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दक्षिण अमेरिकी देशों में 10 साल में बढ़ी गरीबी, वेनेजुएला में 29% से बढ़कर 90% लोग हुए गरीब

नई दिल्ली
दुनिया के ज्यादातर देशों में हाल में गरीबों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। लेकिन दक्षिण अमेरिका में स्थिति उल्टी है। यहां के अधिकांश देशों में 2012 से 2022 के बीच गरीबों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इनमें अर्जेंटीना और वेनेजुएला जैसे देश भी शामिल हैं जिनकी गिनती कभी दुनिया के अमीर देशों में होती थी। अर्जेंटीना एक जमाने में दुनिया के टॉप 10 अमीर देशों में शामिल था जबकि वेनेजुएला के पास दुनिया का सबसे बड़ा तेल भंडार है।

अर्जेंटीना और वेनेजुएला के अलावा चिली और ब्राजील में भी 2012 से 22 के बीच गरीबों की आबादी बढ़ी है। वेनेजुएला में 2012 में ऐसी आबादी 29% थी जो रोजाना खर्च 5.5 डॉलर से कम पर काम चला रहे थे। लेकिन 2022 में यह आबादी 90% पहुंच गई। इस दौरान अर्जेंटीना में यह आबादी 4% से बढ़कर 36%, ब्राजील में 26% से बढ़कर 36% और चिली में 2% से बढ़कर 5% पहुंच गई।

दुनिया का सबसे बड़ा तेल भंडार वेनेजुएला में है। फिर भी यह उन देशों में शामिल है जहां महंगाई सबसे ज्यादा है। कभी यह अमीर देशों की श्रेणी में आता था लेकिन 1980 के बाद से इसका विकास एक तरह से ठहर गया है। वेनेजुएला में साल 1980 में जीडीपी प्रति व्यक्ति 8,000 डॉलर थी और आज भी यह इसी स्तर पर है। हालत यह है कि देश के लाखों लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं है। बेहतर जिंदगी की तलाश में लाखों लोग वेनेजुएला से पलायन कर गए हैं।

 खाने-पीने की चीजें इतनी महंगी हैं कि अमीर लोगों के लिए भी दो जून की रोटी जुटाना भी भारी पड़ रहा है। कई गरीब लोग तो पेट भरने के लिए कचरे में पड़ी जूठन खाने को मजबूर हैं। पिछले 43 साल में महंगाई तो चरम पर पहुंच गई लेकिन लोगों की इनकम एक ढेला भी नहीं बढ़ी है।

अर्जेंटीना का हाल

अर्जेंटीना की स्थिति भी वेनेजुएला जैसी ही है। दुनिया में सबसे ज्यादा महंगाई इसी देश में है। अप्रैल में अर्जेंटीना में महंगाई की सालाना दर 289% पहुंच गई। दुनिया में कोई दूसरा देश महंगाई इस मामले में उसके आसपास भी नहीं है। तुर्की 75.45% दूसरे और वेनेजुएला 64.9% के साथ तीसरे नंबर पर है। देश में महंगाई का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि यह भारत के मुकाबले करीब 60 गुना है। प्रथम विश्व युद्ध से पहले इस दक्षिण अमेरिकी देश की गिनती दुनिया के टॉप 10 अमीर देशों में होती थी। यह देश धनधान्य से भरपूर था। लेकिन 1946 से देश में लोकलुभावन नीतियों और खर्च का ऐसा दौर शुरू हुआ कि उसकी इकॉनमी गर्त में चली गई। देश के पास कैश रिजर्व नहीं है और सरकार पर भारी कर्ज है। देश की करीब 40 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही है।

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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