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राजनीति

लोकसभा की लड़ाई का काउंटडाउन शुरू: सूअर बेचकर बहू को लड़वा रहे लोकसभा चुनाव

जांजगीर चांपा-लोकसभा की लड़ाई का काउंटडाउन शुरू हो चुका है. बूथ, ईवीएम मशीन, पहले चरण की वोटिंग के लिए तैयार है. इस बीच छत्तीसगढ़ की जांजगीर-चांपा जिले में रहने वाले मायाराम नट ने सूअर बेचकर नामांकन पत्र खरीदा. इस बार वो अपनी बहू विजय लक्ष्मी को असंख्य समाज पार्टी से चुनावी मैदान में उतार रहे हैं.  इससे पहले, वो खुद भी पंचायत, जनपद और विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. दरअसल, महंत गांव के रहने वाला मायाराम नट घुमंतू समाज से आते हैं. इनका समुदाय करतब दिखाकर अपना पेट पालता है. मयाराम को साल 2000 से चुनाव लड़ने का जुनून पैदा हुआ. क्षेत्र क्रमांक 2 से चुनावी मैदान में कमला देवी पाटले के प्रतिद्वंदी भी रहे. जो दो बार बीजेपी से सांसद बन चुकी हैं. साल 2004 से हर विधानसभा, लोकसभा और जिला पंचायत के साथ जनपद का चुनाव मयाराम ने लड़ा है.

सूअर बेचकर खरीदा नामांकन फॉर्म
मायाराम नट ने बताया कि वो साल 2000 से चुनाव लड़ रहे हैं, जिसमे वह पंच थे. 2005 में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा,  2009 में लोकसभा के लिए, 2013 और 2018 में जांजगीर चांपा विधानसभा से चुनाव लड़ा और अपनी पत्नी को जिला पंचायत चुनाव में खड़ा किया. मायाराम नट के पास एक इंच तक जमीन नहीं है वो सूअर पालने का काम करते हैं. लेकिन किसी भी हाल में चुनाव लड़ने का कोई भी मौका वो नहीं छोड़ते हैं. इसके अलावा वो अपनी बड़ी बहू को जनपद सदस्य क्षेत्र क्रमांक 05 से चुनाव लड़वाया, जिसमें बहू को जीत हासिल हुई और जनपद सदस्य चुनी गई. हाल ही में 2023 के विधानसभा चुनाव में पामगढ़ विधनसभा चुनाव के लिए खुद खड़े हुए थे. उन्होंने दोहा बोलते हुए बताया कि बांस के पेड़ में बांस ही होना चाहिए. इसलिए कोई दूसरा नहीं, बल्कि कॉलेज में पढ़ी अपनी बहू को लोकसभा 2024 के लिए प्रत्याशी बनाकर चुनाव का नामांकन फॉर्म भरा है.

मायाराम नट के पास एक इंच जमीन तक नहीं
मायाराम नट ने बताया कि नामांकन फार्म खरीदने के लिए वो सूअर बेचते हैं. उनके पास 100 से ज्यादा सूअर हैं. बड़े सूअर कीमत करीब 10 हजार रुपये है और छोटे सूअर 3 से 5 हजार तक बिक जाते हैं. उनकी कोशिश होती के चुनाव के लिए वो 2 से 3 लाख रुपये तक इक्ट्ठा कर लें. फिर गाड़ी किराए पर लेकर प्रचार के लिए निकलें.  मायाराम नट का बेटा शिक्षक है और बहू जनपद सदस्य. घुमंतु समाज के कारण उनके बच्चों का जाति प्रमाण पत्र नहीं बता है. जिसकी वजह से बच्चों को स्कूल में एडमिशन मिलना मुश्किल हो जाता है. बावजूद इसके उन्होंने अपने बेटे को पढ़ा लिखाकर शिक्षक बनाया. अब वो चाहते हैं कि उनकी बहू लोकसभा का चुनाव जीतकर देश के लिए कुछ करे. उसका कहना है कि समाज को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ना उनका प्रमुख उद्देश्य है. क्योंकि उनके समाज के बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं.

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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