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एएसआई की टीम भोजशाला का इतिहास खंगालने 56 महल संग्रहालय जा सकती है

धार
धार और मांडू दोनों प्राचीनतम नगरों और उनके इतिहास का शताब्दियों से नाता रहा है। धार स्थित भोजशाला का प्रामाणिक इतिहास खंगालने भोजशाला में सर्वे कर रहा केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण भारत सरकार के विशेषज्ञों का सर्वे दल पांच अप्रैल शुक्रवार को मांडू पहुंच सकता है। इस दौरान यहां संग्रहालय में रखी हुई परमार कालीन और भोजशाला से प्राप्त यहां लाई गई मूर्तियों का अध्ययन कर सकता है। मांडू में परमार काल का लंबा शासन रहा है ऐसे में भोजशाला से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आ सकती है।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग यानी एएसआई के विशेषज्ञों का सर्वे दल शुक्रवार को मांडू के राज्य पुरातत्व विभाग के अधीन आने वाले 56 महल संग्रहालय पहुंचेगा। इसके साथ ही राज्य पुरातत्व विभाग के अधीन आने वाले धार किले स्थित संग्रहालय पर भी एएसआई का दल पहुंचेगा। जहां भोजशाला से दशकों पूर्व लाए गए शिलालेख का भी अध्ययन करेगा। इतिहास के जानकारों का मानना है कि इन दोनों स्थानों पर दल के भ्रमण के बाद परमार कालीन भोजशाला से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आ सकती है।

56 महल संग्रहालय में रखी है भोजशाला से प्राप्त धनपति कुबेर की प्रतिमा
केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के विशेषज्ञों का दल विशेष तौर पर यहां 56 महल संग्रहालय में रखी परमार कालीन धनपति कुबेर की प्रतिमा को देखने और उसका परीक्षण करने आ रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार धनपति कुबेर की प्रतिमा को लगभग दो दशक पूर्व भोजशाला से यहां स्थापित किया गया था। इसके अलावा यहां बूढ़ी मांडू और धार जिले के अन्य क्षेत्रों से प्राप्त परमार कालीन प्रतिमाएं भी हैं।

धार किले में रखा भोजशाला का शिलालेख देखने पहुंचेगा दल
प्राप्त जानकारी के अनुसार भोजशाला के सर्वे में लगे विशेषज्ञों का दल धार के प्राचीन किले भी पहुंचेगा। यहां भोजशाला से लाए गए शिलालेख को संग्रहालय में रखा गया है। इतिहास के जानकारों के अनुसार यह यह शिलालेख भोजकालीन है और परमार कालीन प्रसिद्ध नृत्य नाटिका पारिजात मंजरी के एक भाग का कुछ अंश है।इस शिलालेख पर प्राकृत भाषा में लिखा हुआ है। एएसआई का सर्वे दल यहां पहुंचकर पूरा अवशेषों का अध्ययन कर भोजशाला के प्रामाणिक इतिहास संकलित कर सकता है। हालांकि इस बात को लेकर किसी ने भी कोई पुष्टि नहीं की है। इधर इतिहास के जानकारी और पुरातत्त्वविदों का कहना है कि धार की भोजशाला की जो आकृति है। इस आकृति और शैली के कई महल मांडू में भी देखने को मिलते हैं। मांडू भी राजा भोज और परमारों की कर्म स्थली रहा है। यदि मांडू स्थित परमार कालीन पूरा अवशेषों का गहन अध्ययन किया जाए सकता है।

Dinesh Purwar

Editor, Pramodan News

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