-समय पर गर्म होने को संदर्भित करता है जो भारत में मॉनसून को अक्सर कमजोर करता है और इसके कारण सर्दियां अपेक्षकृत गर्म रहती है।
ला नीना का क्या प्रभाव?
वहीं, ला नीना इस जल को ठंडा करता है, जिससे भारत में आमतौर पर मॉनसून बहुत मजबूत होता है और मूसलाधार बारिश होती है। इसके अलावा सर्दियों में अन्य सालों के मुकाबरे अपेक्षाकृत ज्यादा और कड़ाके की ठंड पड़ती है। अल नीनो की घटना आमतौर पर एक वर्ष से अधिक समय तक नहीं रहती है,जबकि इसके विपरीत ला नीना की घटनाएँ एक वर्ष से तीन वर्ष तक बनी रह सकती हैं। विश्व मौसम विज्ञान संगठन का कहना है कि ला नीना और अल नीनो जैसी प्राकृतिक रूप से होने वाली जलवायु घटनाएं मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के व्यापक संदर्भ में घटित हो रही हैं जिससे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, मौसम की चरम परिस्थितियों की तीव्रता बढ़ रही है और मौसमी वर्षा एवं तापमान की प्रणाली में बदलाव आ रहा है।
मार्च से स्थितियां तटस्थ बनी हुई हैं
बता दें कि तटस्थ स्थितियां (न अल नीनो और न ही ला नीना) मार्च 2025 से बनी हुई हैं और भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह के तापमान में असमानताएं औसत के आसपास बनी हुई हैं। संगठन ने कहा कि ये स्थितियां सितंबर से धीरे-धीरे ला नीना का रूप ले सकती हैं। WMO के मौसमी पूर्वानुमान वैश्विक केंद्रों के पूर्वानुमानों के अनुसार, भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह के तापमान के सितंबर-नवंबर 2025 की अवधि के दौरान ईएनएसओ (अल नीनो-दक्षिणी दोलन)-तटस्थ स्तर पर बने रहने की 45 प्रतिशत और ला नीना स्तर तक ठंडा होने की 55 प्रतिशत संभावना है।
अक्टूबर से दिसंबर 2025 के बीच ला नीना के संभावना 60%
यानी अक्टूबर से दिसंबर 2025 के बीच ला नीना की संभावना लगभग 60 प्रतिशत तक बढ़ती दिखती है, जबकि अल नीनो की संभावना कम रहती है। विश्व मौसम संगठन की महासचिव सेलेस्टे साउलो ने कहा, ‘‘अल नीनो और ला नीना के मौसमी पूर्वानुमान और हमारे मौसम पर उनके प्रभाव एक महत्वपूर्ण जलवायु उपकरण हैं। ये पूर्वानुमान कृषि, ऊर्जा, स्वास्थ्य और परिवहन जैसे प्रमुख क्षेत्रों में लाखों डॉलर की आर्थिक बचत के रूप में तब्दील होते हैं और जब इनका इस्तेमाल, तैयारी एवं प्रतिक्रिया कार्यों के मार्गदर्शन में किया जाता है तो हजारों लोगों की जान बच जाती है।’’
अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) वैश्विक जलवायु प्रणाली का एक प्रमुख चालक है लेकिन यह पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करने वाला एकमात्र कारक नहीं है। विश्व मौसम संगठन के वैश्विक मौसमी जलवायु अद्यतन उत्तरी अटलांटिक दोलन, आर्कटिक दोलन और हिंद महासागर द्विध्रुव जैसी अन्य प्रणालियों को भी ध्यान में रखते हैं। नवीनतम अद्यतन में सितंबर से नवंबर तक उत्तरी गोलार्ध के अधिकतर भागों और दक्षिणी गोलार्ध के बड़े हिस्से में सामान्य से अधिक तापमान का अनुमान लगाया गया है।