राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

कांग्रेस संग गठबंधन का साइड इफेक्ट! तेजस्वी को भी लगा अखिलेश वाला बड़ा झटका

पटना 
ईंट बांधकर तैरना जितना कठिन है, उतना ही मुश्किल किसी दल के लिए कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ना हो चुका है। यह बात 2017 में यूपी में अखिलेश यादव की करारी हार ने साबित की थी और वही स्थिति अब बिहार में हई है। यहां आरजेडी से लड़कर 62 सीटें कांग्रेस ने ली थीं और जब चुनाव नतीजे आए तो अब तक 6 सीटों पर ही कांग्रेस की बढ़त है। इस तरह उसका स्ट्राइक रेट 10 फीसदी से भी कम है। 2017 में यूपी चुनाव में 100 सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था और 7 पर ही जीती थी। इस नतीजे को लेकर माना गया था कि कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ना सपा को भारी पड़ा।
 
फिर उन्होंने 2017 में अपनी रणनीति में बदलाव किया और सपा अलग होकर चुनाव लड़ी थी। लेकिन तेजस्वी यादव ने कोई सबक नहीं लिया और 2017 वाली अखिलेश यादव की गलती बिहार में दोहरा दी। नतीजा सामने है। दरअसल 2014 के बाद से ही लगातार ऐसा देखा जा रहा है कि जब भी कांग्रेस सामने होती है तो भाजपा का प्रदर्शन शानदार होता है। इसके अलावा क्षेत्रीय दलों के मुकाबले भी कांग्रेस नहीं टिक पाती है। ऐसे में कांग्रेस को ज्यादा सीटें देना आरजेडी के लिए घातक साबित हुआ है। इसके अलावा समन्वय स्थापित ना हो पाने का नुकसान भी सीधे तौर पर आरजेडी को हुआ है।

कांग्रेस को भाकपा-माले ने दिखाया आईना, शानदार स्ट्राइक रेट
दिलचस्प बात यह है कि महज 20 सीटों पर लड़ने वाले वामपंथी दल भाकपा-माले की 7 सीटों पर बढ़त है। ऐसे में कांग्रेस ने अपनी हार से महागठबंधन की भी हार की पटकथा लिख दी है। वहीं एनडीए की बात करें तो अमित शाह लगातार पटना में कैंप करते रहे। तीन दिन तो वह निकले ही नहीं और लगातार सहयोगी दलों के साथ मिलकर मंथन करते रहे। इसका सीधा फायदा एनडीए को मिला है, जबकि महागठबंधन को करारा झटका लगा। यही नहीं प्रचार में भी एनडीए आगे रहा। खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने कैंपेन को लीड किया और अमित शाह ने भी 36 रैलियां कीं तो वहीं राजनाथ सिंह भी 20 रैलियों में नजर आए।

भाजपा के लिए योगी समेत प्रचार में उतरे थे कई सीएम
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ हों या फिर दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता भाजपा ने पूरी फौज ही प्रचार में उतारे रखी। इसके अलावा जेडीयू, लोजपा जैसे दलों के नेता भी कंधे से कंधा मिलाकर प्रचार करते रहे। इसके उलट महागठबंधन में ना तो सहमति बनी और ना ही प्रचार में समन्वय नजर आया।

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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