RO.No. 13047/ 78
राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

यूएई जेल से 900 कैदियों को रिहा कराने दस लाख दिरहम किये दान, जाने कौन है फिरोज मर्चेंट

दुबई-अगले महीने 10 मार्च से शुरू हो रहे रमजान से पहले भारतीय बिजनेसमैन और परोपकारी फिरोज मर्चेंट ने यूएई की जेलों से 900 भारतीय कैदियों की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए लगभग 2.5 करोड़ का दान किया है. इस्लाम में पवित्र महीने रमजान को विनम्रता, मानवता, क्षमा और दयालुता के महीने के रूप में जाना जाता है.

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने कैदियों की रिहाई के लिए इतनी बड़ी रकम दान की है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान फिरोज 20 हजार से ज्यादा कैदियों की रिहाई करवा चुके हैं. आइए जानते हैं कि कैदियों की रिहाई कराने वाले फिरोज मर्चेंट कौन हैं…

कौन हैं फिरोज मर्चेंट

66 साल के फिरोज मर्चेंट दुबई बेस्ड एक भारतीय व्यवसायी हैं, जो ‘प्योर गोल्ड ज्वैलर्स’ के मालिक हैं. फिरोज अपने परोपकारी काम खासकर जेल से कैदियों की रिहाई करवाने के लिए जाने जाते हैं. फिरोज जेल में बंद कैदी का कर्ज चुकाते हैं और उनके स्वदेश वापस जाने के लिए उनके हवाई टिकटों की भी व्यवस्था करते हैं.

यूएई की जेलों से 900 भारतीयों की रिहाई को लेकर फिरोज मर्चेंट के कार्यालय ने बयान जारी करते हुए कहा है, “दुबई बेस्ड भारतीय बिजनेसमैन फिरोज मर्चेंट ने अरब देशों की जेलों से 900 कैदियों की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए लगभग 2.25 करोड़ का दान किया है.”

2008 में स्थापित द फॉरगॉटन सोसाइटी पहल के तहत फिरोज मर्चेंट ने संयुक्त अरब अमीरात की जेलों से 900 कैदियों की रिहाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसमें अजमान के 495 कैदी, फुजैराह के 170 कैदी, दुबई के 121 कैदी और 69 कैदियों की रिहाई शामिल हैं. उम्म अल क्वैन के कैदी और रास अल खैमा के 28 कैदी भी रिहा किए गए हैं.

झुग्गी बस्ती से अरबपति बिजनेसमैन तक का सफर

झुग्गी बस्ती से उठकर अरबपति व्यवसायी बनने तक का सफर फिरोज मर्चेंट के लिए आसान नहीं रहा है. फिरोज मर्चेंट के पिता गुलाम हुसैन एक रियल एस्टेट ब्रोकर थे. वहीं, उनकी मां मालेकबाई हाउसवाइफ थीं. 11 सदस्यों वाले परिवार में हुसैन ही एकमात्र कमाने वाले थे. गुलाम हुसैन का पूरा परिवार मुंबई के भिंडी बाजार के इमामवाड़ा बस्ती में रहता था.

यूएई बेस्ड एक न्यूज वेबसाइट के मुताबिक, फिरोज मर्चेंट का कहना है कि जब वह दूसरी कक्षा में थे तो ट्यूशन फीस नहीं भरने के कारण उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा. मर्चेंट का कहना है, “पढ़ने में मैं काफी अच्छा था. पहली कक्षा की परीक्षा में मैं दूसरे स्थान पर आया था. मेरे शिक्षक ने मुझे मेरिट सर्टिफिकेट भी दिया था. लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि अगले वर्ष ही मुझे स्कूल छोड़ना पड़ा. क्योंकि ट्यूशन फीस का भुगतान करने के लिए मेरे पिता के पास पैसे नहीं थे. वास्तव में मेरे पिताजी बुद्धि और ज्ञान के भंडार थे. मैंने संघर्ष में जीवित रहने की कला उनसे ही सीखी है.”

शादी को टर्निंग प्वाइंट मानतें हैं फिरोज

1980 में फिरोज मर्चेंट की शादी मुंबई की ही रोजिना से हुई. फिरोज इसे अपने जीवन का टर्निंग प्वाइंट मानते हैं. फिरोज कहते हैं, “मैं अपने हनीमून के लिए दुबई आया था. इसी दौरान मैं दुबई की गोल्ड मार्केट गोल्ड सूक भी गया. मुझे इस जगह से एक प्यार सा हो गया. जैसे ही मैं गोल्ड सूक में प्रवेश किया, चमकदार पीली धातु से सजी दुकानों और आभूषणों की दुकानों को देखकर मैं दंग रह गया. मैं भी आभूषण व्यवसाय की शुरुआत कर दुबई में रहना चाहता था.

मेरी पत्नी को जब यह मालूम हुआ तो उसे बहुत गुस्सा आया. लेकिन मैंने अपने हनीमून का अधिकांश समय गोल्ड सूक में ही बिताया. ताकि यह समझ सकूं कि आभूषण व्यवसाय कैसे काम करता है. गोल्ड सूक को देखकर मैं मंत्रमुग्ध था. मैं तुरंत एक आभूषण व्यवसायी बनना चाहता था. इसी उत्साह के साथ मैं घर आया. लेकिन मेरा सपना उस वक्त चकनाचूर हो गया. जब मैंने अपने पिता से कहा कि मैं दुबई जाकर एक आभूषण व्यापारी बनना चाहता हूं, तो उन्होंने मेरे इस विचार को सिरे से खारिज कर दिया.”

हालांकि, वर्षों तक समझाने के बाद फिरोज मर्चेंट के पिताजी 1989 में अंततः मान गए. और उन्होंने उन्हें दुबई जाने दिया.

कैदियों को एक और मौका मिलना चाहिएः फिरोज मर्चेंट

फिरोज मर्चेंट का कहना है कि उन्होंने इस मिशन को इस बात को ध्यान में रखते हुए शुरू किया है कि संयुक्त अरब अमीरात उन्हें अपने परिवारों के साथ फिर से जुड़ने का मौका देता है. उनकी कोशिश है कि इस साल 2024 में 3000 से ज्यादा कैदियों की रिहाई कराई जाए और उन्हें अपने परिवार के पास भेजा जाए. फिरोज मर्चेंट की इस पहल को अमीराती शासकों ने भी मंजूर किया है.

फिरोज मर्चेंट ने एक बयान में कहा, “मैं सरकारी अधिकारियों के साथ जुड़ने के लिए बहुत भाग्यशाली हूं. फॉरगॉटन सोसाइटी पहल मानवता सीमाओं से परे है. हम उन्हें अपने देश और समाज में अपने परिवार के साथ मिलाने के लिए मिलकर काम करते हैं.”

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

RO.No. 13047/ 78

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button