स्वास्थ्य

डेंगू: बचाव और इलाज की हर जानकारी

कोई मच्छर काट ले तो टेंशन में न आएं। हर मच्छर डेंगू वाला नहीं होता। बुखार आ जाए तो भी घबराने की जरूरत नहीं। हर बुखार डेंगू का नहीं होता। डेंगू हो भी जाए तो पैनिक न हों। डेंगू में सिर्फ 1 फीसदी माले ही रिस्की होते हैं। बुखार का मैनेजमेंट घर में करें। डॉक्टर से इलाज कराएं। जब तक डॉक्टर न कहे, अस्पताल में भर्ती न हों। एक्सपर्ट्स से बात करके डेंगू से बचाव और इलाज पर जानकारी दे रहे हैं हम…

क्या है बुखार
जब हमारे शरीर पर कोई बैक्टिरिया या वायरस हमला करता है तो हमारा शरीर अपने आप ही उसे मारने की कोशिश करता है। इसी मकसद से शरीर जब अपना टेम्प्रेचर बढ़ाता है तो उसे ही बुखार कहा जाता है। जब भी शरीर का टेम्प्रेचर नॉर्मल (98.3) से बढ़ जाए तो वह बुखार माना जाएगा। आमतौर पर छोटे बच्चों को बुखार होने पर उनके हाथ-पांव तो ठंडे रहते हैं लेकिन माथा और पेट गर्म रहते हैं इसलिए उनके पेट से उनका बुखार चेक किया जाता है। कई बार बुखार 104-105 डिग्री फॉरनहाइट तक भी पहुंच जाता है।

कहीं यह बुखार डेंगू तो नहीं
डेंगू वाले मच्छर के किसी इंसान को काटने के बाद डेंगू का वायरस इंसान के ब्लड में 2-7 दिनों तक रहता है। डेंगू बुखार के लक्षण मच्छर के काटने के 4-7 दिनों में दिखते हैं। कभी-कभी इसमें 14 दिनों का वक्त भी लगता है। बुखार अक्सर तेज होता है और दिन में 4-5 बार आता है। डेंगू बुखार तकरीबन 7-10 दिनों तक बना रहता है और अपने आप ठीक हो जाता है। बुखार से प्रभावित कुल लोगों में से 10 फीसदी को ही हॉस्पिटल ले जाने की जरूरत होती है।

डेंगू के सामान्य लक्षण हैंः बुखार, तेज बदन दर्द, सिर दर्द खास तौर पर आंखों के पीछे, शरीर पर दाने आदि। डेंगू ऐसा भी हो सकता है कि इसके लक्षण न उभरें। ऐसे मरीज का टेस्ट करने पर डेंगू पॉजिटिव आता है लेकिन वह खुद-ब-खुद बिना किसी इलाज के ठीक हो जाता है। दूसरी तरह का डेंगू बीमारी के लक्षणों वाला होता है।

यह भी तीन किस्म का होता हैः क्लासिकल डेंगू फीवर, डेंगू हेमरेजिक फीवर और डेंगू शॉक सिंड्रोम। क्लासिकल डेंगू फीवर एक नॉर्मल वायरल फीवर है। इसमें तेज बुखार, बदन दर्द, तेज सिर दर्द, शरीर पर दाने जैसे लक्षण दिखते हैं। यह डेंगू 5-7 दिन के सामान्य इलाज से ठीक हो जाता है। डेंगू हेमरेजिक फीवर थोड़ा खतरनाक साबित हो सकता है। इसमें प्लेटलेट और डब्लूबीसी की संख्या कम होने लगती है। नाक और मसूढ़ों से खून आना, शौच या उलटी में खून आना या स्किन पर गहरे नीले-काले रंग के चकत्ते जैसे लक्षण भी हो सकते हैं। डेंगू शॉक सिंड्रोम में मरीज धीरे-धीरे होश खोने लगता है, उसका बीपी और नब्ज एकदम कम हो जाती है और तेज बुखार के बावजूद स्किन ठंडी लगती है।

…ताकि पैदा न हों मच्छर
डेंगू के बचाव के लिए मच्छरों को पैदा होने से रोकना और काटने से रोकना, दोनों जरूरी हैंः कहीं भी खुले में पानी रुकने या जमा न होने दें। साफ पानी भी गंदे पानी जितना ही खतरनाक है। पानी पूरी तरह ढककर रखें। कूलर, बाथरूम, किचन आदि में जहां पानी रुका रहता है में दिन में एक बार मिट्टी का तेल डाल दें। ऐसा करने से उनमें मच्छरों के अंडे डिवेलप नही होंगे।

