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जस्टिस की शपथ को ‘दोषपूर्ण’ बताने वाली याचिका खारिज, SC ने याचिकाकर्ता पर लगाया 5 लाख का जुर्माना

 नई दिल्ली
बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा ली गई 'दोषपूर्ण शपथ' को चुनौती देने वाले शख्स पर सुप्रीम कोर्ट ने 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि शपथ राज्यपाल द्वारा दिलाई गई है और शपथ दिलाए जाने के बाद सदस्यता ली गई है, इसलिए इस तरह की आपत्तियां नहीं उठाई जा सकतीं। शीर्ष अदालत ने सुनवाई में आगे कहा कि यह केवल जनहित याचिका क्षेत्राधिकार का उपयोग करने का याचिकाकर्ता का एक तुच्छ प्रयास था।

क्या है मामला?
शीर्ष अदालत अशोक पांडे द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें कहा गया था कि वह बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दी गई 'दोषपूर्ण शपथ' से व्यथित हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश ने संविधान की तीसरी अनुसूची का उल्लंघन करते हुए शपथ लेते समय अपने नाम के पहले 'मैं' शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव सरकार के प्रतिनिधियों और प्रशासक को शपथ समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया था।

'ऐसी आपत्तियां नहीं उठाई जा सकतीं'
पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि 'याचिकाकर्ता, इस बात पर विवाद नहीं कर सकता है कि पद की शपथ सही व्यक्ति को दिलाई गई थी। शपथ राज्यपाल द्वारा दिलाई गई है और शपथ दिलाए जाने के बाद सदस्यता ली गई है, इसलिए ऐसी आपत्तियां नहीं उठाई जा सकतीं।' पीठ ने आगे कहा कि 'हमारा स्पष्ट मानना है कि इस तरह की तुच्छ जनहित याचिकाएं न्यायालय का समय और ध्यान खींचती हैं, जिससे अदालत का ध्यान अधिक गंभीर मामलों से हट जाता है और न्यायिक जनशक्ति और न्यायालय की रजिस्ट्री के बुनियादी ढांचे का उपभोग होता है।' बता दें कि पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पादरीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे।

याचिकाकर्ता पर लगा 5,00,000 का जुर्माना
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि अब समय आ गया है अदालत को ऐसी तुच्छ जनहित याचिकाओं पर अनुकरणीय जुर्माना लगाना चाहिए। पीठ ने कहा, 'हम तदनुसार याचिका को 5,00,000 रुपये की लागत के साथ खारिज करते हैं, जिसे याचिकाकर्ता को चार सप्ताह की अवधि के भीतर इस न्यायालय की रजिस्ट्री में जमा करना होगा।'शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर दी गई अवधि के भीतर जुर्माना जमा नहीं की जाती है, तो इसे लखनऊ में कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट के माध्यम से भू-राजस्व के बकाया के रूप में एकत्र किया जाएगा।

Dinesh Purwar

Editor, Pramodan News

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