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भारतीय रागों का वैज्ञानिक असर: दिमाग, दिल और सांसों पर दिखा हीलिंग प्रभाव

भोपाल 

भारतीय शास्त्रीय संगीत की आत्मिक ध्वनियां अब सिर्फ भावनाओं तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि उन्होंने विज्ञान की प्रयोगशाला में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है।

एम्स भोपाल के फिजियोलॉजी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. वरुण मल्होत्रा की समीक्षा आधारित स्टडी ने यह साबित किया है कि भारतीय क्लासिकल राग न सिर्फ मस्तिष्क को शांत और सक्रिय रखते हैं, बल्कि दिल को स्वस्थ, सांसों को संतुलित और तनाव को नियंत्रित करने की क्षमता भी रखते हैं।

अध्ययन में शामिल 28 शोधपत्रों और 6 विशेषज्ञों के सहयोग ने यह बताया कि संगीत, विशेष रूप से राग, हमारे शरीर में ऐसे हार्मोन सक्रिय करते हैं जो दर्द घटाते और मन को संतुलित रखते हैं। यह शोध रागों को केवल कला नहीं, बल्कि विज्ञान आधारित थेरेपी के रूप में सामने रखने का काम करता है।

दिल पर भी दिखते हैं बेहतर रिजल्ट

डॉ. मल्होत्रा बताते हैं कि संगीत सुनते समय दिल की धड़कन (हार्ट रेट) स्वाभाविक रूप से ऊपर–नीचे होती है। यह बदलाव दिल की “एक्सरसाइज” की तरह काम करता है। यदि पल्स लगातार एक समान रहे तो सडन कार्डियक अरेस्ट का खतरा बढ़ता है, लेकिन संगीत सुनने पर रिदमिक बदलाव दिल को मजबूत बनाते हैं।

राग से होने वाले असर

    तनाव घटता है
    फोकस बढ़ता है
    भावनात्मक संतुलन बनता है
    नशा छुड़ाने में मदद मिलती है
    न्यूरोलॉजिकल बीमारियों में रिकवरी तेज होती है

राग सिर्फ संगीत नहीं एक विज्ञान है

डॉ. वरुण मल्होत्रा बताते हैं कि राग की मूल परिभाषा ही यह है कि जो मन को आनंद के रंग से भर दे, वही राग है। हर राग का एक व्यक्तित्व होता है, एक प्रभाव होता है। कुछ राग मन को शांत करते हैं, कुछ ऊर्जा बढ़ाते हैं, जबकि कुछ दिमाग के गहरे हिस्सों को सक्रिय कर हीलिंग की प्रक्रिया तेज करते हैं।

राग के स्वर दिमाग के उन हिस्सों को सक्रिय करते हैं जो मूड, हॉर्मोन, याददाश्त, फोकस और दर्द नियंत्रण को संभालते हैं। स्वर कंपन (vibrations) ब्रेन सेल्स में माइक्रो-एक्टिवेशन करते हैं। राग सुनने से एंडॉर्फिन और एनकेफेलिन जैसे प्राकृतिक दर्द-निवारक हार्मोन एक्टिव होते हैं, जो शरीर में हीलिंग की गति तेज कर देते हैं।

एंडॉर्फिन है नैचुरल मूड-लिफ्टर

एंडॉर्फिन हमारे शरीर में बनने वाले प्राकृतिक हॉर्मोन हैं, जो दर्द, तनाव या टेंशन होने पर दिमाग से रिलीज होते हैं। इन्हें शरीर का “फील-गुड केमिकल” भी कहा जाता है, क्योंकि ये दर्द कम करते हैं, स्ट्रेस घटाते हैं और मूड को खुश रखते हैं।

जब आप एक्सरसाइज करते हैं, हंसते हैं, पसंदीदा खाना खाते हैं, सेक्स करते हैं या मसाज लेते हैं, तब एंडॉर्फ़िन बढ़ते हैं। यही वजह है कि ऐसी गतिविधियों के बाद मन हल्का और अच्छा महसूस होता है। शरीर को हेल्दी और मानसिक रूप से स्ट्रॉन्ग रखने में एंडॉर्फ़िन की बड़ी भूमिका होती है।