एसीः अगर विंडो एसी के बाहर वाले हिस्से के नीचे पानी टपकने से रोकने के लिए ट्रे लगी हुई है तो उसे रोज खाली करना न भूलें। उसमें भी ब्लीचिंग पाउडर डाल कर रख सकते हैं।

कूलरः इसका इस्तेमाल बंद कर दें। अगर नहीं कर सकते तो उसका पानी रोज बदलें और उसमें ब्लीचिंग पाउडर या बोरिक एसिड जरूर डालें।

गमलेः ये चाहे घर के भीतर हों या बाहर, इनमें पानी जमा न होने दें। गमलों के नीचे रखी ट्रे भी रोज खाली करना न भूलें।

छतः छत पर टूटे-फूटे डिब्बे, टायर, बर्तन, बोतलें आदि न रखें या उलटा करके रखें। पानी की टंकी को अच्छी तरह बंद करके रखें। पक्षियों को दाना-पानी देने के बर्तन को रोज पूरी तरह से खाली करके साफ करने के बाद पानी भरें।

किचन, बाथरूमः सिंकध्वॉशबेसिन में भी पानी जमा न होने दें। हफ्ते में एक बार अच्छी तरह से सफाई करें। पानी स्टोर करने के बाद बर्तन पूरी तरह ढक कर रखें। बेहतर तो यह है कि गीले कपड़े से ऐसे बर्तनों को ढकें ताकि मच्छर को जगह न मिले। नहाने के बाद बाथरुम को वाइपर और पंखे की मदद से सुखा दें।

ड्रॉइंगरूमः घर के अंदर सभी जगहों में हफ्ते में एक बार मच्छरनाशक दवाई का छिड़काव जरूर करें। डाइनिंग टेबल में सजाने के लिए रखे फूलों या फूलों के बर्तन में पानी रोज बदलें

…ताकि न काटें मच्छर
आउटडोर में पूरी बांह की शर्ट, बूट, मोजे और फुल पैंट पहनें। खासकर बच्चों के लिए इस बात का जरूर ध्यान रखें। मच्छर गाढ़े रंग की तरफ आकर्षित होते हैं इसलिए हल्के रंग के कपड़े पहनें। तेज महक वाली परफ्यूम लगाने से बचें क्योंकि मच्छर किसी भी तरह की तेज महक की तरफ आकर्षित होते हैं। कमरे में मच्छर भगानेवाले स्प्रे, मैट्स, कॉइल्स आदि का प्रयोग करें। मस्किटो रेपलेंट को जलाते समय सावधानी बरतें। इन्हें जलाकर कमरे को 1-2 घंटे के लिए बंद कर दें। सोने से पहले खिड़की-दरवाजे खोल लें। खिड़की, दरवाजे बंद रखेंगे तो सांस की बीमारी हो सकती है।

घर की मेन एंट्रेंस के बाहर लगी ट्यूब लाइट के पास मस्किटो रेपलेंट (गुडनाइट, ऑलआउट आदि) जलाकर रखें। इससे गेट खुलने पर अंदर आनेवाले मच्छरों को रोका जा सकेगा। आजकल इसे 24 घंटे जलाकर रखें ताकि मच्छर को जगह न मिले। सोने से पहले हाथ-पैर और शरीर के खुले हिस्सों पर विक्स लगाएं। इससे मच्छर पास नहीं आएंगे। एक नीबू को बीच से आधा काट लें और उसमें खूब सारे (6-7) लौंग घुसा दें। इसे कमरे में रखें। मच्छर भाग जाएंगे। मच्छरों को भगाने और मारने के लिए गुग्गुल जलाएं। लैवेंडर ऑयल की 15-20 बूंदें, 3-4 चम्मच वनीला एसेंस और चैथाई कप नीबू रस को मिलाकर एक बोतल में रखें। शरीर के खुले हिस्सों पर लगाने से पहले अच्छी तरह मिलाएं। इसे लगाने से मच्छर दूर रहते हैं। तुलसी का तेल, पुदीने की पत्तियों का रस, लहसुन का रस या गेंदे के फूलों का रस शरीर पर लगाने से भी मच्छर भागते हैं।

