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राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

प्रवीण तोगड़िया और मोहन भागवत की मुलाकात में एक सवाल ये भी है कि पहल किसने की है?

नागपुर

प्रवीण तोगड़िया और मोहन भागवत की मुलाकात ही अपनेआप में महत्वपूर्ण है – लंबे अर्से बाद ये मीटिंग ऐसे माहौल में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी नेतृत्व के बीच सबकुछ ठीक न होने की जोरदार चर्चा हो.

करीब तीन दशक तक विश्व हिंदू परिषद से जुड़े रहने के बाद 2018 में प्रवीण तोगड़िया ने इस्तीफा देकर संघ से भी नाता तोड़ लिया था. नई बीजेपी के दौर में अपनी पूछ घटने से प्रवीण तोगड़िया बेहद नाराज थे, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेता अमित शाह के विरोधी माने जाने लगे थे.

जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो संघ से भी नाता तोड़ कर प्रवीण तोगड़िया ने अलग राह पकड़ ली – और अंतर्राष्ट्रीय हिंदू परिषद के नाम से नया संगठन बना लिया.

बीच बीच में प्रवीण तोगड़िया को लेकर कई तरह की चर्चाएं और विवाद भी हुए, लेकिन उनको सबसे ज्यादा तकलीफ तब हुई जब जनवरी, 2024 में राम मंदिर उद्घाटन के लिए उनको नहीं बुलाया गया. ध्यान रहे विश्व हिंदू परिषद ने ही अयोध्या में राम मंदिर बनाने का आंदोलन शुरू किया था.

कैसे हुई तोगड़िया और भागवत की मुलाकात

अंग्रेजी अखबार द हिंदू में प्रवीण तोगड़िया और संघ प्रमुख मोहन भागवत की मुलाकात को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है. सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि ये मुलाकात अचानक हुई है. दशहरे के दिन दोनो नेताओं ने नागपुर के समारोह में एक दूसरे का अभिवादन किया, और अगले दिन मिलने का फैसला किया गया.

विजयादशमी के दिन संघ प्रमुख ने हिंदू समाज से एकजुट होने का आह्वान किया था – और उसके 24 घंटे बाद ही प्रवीण तोगड़िया और मोहन भागवत की मुलाकात भी हो गई.

पहल चाहे जिस तरफ से हुई हो, ये मुलाकात ऐसे वक्त हुई है जब संघ की तरफ से बीजेपी पर लगाम कसने की भी चर्चा चल रही है.

मुलाकात के बाद प्रवीण तोगड़िया का कहना है, राम मंदिर निर्माण दशकों से बीजेपी के चुनावी वादे का हिस्सा रहा है, लेकिन पार्टी इसका चुनावी फायदा नहीं उठा सकी, और 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद से सबसे कम सीटों पर सिमट गई है.

प्रवीण तोगड़िया असल में लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की हार की तरफ इशारा कर रहे हैं. यूपी की हार और हरियाणा में जीत को भी संघ के असहयोग और सहयोग से जोड़ कर देखा जा रहा है. वैसे तात्कालिक चुनौती महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा के चुनाव भी हैं.

हिंदू समाज सेवा, या मोदी-शाह विरोध

रिपोर्ट के मुताबिक, प्रवीण तोगड़िया ने मोहन भागवत से मुलाकात में इस मुद्दे को जोर देकर उठाया है कि हिंदू राजनीतिक रूप से किसी पर भरोसा नहीं कर रहा है. जाहिर है, प्रवीण तोगड़िया बीजेपी नेतृत्व की तरफ ही इशारा कर रहे हैं.

 बातचीत में तोगड़िया कहते हैं, ‘राम मंदिर आंदोलन के माध्यम से पूरे देश में सभी हिंदू जातियों को एक करने का मकसद हासिल कर लिया है. लेकिन, आंदोलन की पूर्णाहूति के बाद से ऐसा महसूस होने लगा है जैसे सारा किया धरा बेकार होने वाला है, और इसे हर हाल में रोकना होगा… मैं स्वयं और संघ प्रमुख दोनो एक जैसा महसूस कर रहे हैं.’

