क्या कोई खुद राइफल से सीने में गोली मार सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने उठाया सवाल

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई के दौरान पुलिस से कड़ा सवाल पूछा। कोर्ट ने पूछा कि क्या कोई व्यक्ति राइफल से अपने सीने में गोली मार सकता है? शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश से पुलिस से यह सवाल पूछा है। यह मामला मौत के मामले को सुसाइड की तरह पेश करने से जुड़ा हुआ है। अदालत ने यह भी पूछा कि क्या क्या सभी एंगल पर जांच हो चुकी है? क्या यह एंगल भी देखा जा चुका है कहीं यह मामला मर्डर का तो नहीं है?
सुनवाई के वक्त बेंच ने क्या कहा
जस्टिस मनोज मिश्रा और उज्जल भुयान की बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारी समझ से यह जांच का विषय है कि क्या कोई व्यक्ति अपने सीने में राइफल से गोली मारने में सक्षम है? अभियोजन पक्ष के अनुसार, ऐसा प्रतीत हुआ कि मृतक ने राइफल से अपनी छाती में गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। इस पर, हाई कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत आरोपी-प्रतिवादी नंबर 2 को अग्रिम जमानत दे दी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट को इस बात पर संदेह था कि क्या कोई व्यक्ति राइफल से अपनी छाती में खुद को गोली मार सकता है। इसलिए उसने राज्य के हलफनामे, मृतक की ऑटोप्सी रिपोर्ट और जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री को तलब किया। अदालत ने कहा कि हलफनामे में राइफल की जब्ती और उसकी लंबाई के बारे में जानकारी का खुलासा होना चाहिए।
यह है पूरा मामला
यह मामला याचिकाकर्ता के 17 वर्षीय बेटे से संबंधित है। उसके बेटे ने भोपाल की एक अकादमी में शॉटगन शूटिंग प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में दाखिला लिया था। यहां पर प्रतिवादी नंबर दो ने बेटे के ऊपर 40 हजार रुपए चुराने का आरोप लगाया। आरोपों के अनुसार, प्रतिवादी नंबर 2 और अकादमी के अन्य छात्रों ने याचिकाकर्ता के बेटे को अपना अपराध स्वीकार करने की धमकी दी। उन्होंने उसका फोन छीन लिया और अपराध स्वीकार करने वाले संदेश भेजे, साथ ही उसकी पिटाई भी की। उनके इस व्यवहार से दुखी और असमर्थ होकर, याचिकाकर्ता के बेटे ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।
घटना से पहले मृतक ने क्या किया
इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना से पहले, मृतक ने अपने एक दोस्त और अपनी बहन को बताया था कि वह आत्महत्या कर रहा है। उसने अपने दोस्त के पास एक सुसाइड नोट भी छोड़ा था, जिसमें उसने अकादमी के छात्रों (प्रतिवादी नंबर 2 सहित) को दोषी ठहराया था। लगभग एक महीने के बाद, भारतीय न्याय संहिता की धारा 107 के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई थी। शुरुआत में, सत्र न्यायालय ने प्रतिवादी नंबर 2 की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। हालांकि बाद में हाई कोर्ट ने उसे यह राहत प्रदान कर दी।
उम्र के संबंध में भी गलती
याचिकाकर्ता के अनुसार, हाई कोर्ट ने न केवल उसके बेटे की आत्महत्या की घटना को मामूली बना दिया, बल्कि मृतक को दबाव न झेल पाने का दोषी ठहराया और आरोपी के कृत्यों का बचाव किया। यह दावा किया गया है कि हाई कोर्ट ने मृतक की उम्र 18 मानकर गलती की, जबकि घटना के समय वह 17 साल का था, और इस प्रकार, एक नाबालिग को आत्महत्या के लिए उकसाने का गंभीर अपराध लागू होता है। याचिकाकर्ता का यह भी तर्क है कि प्रतिवादी नंबर 2 एक प्रभावशाली परिवार से संबंधित है। उसकी हिरासत में पूछताछ आवश्यक है क्योंकि प्राथमिकी दर्ज होने के बाद भी उसने जांच में सहयोग नहीं किया।