खाटू श्याम: हार के भी बने सहारा, जानिए क्यों श्रीकृष्ण ने दिया पहले पूजे जाने का वरदान

भारत भूमि आस्था और श्रद्धा की धरोहर है. यहां प्रत्येक देवता की कथा किसी न किसी प्रेरणा से जुड़ी होती है. ऐसी ही एक अद्भुत कथा है खाटू श्याम बाबा की जिन्हें हारे का सहारा कहा जाता है. मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से श्याम बाबा का नाम लेता है, उसकी नैया पार लगती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि खाटू श्याम जी वास्तव में कौन हैं और क्यों भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें खुद से पहले पूजे जाने का वरदान दिया था? इस साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी 1 नवंबर को खाटू श्याम बाबा का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाएगा, तो आइए इस खास मौके पर जानते हैं बर्बरीक से खाटू श्याम बनने की कहानी.
कौन थे वीर बर्बरीक?
खाटू श्याम जी वास्तव में महाभारत काल के वीर बर्बरीक थे. उनका संबंध पांडव कुल से था.वे भीम के पौत्र थे. और उनके पिता घटोत्कच और माता का नाम मोरवी था.बर्बरीक बचपन से ही अत्यंत बलशाली और तेजस्वी थे. उन्हें देवी चंडिका से तीन दिव्य और अचूक बाण प्राप्त हुए थे. ये बाण पलभर में तीनों लोकों को नष्ट करने की क्षमता रखते थे और लक्ष्य को भेद कर वापस उनके पास आ जाते थे. इसी कारण उन्हें ‘तीन बाण धारी’ भी कहा जाता है.
शीश दान की महान गाथा
जब महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था, तब बर्बरीक ने भी इसमें शामिल होने का निर्णय लिया. युद्ध में जाने से पहले उन्होंने अपनी माता को वचन दिया था कि वह हमेशा ‘हारे हुए पक्ष’ का साथ देंगे.भगवान श्रीकृष्ण यह जानते थे कि बर्बरीक की शक्ति इतनी अपार है कि उनके तीन बाणों के बल पर, यदि वह हारे हुए पक्ष (कौरवों) का साथ देंगे, तो युद्ध का परिणाम बदल जाएगा. युद्ध में पांडवों की जीत सुनिश्चित करने के लिए श्रीकृष्ण ने एक योजना बनाई.
ब्राह्मण रूप में श्रीकृष्ण
श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और बर्बरीक को रोककर उनसे दान मांगा. बर्बरीक ने वचन दिया कि वे जो भी मांगेंगे, वह अवश्य देंगे. तब श्रीकृष्ण ने उनसे दक्षिणा के रूप में उनका शीश (सिर) मांग लिया. बर्बरीक ने बिना किसी संकोच या मोह के, अपने वचन का पालन करते हुए, अपना सिर काटकर श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिया. इस महान त्याग और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया.
श्रीकृष्ण ने क्यों दिया ‘श्याम’ नाम से पूजे जाने का वरदान?
वीर बर्बरीक के इस अद्वितीय बलिदान से भगवान श्रीकृष्ण बहुत ही प्रसन्न हुए. साथ ही, बर्बरीक ने अपनी इच्छा व्यक्त की थी कि वह अपनी आंखों से महाभारत के पूरे युद्ध को देखना चाहते हैं. बर्बरीक ने अपने वचन और धर्म की रक्षा के लिए बिना किसी संकोच के अपना शीश दान कर दिया. उनके इस महान त्याग और श्रीकृष्ण के प्रति अटूट भक्ति से प्रभु भावुक हो गए. श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलियुग के आगमन पर वह ‘श्याम’ (जो कि श्रीकृष्ण का ही एक नाम है) के नाम से जाने और पूजे जाएंगे.श्रीकृष्ण ने यह भी कहा कि जो भी भक्त उनके नाम का स्मरण करेगा, उसके सभी कष्ट दूर होंगे और उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होगी. इसके साथ ही, उन्हें यह आशीष भी दिया कि वह हमेशा हारे हुए और निराश भक्तों को सहारा देंगे.