…बढ़ाएं इम्युनिटी
इम्युनिटी यानी बीमारियों से लड़ने की शरीर की क्षमता अच्छी हो तो कोई भी बीमारी आपको आसानी से दबोच नहीं पाती। इम्युनिटी बढ़ाने के लिए बैलेंस्ड डाइट लें। मौसमी फल, हरी सब्जियां, दाल, दूध-दही आदि खूब लें। हालांकि इम्युनिटी एक-दो दिन में नहीं बढ़ती। इसके लिए लंबे समय तक रुटीन का ध्यान रखना पड़ता है। खाने में हल्दी का इस्तेमाल करें। सुबह-शाम आधा-आधा छोटा चम्मच हल्दी पानी या दूध के साथ लें। तुलसी के 8-10 पत्ते शहद के साथ मिलाकर लें या तुलसी के 10 पत्तों को आधे गिलास पानी में उबालें। पानी आधा रह जाए तो उसे पी लें। विटामिन-सी से भरपूर चीजों जैसे आंवला, संतरा, मौसमी आदि रोजाना लें।

आधा चम्मच अश्वगंधा सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध के साथ लें। रोजाना 2 ताजे आंवले का रस या एक चम्मच इसका चूर्ण लें। सुबह खाली पेट लहसुन की दो कलियां ताजे पानी के साथ ले सकते हैं। बकरी का दूध पीने से भी इम्युनिटी बढ़ती है। एक कप पानी में एक चम्मच गिलोय का पाउडर या इसकी 4-5 इंच की डंडी, 2 काली मिर्च और तुलसी के 8-10 पत्ते मिलाकर पानी में उबालें और उसमें आधा नीबू मिलाकर पी लें। ऐसा महीना भर करने से किसी भी तरह का बुखार होने का खतरा कम हो जाता है। होम्योपैथिक दवा यूपाटोरियम परफोलिएटम 30सी लें। बड़े 5 गोली और बच्चे 2 गोली रोजाना 3 दिन तक खाली पेट लें सकते हैं।

डेंगू के लिए प्रमुख टेस्ट

डेंगू के लिए 3 प्रमुख टेस्ट होते हैंः एंटिजन ब्लड टेस्ट (एनएस-1), डेंगू एंटिबॉडी और प्लेटलेट्स काउंट। अगर बुखार के शुरुआती 1-3 दिन में टेस्ट कराना है तो एनएस-1 करा सकते हैं, लेकिन 4-5 दिन बाद टेस्ट कराते हैं तो एंटिबॉडी टेस्ट (डेंगू सिरॉलजी) कराना बेहतर है। टोटल काउंट और डब्लूबीसी और आरबीसी आदि का अलग-अलग काउंट कराना चाहिए। दिल्ली में सरकार ने एनएस-1 डेंगू टेस्ट की कीमत 600 रुपये, डेंगू एंटिबॉडी टेस्ट 600 रुपये और प्लेटलेट्स काउंट की 50 रुपये तय कर दी है। डेंगू की लैबोरेट्री जांच में मरीज के खून में एंटिजन आईजीएम और आईजीजी एवं प्रोटीन एनएस-1 देखे जाते हैं। एनएस-1 की मौजूदगी से यह पता चलता है कि मरीज के अंदर डेंगू वायरस का इंफेक्शन है लेकिन जरूरी नहीं कि उसे डेंगू फीवर हो। आईजीएम व आईजीजी में से अगर केवल आईजीजी पॉजिटिव है तो इसका मतलब है कि मरीज को पहले कभी डेंगू रहा है। कभी-कभी इन तीनों में से किसी के भी पॉजिटिव होने पर डॉक्टर मरीज में डेंगू का डर पैदा करके उनसे ठगी कर लेते हैं।

डेंगू में प्लेटलेट्स और पीसीवी दोनों का ध्यान रखना जरूरी है। पीसीवी ब्लड में रेड ब्लड सेल्स का प्रतिशत बताता है। यह सेहतमंद पुरुषों में 45 फीसदी और महिलाओं में 40 फीसदी होता है। डेंगू में बढ़ सकता है। इसके बढ़ने का मतलब खून का गाढ़ा होना है। अगर पीसीवी बढ़ रहा है तो खतरनाक है। हेल्दी आदमी के शरीर में डेढ़ से 4.5 लाख तक प्लेटलेट्स होते हैं। अगर प्लेटलेट्स 1.5 लाख से कम आएं तो घबराने की जरूरत नहीं। हर 2-3 दिन में प्लेटलेट्स का टेस्ट करवाते रहें। अगर तबियत न बिगड़े तो 5-8 दिनों में टेस्ट कराएं। इलाज से अगर प्लेटलेट्स बढ़ने लगें तो प्लेटलेट्स टेस्ट का अंतराल बढ़ा कर 14 दिन तक कर सकते हैं। एक बार 1.5 लाख से ऊपर पहुंच जाने पर तकरीबन 1 महीने पर टेस्ट कराएं। प्लेटलेट्स काउंट 3 लाख तक पहुंचने तक टेस्ट कराएं। प्लेटलेट्स गिरकर 20 हजार तक या उससे नीचे हों तो प्लेटलेट्स चढ़ाने पड़ते हैं। हालांकि अगर ब्लीडिंग नहीं है तो इससे नीचे आने पर भी कई बार प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती।

