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दीपावली पर लक्ष्मीजी धरती पर आती हैं: प़ं विशाल पाण्डेय

बस्ती
 भारत में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से दीपावली का त्योहार एक है। रोशनी का यह त्योहार न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर के भारतीय समुदायों में विशेष आनंद और उत्सव के साथ मनाया जाता है।

सनातन धर्म के विद्ववान प़ं विशाल पाण्डेय बताते हैं कि रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की अधिष्ठात्री महालक्ष्मी जी रिद्धि, सिद्धि दाता गणेशजी तथा विद्या एवं कला की देवी सरस्वती जी की पूजा धूमधाम से की जाती है। मिटटी के बने लक्ष्मी, गणेश सरस्वती, हटरी और विभिन्न खिलौने अनेक स्थान पर सजाकर खील, बताशों तथा धूप, दीप से उनकी पूजा की जाती है। पूजा स्थल पर मूर्तियों के सम्मुख पूरी रात घी का दीपक जलाया जाता है और लगभग पूरी रात आमोद-प्रमोद में गुजारी जाती है। “ दीपावली’’ शब्द का अर्थ होता है ‘दीपों की श्रृंखला’ यह शब्द बना है ’’दीप’’और ’’आवली’’को जोड़ कर जिन्हें संस्कृत भाषा के शब्दों से लिया गया है।

लक्ष्मी जी का पूजन उसी स्थल पर किया जाता है जिस दीवार पर अहोई अष्ठमी को आहोई बनाई गई थी। दीपावली की रात्रि को प्रत्येक घर में तो दीपक जलाने के बाद लक्ष्मी पूजा होता ही है। दोपहर अथवा संध्या को प्रत्येक दुकान, कारखाने और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में भी यह पूजन किया जाता है। कर्मचारियों को पूजन के बाद मिठाई, बर्तन रूपये आदि देने की प्रथा भी है।

जहां तक धार्मिक दृष्टि का प्रश्न है आज पूरे दिन व्रत रखना चाहिए और मध्यरात्रि में लक्ष्मी पूजन के बाद भोजन करना चाहिए। परन्तु बहुत कम व्यक्ति ऐसा करते है।महालक्ष्मी पूजन में अन्य सभी पूजन सामग्री के साथ- साथ खील बताशों का प्रयोग भी अनिवार्य रूप से किया जाता है। इसके साथ ही चांदी अथवा धातु के रूपयों का पूजन भी पूजन किया जाता है। मिट्टी के बडे़ दीपक में मोटी बत्ती डालकर और उस पर कच्ची मिटटी का सकोरा रखकर काजल बनाने की प्रथा भी है। जहां तक व्यावहारिकता का प्रश्न है तीन देवों महालक्ष्मीजी,गणेशजी, सरस्वतीजी के संयुक्त पूजन के बावजूद इस पूजा में त्योहार का उल्लास ही अधिक रहता है।

ब्रह्मापुराण के अनुसार, कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि में महालक्ष्मीजी स्वयं भू लोक में आती है। और सदृहस्थ के घर कुछ क्षण के लिए रूकती है। जो घर पूर्णता स्वच्छ, शुद्ध, सुन्दर तरीके से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है वहां अंश रूप में ठहर जाती है और गंदे घरों, दुकानों, कार्यालयों और कारखानों में सजावट और रोशनी करके महालक्ष्मीजी की पूजा की जाती है। ताकि वह इन घरों में निवास करें।

इस उत्सव को मनाये जाने लिए अन्य कारण यह भी है कि आज के दिन ही लंका विजय के उपरान्त भगवान श्रीराम अयोध्या वापस आयें थे महावीर स्वामी और महर्षि दयानन्द सरस्वती ने आज के दिन ही निवार्ण प्राप्त किया था यही कारण है कि आर्य समाजी और जैन धर्मावलम्बी आज के दिन को विशेष उत्सव के रूप में मनाते है। आज की रात दीपक जलाने के साथ ही आतिशबाजी कर भी अपनी खुशी का इजहार किया जाता है।

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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