एनकेफेलिन दर्द भगाने वाला केमिकल

एनकेफेलिन एक प्राकृतिक न्यूरोपेप्टाइड है, जो हमारे दिमाग और नर्वस सिस्टम में बनता है। यह शरीर के अंदर ओपिओइड रिसेप्टर्स से जुड़कर दर्द कम करने में मदद करता है, इसलिए इसे नेचुरल एनाल्जेसिक यानी प्राकृतिक पेनकिलर कहा जाता है।

यह तनाव और भावनाओं को नियंत्रित रखने में भी मदद करता है, जिससे मन शांत रहता है। एनकेफेलिन पांच अमीनो एसिड से बना होता है और मुख्य रूप से ब्रेन में पाया जाता है। जब शरीर दर्द, चोट या तनाव महसूस करता है, तब एनकेफेलिन तुरंत सक्रिय होकर राहत देता है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)  न्यूरोसाइंस अध्ययन ने यह सिद्ध किया है कि भारतीय राग न केवल मन को छूते हैं, बल्कि मस्तिष्क की गहराई में भी स्पष्ट और मापनीय बदलाव उत्पन्न करते हैं।

यूएसए के फ्रंटियर्स इन ह्यूमन न्यूरोसाइंस में प्रकाशित इस शोध का नेतृत्व आईआईटी मंडी के निदेशक प्रो. लक्ष्मीधर बेहरा ने किया है। इसमें आईआईटी कानपुर के शोधार्थियों का भी सहयोग रहा। अध्ययन में आधुनिक ईईजी माइक्रोस्टेट विश्लेषण तकनीक का उपयोग कर 40 प्रतिभागियों के मस्तिष्क की प्रतिक्रिया को विश्लेषित किया गया।

यह तकनीक मस्तिष्क की बहुत ही सूक्ष्म और क्षणिक स्थितियों को रिकॉर्ड करती है, जिससे विज्ञानी यह समझ पाए कि कौन-से राग मस्तिष्क की किन गतिविधियों को सक्रिय या शांत करते हैं।

न्यूरो सर्जरी में भी बेहतर रिजल्ट न्यूरोसर्जरी विभाग के डॉ. अमित अग्रवाल की स्टडी में यह पाया गया कि सर्जरी के दौरान और बाद में म्यूजिक सुनने से मरीजों की रिकवरी बेहतर होती है। उनका फोकस, सहयोग और मानसिक स्थिरता बढ़ती है, जिससे उपचार तेज होता है।

मशीन बताती है दिमागी कितना सक्रिय? एम्स में एक विशेष रूसी तकनीक आधारित न्यूरो–चेक मशीन है, जिसकी कीमत लगभग ढाई लाख रुपए है। यह मशीन सिर्फ 5 मिनट में यह बता देती है कि व्यक्ति के दिमाग का कौन सा हिस्सा ज्यादा सक्रिय है, दैनिक ऊर्जा स्तर कब हाई या लो होता है और उसकी सांसों का पैटर्न कैसा है। निजी अस्पतालों में यही टेस्ट 25,000 रुपए तक में होता है, जबकि एम्स में यह मुफ्त है। संगीत सुनने से इस टेस्ट में दिल और दिमाग दोनों में सुधार दर्ज हुआ।

40 से 45 मिनट सुनना चाहिए

डॉ. मल्होत्रा कहते हैं कि राग बच्चों में ध्यान, भावनात्मक संतुलन और मानसिक विकास को तेज करते हैं। यह कला ही नहीं, एक वैज्ञानिक तरीका है, जो बच्चों को बेहतर जीवन, बेहतर करियर और बेहतर मानसिक स्वास्थ्य देता है। 40–45 मिनट सुनने पर नींद, बीपी और फोकस में सुधार आता है।

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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