डेंगू की पाठशाला
डेंगू का वायरस मूल रूप से चार तरह का होता है। डेन1, डेन2, डेन3 और डेन4 सेरोटाइप। डेन1 और डेन3 सेरोटाइप का डेंगू डेन2 सेरोटाइप और डेन4 सेरोटाइप के मुकाबले कम खतरनाक होता है। इस साल डेन2 और डेन4 ही ज्यादा देखने को मिल रहा है। एम्स के अनुसार पहली बार ऐसा हुआ है कि डेन4 सेरोटाइप वाला डेंगू दिल्ली में सबसे ज्यादा फैल रहा है। इसका साथ डेन2 सेरोटाइप का डेंगू दे रहा है।

घर में डेंगू मरीज की देखभाल
100 डिग्री तक बुखार है तो दवा की जरूरत नहीं है। बुखार और शरीर दर्द को मैनेज करने के लिए पैरासिटामॉल दें। बुखार होने पर मरीज को हर 6 घंटे में पैरासिटामोल की एक गोली दें। यह मार्केट में क्रोसिन, कालपोल आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। दूसरी कोई गोली डॉक्टर से पूछे बिना न दें। किसी भी बुखार में एस्प्रिन (डिस्प्रिन आदि), कॉम्बिफ्लेम, निमोस्लाइड, ब्रूफेन आदि बिल्कुल न लें। अगर बुखार 102 से ऊपर है तो मरीज के शरीर पर सामान्य पानी की पट्टियां रखें। पट्टियां तब तक रखें, जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए। ठंडे पानी की पट्टियों या स्पंज बाथ से बुखार बहुत जल्दी उतर जाएगा। मरीज को ठंडी जगह पर आराम करने दें। एसी या कूलर चलाएं रखें। मरीज को नहाना बंद नहीं करना चाहिए। नॉर्मल पानी या हल्के गुनगुने पानी से नहाना बेहतर है। उसे जबरन चादर ओढ़ने को न कहें। पसीना आने पर बुखार चला जाता है, यह सोच सही नहीं है। मरीज का खाना बंद न करें। वह जो खाना चाहते हैं, खाने दें। पानी खूब पिलाएं। साथ में नीबू पानी, छाछ, लस्सी, दूध, जूस, नारियल पानी आदि भी भरपूर दें। रोज तकरीबन 4-5 लीटर लिक्विड लें। हर 2 घंटे या उससे पहले भी कुछ-न-कुछ लिक्विड जरूर लें।

डेंगू में हालात तभी खराब होते हैं जब शरीर में पानी की कमी हो जाती है। तकरीबन हर 3-4 घंटे में पेशाब आना खतरे से बाहर रहने की निशानी है। बुखार के वक्त मरीज के सांस फूलने की स्थिति पर ध्यान दें। खासतौर पर तब जब पेशंट को बुखार न हो। अगर बु्खार न होने पर भी पेशंट की सांस फूल रही है तो उसे डॉक्टर के पास ले जाएं। डेंगू पहली बार में उतना खतरनाक नहीं होता, जितना दोबारा होने पर होता है। जिन्हें पहले डेंगू हो चुका है, वे खासतौर पर बचाव पर ध्यान दें। जब तक तेज बुखार है तो डरने की जरूरत नहीं। डेंगू में कई बार चैथे-पांचवें दिन बुखार कम होने पर प्लेटलेट्स गिरने लगते हैं। बुखार खत्म होने के 3-4 दिन बाद भी एक बार प्लेटलेट्स काउंट टेस्ट करा लें। डेंगू के मरीज को मच्छरदानी के अंदर रखें ताकि मच्छर उसे काटकर दूसरों में बीमारी न फैलाएं। डेंगू से डरने की जरूरत नहीं है।

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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