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वन विभाग में ठेकेदारी प्रथा शुरू होने से वनग्रामों के रहवासियों का होगा पलायन

भोपाल

शासन ने 27 मार्च को  अपने आदेश में समस्त वनमंडलों एवं वन्यप्राणी क्षेत्रों में, कोर एरिया को छोड़कर 2 लाख रुपए से ऊपर निर्माण एवं मरम्मत कार्य कराने के लिए टेंडर प्रक्रिया का पालन करने का निर्देश दिए हैं। जबकि इससे पहले वन क्षेत्रों में सभी तरह के काम स्थानीय लोग करते थे। वन ग्रामों के रहवासियों के लिए यही एक रोजगार का जरिया था।

शासन के इस आदेश से ठेकेदारों  लॉबी मजबूत होगी और वन्य क्षेत्रों का इको सिस्टम और वन ग्रामों से आदिवासी समाज का सबसे ज्यादा पलायन होगा। क्योंकि ठेकेदार किसे काम देगा और किसे नहीं इसमें वन समितियों और स्थानीय समितियों का कोई रोल नहीं रहेगा। शासन के आदेश में कई तरह की विसंगतियां है। ठेकेदार के काम का वन विभाग की कौन सी शाखा मॉनिटरिंग करेगी और ठेकेदार गुणवत्ता पूर्ण काम कर रहा है या नहीं इसकी जांच कौन करेगा।

ऐसे कई सवाल है जिनका आदेश में किसी तरह का कोई जिक्र नहीं है। ठेकेदारी प्रथा लागू होने से सबसे ज्यादा वानिकी का काम प्रभावित होगा। क्योंकि प्रदेश में 4 जून तक आचार संहिता है। इससे पहले कोई टेंडर जारी नहीं हो सकता, और लेखानुदान बजट अप्रैल से लेकर जुलाई माह तक है। डेवलपमेंट शाखा के पीसीसीएफ यूके सुबुद्धि ने बताया कि  शासन के आदेश पर विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मंथन किया जा रहा है। अगर किसी शाखा में किसी कार्य को लेकर अगर समस्या सामने आती है तो उस समस्या को लेकर शासन स्तर पर चर्चा करके समय रहते हुए समस्या का समाधान निकाल लिया जाएगा।

इको सिस्टम गड़बड़ाने और शिकार की संभावना
विभाग में ठेकेदारी प्रथा लागू होने से इको सिस्टम और वन्य प्राणियों का शिकार होने का सबसे ज्यादा खतरा मंडरा रहा है। विकास कार्य के नाम पर जंगलों में ठेकेदार से जुड़े लोगों की गतिविधियां बढ़ेगी। इससे इको सिस्टम के साथ अवांछित लोग छेड़छाड़ कर सकते है और जंगलों में शिकार और अवैध कटाई का मामला बढ़ने लगेगा।

Dinesh Purwar

Editor, Pramodan News

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