झारखंड के ‘हरे सोने’ की खुशबू अब अफ्रीका तक, ग्रामीणों की बदलेगी किस्मत!

रांची
झारखंड में वन विभाग ग्रामीणों को परिपक्व बीजों के चयन और सुरक्षा के लिए प्रशिक्षित करेगा, जिससे करंज, साल, शीशम और बांस के बीजों से 10-15 करोड़ की आमदनी होगी। जनवरी से मार्च का महीना राज्य से जंगलों में इमारती लकड़ियों के बीज संग्रहण का होता है। वन क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीण अपने स्तर से बीज संग्रहित करते हैं और इसे वन विभाग की संबंधित संस्था को सौंप देते हैं। वन विभाग ने परिपक्व बीजों को चुनने और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए लोगों को प्रशिक्षण देगा। प्रशिक्षण पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से होगा, जिससे बीज संरक्षण में मदद मिलेगी और बर्बादी कम होगी। उनकी सहयोग समितियां भी बनाई गई हैं। बीज संवर्धन संस्थान के निदेशक रहे रामाश्रय प्रसाद ने बताया कि राज्य के वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों को इससे पहले केंदू पत्ते के संग्रहण का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। जानकारी के अभाव में लोग साठ प्रतिशत बीजों को नष्ट कर देते हैं।
पुष्ट बीजों से रहने से किसानों की आमदनी में वृद्धि होगी। बांस के बीज, खासकर अफ्रीकी देशों में, निर्यात किए जाते हैं, जिससे राज्य ‘सीड हब’ बन सकता है। राज्य में मुख्य रूप से तीन प्रकार के बांस पाए जाते हैं, डेंड्रोकैलामस स्ट्रिक्टस (लाठी बांस), बम्बूसा नूटन्स (सामान्य बांस), बम्बूसा तुलदा (पानी बांस)। साल, शीशम, बांस, करंज के बीजों को चुनने और उन्हें संरक्षित रखने के लिए लोगों को प्रशिक्षित किया जाएगा। राज्य के बांस बीजों की विदेशों खासकर अफ्रीकी देशों तक में बिक्री की जाती है। झारखंड के बांस के बीजों की मांग विशेष रूप से अफ्रीकी देशों में बहुत अधिक है। हां के बांस की आनुवंशिक विविधता और कठिन परिस्थितियों में पनपने की क्षमता। यदि ग्रामीण सही तरीके से बीजों का संग्रहण करें, तो झारखंड ‘सीड हब’ बन सकता है।
बीजों की बिक्री से 10-15 करोड़ रुपये की वार्षिक आय का अनुमान है। केवल बीज ही नहीं, बल्कि बांस से बने फर्नीचर, हस्तशिल्प, और बांस के ‘करील’ की खाद्य बाजार में भारी मांग है। वन क्षेत्र में पाए जाने वाले वृक्षों के बीज पर पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय ने शोध कार्य किया है। इसमें बीजों के चयन पद्धति, उनके संरक्षण के उपायों की जानकारी दी गई है। लोगों को प्रशिक्षित करने में यहां के विशेषज्ञों का सहयोग लिया जाएगा।




