कारसेवकों पर गोली चलाने को स्वामी प्रसाद मौर्य ने बताया सही
लखनऊ
अयोध्या में श्रीराम जन्म भूमि पर बने भव्य राममंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां चल रही हैं। उधर, समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक बार फिर अपने बयान से पुराने जख्म कुरेदते हुए बीजेपी को एक नया मुद्दा दे दिया है। सपा नेता ने कारसेवकों पर गोलीकांड को जायज ठहराया है। उन्होंने कहा कि उस समय की उत्तर प्रदेश सरकार ने अमन चैन के लिए गोली चलवाई थी। गोली चलवाकर सरकार ने अपना कर्तव्य निभाया था। कारसेवकों को अराजक तत्व की संज्ञा देते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि जिस समय अयोध्या में राममंदिर पर घटना घटी थी वहां पर बिना किसी न्यायापालिका या प्रशासनिक आदेश के अराजक तत्वों ने बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ की थी।
उन्होंने कहा कि तत्कालीन सरकार ने संविधान और कानून की रक्षा और अमन-चैन कायम करने के लिए गोली चलवाई थी। सरकार का यह कर्तव्य था जिसे सरकार ने निभाया था। बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार विवादित बयानों से सुर्खियों में बने हुए हैं। रामचरित मानस और सनातन पर उनके कई विवादित बयान सामने आ चुुके हैं। इन बयानों को लेकर हिन्दूवादी संगठन और बीजेपी समाजवादी पार्टी और उसके मुखिया अखिलेश यादव को जिम्मेदार ठहराते हैं। अब कारसेवकों पर गोलीकांड को जायज ठहराकर उन्होंने बीजेपी को एक और मुद्दा दे दिया है।
कारसेवकों पर कब चली थी गोली
बता दें कि आज से करीब 33 साल पहले 1990 में अयोध्या जा रहे कारसेवकों पर गोली चली थी। उस समय यूपी में मुलायम सिंह यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी की सरकार थी। मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री रहते कारसेवकों पर गोली चलवाने के आदेश का कई बार खुद भी बचाव किया था। पुलिस ने कारसेवकों पर गोली तब चलाई थी जब वे साधु-संतों की अगुवाई में अयोध्या कूच कर रहे थे। 'रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे' जैसे नारों के साथ कारसेवकों की भारी भीड़ अयोध्या पहुंचने लगी थी। प्रशासन के निर्देश पर अयोध्या में कर्फ्यू लगा हुआ था। कारसेवकों और अन्य श्रद्धालुओं को अयोध्या जाने से पहले ही रोका जा रहा था। विवादित ढांचे के डेढ़ किलोमीटर के दायरे में पुलिस ने बैरिकेडिंग कर रखी थी। इसी दौरान कारसेवकों के एक जत्थे ने आगे बढ़ने की कोशिश की और पुलिस ने उन पर गोलियां चला दीं।
याद किए जाते हैं ये दो दिन
कारसेवकों पर गोलीकांड को लेकर दो दिन हमेशा याद किए जाते हैं। पहली बार 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों पर गोली चली थी। दूसरी बार दो नवम्बर को हनुमान गढ़ी के पास तक पहुंच गए कारसेवकों पर पुलिस ने गोलियां चलाईं। इन गोलीकांडों में कई कारसेवकों को जान गंवानी पड़ी थी। इस घटना के दो साल बाद छह दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचे को गिरा दिया गया था।
मुलायम सिंह ने अफसोस जताते हुए फैसले का किया था बचाव
कारसेवकों पर गोली कांड के 23 साल बाद साल 2013 के जुलाई महीने में मुलायम सिंह यादव ने एक बयान में गोली चलवाने पर अफसोस जाहिर करते हुए भी अपने फैसले का बचाव किया था। उन्होंने कहा था कि उन्हें इसका अफसोस है लेकिन और कोई विकल्प नहीं था।