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निमाड़ का बुरहानपुर जिला भी भगवन राम से नाता है, अपने वनवास काल का कुछ समय बिताया था

बुरहानपुर
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जन्म भले ही अयोध्या में हुआ था, लेकिन मप्र के कई क्षेत्रों से उनका गहरा नाता रहा है। इनमें से निमाड़ का बुरहानपुर जिला भी एक है। वनवास काल के दौरान वे माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ बुरहानपुर के कई क्षेत्रों में रहे हैं। इतना ही नहीं उनके पिता राजा दशरथ की स्वर्ग सिधारने की सूचना भी उन्हें बुरहानपुर प्रवास के दौरान ही मिली थी। इसके बाद उन्होंने सूर्यपुत्री ताप्ती नदी के तट पर उनका पिंडदान किया था। इस स्थान पर आज भी श्रीराम झरोखा के नाम से उनका मंदिर है। ताप्ती पुराण सहित कई ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है कि महाराष्ट्र के नासिक और उससे आगे की यात्रा से पहले उन्होंने बुरहानपुर (तब ब्रह्मपुर) और इसके आसपास के क्षेत्र में समय बिताया था।
 
इसी दौरान उन्होंने राक्षसों खर-दूषण का संहार भी किया था। इसके बाद ताप्ती नदी को पार कर नासिक पहुंचे थे। जिन स्थानों पर भगवान श्रीराम के ठहरने की बातें प्रचलित हैं, वहां आज भी प्रमाण मौजूद हैं। यही वजह है कि अयोध्या में भगवान श्रीराम की बाल्यकाल की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होने पर जिले में भी उतना ही हर्ष का माहौल है।
 

सीता गुफा में सालभर बहता है झरना
श्रीराम झरोखा मंदिर के महंत स्वामी नर्मदानंद गिरी महाराज बताते हैं कि ठाठर बलड़ी गांव के पास जंगल में मौजूद सीता गुफा का निर्माण स्वयं श्रीराम ने प्रवास के दौरान किया था। पत्थरों को काटकर बनाई गई इस गुफा के पास जल का कोई स्रोत नहीं था। लक्ष्मण जी ने तीर चलाकर यहां झरने का निर्माण किया था। इस झरने से अब भी सालभर पानी गिरता है।

कुछ ऐसा ही प्रमाण नेपानगर के पास सीता नहानी में भी मिलता है। इसके अलावा श्रीराम झरोखा मंदिर और जम्बूपानी में मौजूद मानव निर्मित गुफाओं को भी साक्ष्य के रूप में देखा जाता है। बताते हैं कि जामवंत जी जम्बूपानी में रहते थे और हनुमान जी उनसे यहां मिलने आया करते थे।

इतिहासकार और जिला पुरातत्व एवं पर्यटन परिषद के सदस्य होशंग हवलदार का कहना है कि सीता गुफा, सीता नहानी और शहर के पास ताप्ती तट पर मौजूद श्रीराम झरोखा मंदिर सहित कई ऐसे प्रमाण हैं जो भगवान श्रीराम की मौजूदगी को साबित करते हैं। ताप्ती नदी पार कर श्रीराम महाराष्ट्र के चालीस गांव के पास स्थित महर्षि वाल्मीकि के आश्रम और वहां से राजन गांव पहुंचे थे। ये गांव अब भी मौजूद हैं।

Dinesh Purwar

Editor, Pramodan News

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