प्रदूषण का बढ़ता खतरा: जहरीली हवा बच्चों के फेफड़ों पर भारी, अभिभावक रहें सतर्क

वायु प्रदूषण केवल वयस्कों के लिए ही खतरा नहीं है, बल्कि छोटे बच्चों के स्वास्थ्य पर इसका असर कहीं अधिक गहरा और दीर्घकालिक हो सकता है। जन्म से पहले और बचपन के शुरुआती वर्षों में प्रदूषण के संपर्क में आने वाले बच्चों के लिए यह गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों को जन्म दे सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, गर्भावस्था में माताओं का प्रदूषित वातावरण में रहना और बचपन में दूषित हवा में सांस लेना बच्चों के फेफड़ों के विकास को प्रभावित कर सकता है। इससे उनके फेफड़ों की वृद्धि रुक सकती है और सामान्य से कम कार्यशील फेफड़े विकसित होते हैं।
इसके अलावा, छोटे बच्चों में अस्थमा जैसी श्वसन संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। वे अक्सर निम्न श्वसन संक्रमणका शिकार हो सकते हैं। मानसिक और मोटर विकास पर भी प्रदूषण का नकारात्मक असर पड़ता है, जिससे व्यवहार संबंधी समस्याएँ और सीखने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
गर्भवती महिलाओं से होने वाले शिशु पर भी पड़ रहा असर
गर्भवती महिलाओं में प्रदूषण के संपर्क से कम वजन के बच्चों का जन्म, असामयिक प्रसव और शिशु मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी देखी गई है। लंबी अवधि में, बच्चों में हृदय रोग, मधुमेह और स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारियों का जोखिम भी बढ़ सकता है। कुछ अध्ययनों में यह भी संकेत मिला है कि प्रदूषण बच्चों में कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ा सकता है।
प्रदूषण का छोटे बच्चों के फेफड़ों पर गंभीर प्रभाव
विशेष रूप से छोटे बच्चों के फेफड़े अभी विकसित हो रहे होते हैं, इसलिए वे प्रदूषण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। प्रदूषण से बचाव के लिए बच्चों को साफ और सुरक्षित वातावरण में रखना बेहद जरूरी है। सावधानी और जागरूकता से ही हम बच्चों को इस अदृश्य लेकिन गंभीर खतरे से बचा सकते हैं और उनके स्वस्थ भविष्य को सुनिश्चित कर सकते हैं।
प्रदूषण से बच्चों में दिखाई देने वाले पांच प्रमुख लक्षण
लगातार खांसी और गले में खराश – प्रदूषित हवा गले और नलियों को प्रभावित कर बार-बार खांसी और आवाज बैठने का कारण बन सकती है।
सांस लेने में तकलीफ या सीने में जकड़न – हवा के हानिकारक कण श्वसन मार्ग को संकुचित कर देते हैं, जिससे खेलते समय सांस फूलना या सीने में भारीपन महसूस हो सकता है।
नाक बहना और छींक आना – बच्चों की नाक और आंखें संवेदनशील हो जाती हैं, जिससे बार-बार नाक बहना, छींक या आंखों में जलन होती है।
नींद में खलल और थकान – ऑक्सीजन की कमी से नींद बाधित होती है और बच्चे दिन में सुस्त या थके हुए महसूस करते हैं।
अस्थमा और एलर्जी की तीव्रता बढ़ना – जिन बच्चों को पहले से अस्थमा या एलर्जी है, उनमें प्रदूषण लक्षणों को और बढ़ा देता है।
बच्चों को सुरक्षित रखने के उपाय
सुबह के समय बच्चों को बाहर खेलने से रोकें, क्योंकि उस समय AQI सबसे खराब होता है।
घर में एयर प्यूरीफायर या गीले कपड़े रखें, ताकि धूल कम हो।
N95 या KN95 मास्क पहनाने की आदत डालें, खासकर स्कूल जाने के समय।
आहार में विटामिन C, E और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर चीजें शामिल करें, जैसे संतरा, पालक और टमाटर।
पर्याप्त पानी पिलाएं ताकि शरीर से टॉक्सिन बाहर निकल सकें।
डॉक्टर को कब दिखाएं
लगातार तीन-पांच दिनों तक खांसी, सांस फूलना या सीने में जकड़न हो।
खेलने के बाद अत्यधिक थकान या सिरदर्द महसूस हो।
अस्थमा के बच्चों को नियमित दवा और जांच कराना आवश्यक।




