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चांद पर इंसानों के लिए बनेगी कॉलोनी, यात्रियों ने लिये ट्रांसपोर्ट सिस्टम क्या होगा!

 चांद पर वो जगह मिल गई है जहां इंसान अपना घर बना सकते हैं. जी हां, वैज्ञानिकों ने चांद पर इंसानों के रहने लायक जगह खोज ली है. यहां पर तापमान इतना अच्छा है कि इंसान यहां रह कर काम भी कर सकते हैं.

दरअसल, चांद पर इंसानों के रहने लायक गड्ढों की खोज की बात सामने आई है. बताया जा रहा है कि ये गड्ढे 328 फीट गहरे हैं. वैज्ञानिक इस बात से हैरान हैं कि चंद्रमा के अन्य इलाकों के गड्ढों से ये रहने लायक गड्ढे एकदम अलग हैं. यहां तापमान भी 17 डिग्री के आस-पास रहता है. जबकि चांद की ही बाकी जगहों पर तापमान इतना ज्यादा हो जाता है कि धरती पर पानी उबल जाए.

NASA की साइंटिस्ट नोआ पेट्रो ने कहा कि लूनर पिट्स यानी चांद के ये खास गड्ढे बेहद हैरान करते हैं. अगर इनका तापमान लगातार स्थिर रहता है तो यहां इंसानी कॉलोनी बनाई जा सकती है. चांद पर रहने लायक गड्ढ़ों की ये रिसर्च रिपोर्ट जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स जर्नल में प्रकाशित हुई है. चांद पर भविष्य में इंसानी कॉलोनी (human colony) बनाने के लिए ये खोज बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकती है.

चांद पर इंसान के पहले कदम पड़ने के दो साल बाद फिर एक ऐसी घटना हुई, जो यादगार बन गई. दरअसल, 31 जुलाई 1971 को इंसान ने चांद की ऊबड़ खाबड़ सतह पर पहली बार चार पहिया वाहन चलाया था. साल 1971 के मिशन मून के दौरान अंतरिक्ष यात्री अपने साथ ऑफ रोडर कार लूनर रोवर व्‍हीकल लेकर गए थे. ये पहली बार था, जब इंसान ने धरती के इतर किसी दूसरे ग्रह पर चार पहिया वाहन चलाया था. बता दें कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने सबसे पहले बार 1971 में ही अपोलो मिशन के तहत मानवरहित यान चंद्रमा पर भेजा था.

कितनी बार मून मिशन पर गया था एलआरवी
नासा ने अपोलो मिशन के तहत सबसे पहली बार चंद्रमा पर अपोलो लूनर रोविंग व्‍हीकल का इस्‍तेमाल किया था. इसमें दो नॉन रिचार्जेबल जिंग बैटरी का इस्‍तेमाल किया गया था. ये बैटरी कार के हर पहिये को 0.25 हॉर्स पावर की शक्ति उपलब्‍ध कराती थी. अपोलो-15 चांद पर अंतरिक्ष यात्रियों को उतारने वाला चौथा मिशन था. नासा ने इसी दौरान पहली बार लूनर रोवर व्‍हीकल को अंतरिक्ष यात्रियों के साथ भेजा था. इसके बाद लूनर रोवर को दो अन्‍य मून मिशन पर भी भेजा गया था. नासा के मुताबिक, लूनर रोवर व्‍हीकल ने 31 जुलाई 1971 को चांद की सतह पर अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर दौड़ लगाई थी.

क्‍या थीं डिब्‍बे में समाने वाले वाहन की खूबियां
नासा के लूनर रोवर व्हीकल यानी एलआरवी में एकरमैन स्टीयरिंग, ब्रेक, एस्केलेटर्स, 4 पहिये दिए गए थे. इसमें करीब 460 पाउंड यानी 208 किलो का द्रव्यमान था. इसे फोल्ड करने के लिए डिजाइन किया गया था. इससे यह लूनर मॉडल के एक डिब्बे में फिट हो जाता था. इसे इस तरह बनाया गया था कि ये धरती के ऑक्सीजनयुक्त माहौल से अलग चांद की कम गुरुत्वाकर्षण वाली सतह पर भी आसानी से दौड़ाया जा सके.

चांद पर कितने लोगों ने की LRV की सवारी
अमेरिका के मून मिशन अपोलो-15 में अंतरिक्ष यात्री डेविड स्कॉट और जेम्स इरविन भी गए थे. इन्‍हीं दोनों को पृथ्वी से अलग किसी दूसरे ग्रह पर इंसान की बनाई ऑटोमोबाइल चलाने का मौका मिला था. लूनर रोवर व्‍हीकल में दो लोगों के बैठने लायक जगह ही थी. ऐसे में डेविड स्‍कॉट और जेम्‍स इरविन दोनों ने एक साथ और फिर अकेले भी एलआरवी को चांद की सतह पर दौड़ाया था. बता दें कि भारत से पहली बार चांद पर पहुंचने वाले राकेश शर्मा पहले भारतीय और दुनिया के 138वें अंतरिक्ष यात्री थे.

क्‍यों पड़ी एलआरवी को बनाने की जरूरत
नील ऑर्मस्ट्रांग के तौर पर इंसान ने लूनर रोवर व्‍हीकल के चांद पर पहुंचने से कुछ साल पहले ही चांद पर कदम रखा था. इस दौरान वह बहुत भारी स्पेस सूट पहने थे. साथ ही चांद की तस्‍वीरें लेने के लिए उन्‍हें काफी कैमरा और दूसरी चीजें लेकर चांद पर चलना पड़ा, जो काफी मुश्किल साबित हुआ था. अंतरिक्ष यात्रियों को मून मिशन के दौरान इस तरह की दिक्‍कतों से बचाने के लिए नासा ने चांद पर चलने लायक चार पहिया वाहन यानी एलआरवी को तैयार किया था. इसका डिजाइन और चलाने का तरीका दोनों ही काफी अनूठे थे.

Dinesh Purwar

Editor, Pramodan News

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