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बिहार चुनाव 2025: महिला वोटर बनेगी ‘गेमचेंजर’, बदल जाएगा पूरा चुनावी गणित

पटना
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में महिलाओं ने एक बार फिर इतिहास रच दिया। रिकॉर्ड 64.66% कुल मतदान में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से कहीं अधिक रही, जो राज्य की राजनीति में उनकी बढ़ती ताकत का प्रमाण है। लेकिन विडंबना यह है कि राजनीतिक दलों ने महिलाओं को टिकट देने में कंजूसी बरती है। कुल 1,314 उम्मीदवारों में महज 122 महिलाएं हैं, जो मात्र 9.28% है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह भागीदारी बनाम प्रतिनिधित्व की गहरी खाई को उजागर करता है, जहां महिलाएं वोटर के रूप में तो निर्णायक हैं, लेकिन उम्मीदवार के रूप में हाशिए पर धकेली जा रही हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक पहले चरण के 121 सीटों पर 3.75 करोड़ मतदाताओं में 1.76 करोड़ महिलाएं शामिल हैं। मतदान के दौरान महिलाओं की सक्रियता ने कई जिलों में रिकॉर्ड तोड़े। बेगूसराय(67.32%), गोपालगंज(64.96%) और मुजफ्फरपुर (64.63%) में महिलाओं का टर्नआउट पुरुषों से 5-10% अधिक रहा।

चुनाव में शानदार रही भागीदारी
मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद सिंह गुंजि‍याल ने कहा, महिलाओं की भागीदारी शानदार रही। यह बिहार के लोकतंत्र की मजबूती का संकेत है। अधिकारिक आंकड़ा मतगणना के बाद भी आएगा। यह ट्रेंड 2010 से चला आ रहा है। 2010 में महिलाओं का टर्नआउट 54.49% था (पुरुष: 51.12%), 2015 में 60.48% (पुरुष: 53.32%) और 2020 में 59.7% (पुरुष: 54.5%)। महिलाओं की यह ताकत नीतीश कुमार सरकार की महिला-केंद्रित योजनाओं—जैसे मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (10,000 रुपये की सहायता)और 35% सरकारी नौकरियों में आरक्षण का नतीजा मानी जा रही है।

विपक्षी महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने भी महिलाओं के लिए 30,000 रुपये एकमुश्त सहायता का वादा किया है। राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद मुकेश कहते हैं, महिलाएं अब जाति से परे वोट दे रही हैं। वे बेरोजगारी, पलायन, शिक्षा जैसे मुद्दों पर फोकस कर रही हैं। लेकिन पार्टियां उन्हें टिकट देकर सशक्तिकरण की बात तो करती हैं, काम कम करती हैं। सीनियर जर्नलिस्ट ओमप्रकाश अश्क कहते हैं, महिलाओं का वोट सबको चाहिए, मगर टिकट देने के मामले में परिवारवाद और वंशवाद को ही तवज्जो मिल पाता है।

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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