ये पूछे जाने पर कि संघ और उनका संगठन AHP हिंदुओं को एकजुट करने के लिए क्या करेंगे, तोगड़िया बताते हैं, दोनो मिलकर हिंदुओं के लिए काम कर रहे सभी छोटे बड़े संगठनों से साथ आने की अपील करेंगे.

सवालिया अंदाज में प्रवीण तोगड़िया कह रहे हैं, जो समाज स्वास्थ्य, शिक्षा और महिलाओं की सुरक्षा जैसे बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहा हो, वो भला धर्म की लड़ाई कैसे लड़ेगा, इसलिए पहले जरूरी चीजों पर फोकस करना होगा.

वो आगे बताते हैं, मेरे साथ देश में 10 हजार एक्सपर्ट डॉक्टर जुड़े हैं, जो हिंदुओं को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराएंगे. शिक्षकों के भी कुछ संगठन हैं जो हिंदुओं के बच्चों को मुफ्त पढ़ाएंगे. समान विचार वाले कुछ संगठन जो लोगों को स्ट्रेंथ ट्रेनिंग देते हैं, वे हिंदू महिलाओं को आत्मरक्षा की मुफ्त ट्रेनिंग देंगे, जिससे वो हमलावरों से खुद को बचा सकें.

मणिपुर और कश्मीर की चिंता स्वाभाविक या राजनीतिक

एक बार बिहार में प्रवीण तोगड़िया ने हिंदुओं के खतरे में होने की बात कही थी. उनका कहना है कि संघ प्रमुख से बातचीत में भी चर्चा के बिंदु वे ही रहे, मैंने भागवत से कहा जब शिया और सुन्नी इस्लाम की रक्षा के लिए साथ आ सकते हैं, हम छोटे और बड़े संगठन जो एक जैसे काम कर रहे हैं, हिंदुत्व को बचाने के लिए साथ क्यों नहीं आ सकते.

देश से बाहर भी, भले ही वो पाकिस्तान हो, बांग्लादेश हो, अमेरिका हो, या फिर ब्रिटेन या कनाडा हिंदुओं की सुरक्षा संघ के लिए चिंता का विषय रही है, और दोनो नेताओं में इस बात पर सहमति बनी है कि विदेशों में रह रहे हिंदुओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कुछ करना जरूरी हो गया है.

यहां तक कि, रिपोर्ट बताती है, भारत में भी हिंदुओं की सुरक्षा संतोषजनक नहीं है. उदाहरण के लिए मणिपुर में, कश्मीर में भी.

जम्मू-कश्मीर में अभी अभी जनता की चुनी हुई सरकार बनी है, और केंद्र शासित प्रदेश के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने देश के संविधान की शपथ ली है.

प्रवीण तोगड़िया का सवाल है, धारा 370 को हटाये जाने के 5 साल बाद भी कश्मीरी पंडितों को फिर से वहां नहीं बसाया जा सका है.

संघ प्रमुूख से मुलाकात से पहले भी प्रवीण तोगड़िया कहते रहे हैं, आज भी सुरक्षा के तमाम दांवों के बीच भी कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की घर वापसी नहीं हो रही है… मणिपुर में बड़ी संख्या में हिंदू अब भी शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हैं… देश की बेटी नूपुर शर्मा अब भी अपने घर से बाहर नहीं निकल रही है.

मणिपुर का मुद्दा केंद्र की बीजेपी की कमजोर कड़ी के रूप में महसूस किया गया है. मणिपुर में फिलहाल बीजेपी की ही सरकार है. मणिपुर पर प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी हमलावर रहे हैं, और राम मंदिर उद्घाटन से ठीक पहले राहुल गांधी ने मणिपुर से ही अपनी न्याय यात्रा की शुरुआत की थी.

लोकसभा चुनाव में बीजेपी की फजीहत के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी मणिपुर के हालात पर चिंता जताई थी, जिसमें निशाने पर प्रधानमंत्री मोदी को ही माना गया था. प्रवीण तोगड़िया भी वैसी ही बातें कर रहे हैं.

क्या बदलते समीकरणों के दौर में प्रवीण तोगड़िया की वापसी होने जा रही है? वैसे संघ में तो बीजेपी की तरह कोई मार्गदर्शक मंडल है नहीं. संघ तो अपनी विचारधारा से जुड़े सभी संगठनों के साथ मिलकर काम करने को तैयार रहता है.

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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