किस दल की रेवड़ी में मिठास ज्यादा यह आंक रहे हैं वोटर
रायपुर.
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव का आखिरी दौर। गांवों में ग्रामीण न चेहरा देख रहे और न ही बुनियादी मुद्दे। वे आकलन में लगे हैं कि किसकी रेवड़ी में मिठास ज्यादा है। शहरों में विकास, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे चर्चा में हैं। गावों के उलट शहरी लोग रेवड़ी संस्कृति को अपने ऊपर ही बोझ मान रहे हैं, जो कर के रूप में उन पर पड़ेगा। रायपुर के आसपास के आधा दर्जन से अधिक गांवों के दौरे में सबसे पहले हम मंदिर हसौद क्षेत्र की चीचा ग्राम पंचायत पहुंचे।
यहां चल रही चुनावी चर्चा में आदर्श ग्राम पंचायत घोषित होने के बाद भी ढंग की एक सड़क न होने के सवाल पर शंकर मतवाले ने कहा, सरकार ने तो 40 लाख रुपये जारी कर दिए पर प्रधान ने ही काम नहीं कराया। भाजपा पर आरोप मढ़ा कि रमन सिंह के कार्यकाल में दो साल तक किसानों को बोनस नहीं मिला। कांग्रेस ने कर्जमाफी और बिजली बिल आधा कर राहत दी। उनकी बातों को काटते हुए धर्मेंद्र डहरिया बोले, कर्जमाफी उन्हें मिली, जिनके पास खेत हैं। हमें तो नया रायपुर के लिए कौड़ियों के भाव भूमि अधिग्रहण कर भूमिहीन बना दिया गया। हमसे 5.60 लाख रुपये प्रति एकड़ में ली गई जमीन आज दो करोड़ रुपये एकड़ में बिक रही है। युवा जितेंद्र कुमार और रोशनलाल ने कहा, बेरोजगारी भत्ते के लिए आश्वासन तो मिला, लेकिन मिला कुछ ही लोगों को। सरकार ने शराबबंदी पर वादाखिलाफी कर ठीक नहीं किया।
सड़क बने न बने…घर-परिवार देखेंगे
पलौद में राजेंद्र चंद्राकर और राधेश्याम ने बताया, सभी किसानों को सहकारी समितियों से खाद-बीज मुफ्त मिल रहा है। कर्जमाफी से भी राहत है। अपने रुख पर वे बोले, जो ज्यादा देगा, हम उसी के साथ हैं। सड़क बने न बने, हम पहले अपना घर-परिवार तो संभाल लें।
सवाल भी…तो क्या बचेगा राज्य में
पलौद में बंटाई पर खेती करने वाले मनहरण चंद्राकर ने कहा, लोगों की आदत खराब की तो प्रदेश बर्बादी की कगार पर होगा। कर्जमाफी व धान समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से किसान खुश हैं। लेकिन, यह नहीं समझ में आ रहा है कि दाल डेढ़ सौ रुपये खरीद रहे हैं। सरकार को युवाओं को बेरोजगारी भत्ते की जगह रोजगार दिलाना चाहिए।
अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी
छत्तीसगढ़ के पूर्व निर्वाचन आयुक्त सुशील त्रिवेदी कहते हैं कि अगर सरकार सालभर में 32 सौ रुपये प्रति क्विंटल पर एक लाख क्विंटल धान खरीदे और प्रदेश का बजट 1.2 लाख करोड़ रुपये का है। ऐसे में 32 हजार करोड़ तो सिर्फ धान खरीद पर ही खर्च हो जाएंगे। कर्जमाफी, भूमिहीन ग्रामीणों और शादीशुदा महिलाओं को आर्थिक सहायता आदि पर भी भारीभरकम धनराशि खर्च होगी। किसी ने नहीं सोचा, अर्थव्यवस्था पर असर क्या
होगा।
आधी आबादी को अपने पाले में लाने की मची होड़
भाजपा और कांग्रेस ने भूमिहीनों को सालाना 10-10 हजार रुपये की आर्थिक सहायता देने का एलान किया। भाजपा ने शादीशुदा महिलाओं को भी प्रतिवर्ष 12 हजार रुपये देने की बात कही है। दो दिन पहले ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भाजपा से एक कदम आगे बढ़ते हुए महिलाओं को सालाना 15 हजार रुपये की सहायता देने का वादा कर दिया। प्रदेश में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक है।