RO.NO. 13207/103
राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

बांग्लादेश के मुसलमानों को मूल निवासी का दर्जा देने के लिए CM ने रखी शर्त

दिसपुर

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने प्रवासी बांग्लादेशी मूल के बंगाली भाषी मुसलमानों को राज्य का मूल निवासी बनने के लिए कुछ शर्तें रखी हैं. प्रवासी बांग्लादेश मूल के बंगाली भाषी मुसलमान को 'मिया' के नाम से जाना जाता है. सीएम ने उनके लिए विशिष्ट शर्तों की रूपरेखा तैयार की है. शनिवार को सरमा ने इस बात पर जोर दिया कि मूल निवासी माने जाने के लिए व्यक्तियों को असमिया समाज के कुछ सांस्कृतिक मानदंडों और प्रथाओं का पालन करना होगा.

सीएम ने तय की ये शर्तें
सीएम ने मूल निवासी बनने के लिए शर्तें रखी, जिनमें परिवार में दो बच्चे हों, बहुविवाह से बचना और नाबालिग बेटियों की शादी को रोकना शामिल है. मुख्यमंत्री ने कुछ समूहों द्वारा 'satras'(वैष्णव मठों) की भूमि पर अतिक्रमण पर चिंता व्यक्त करते हुए असमिया सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान करने के महत्व पर जोर दिया.

'मदरसों के बजाय स्कूल जाएं बच्चे'
मुख्यमंत्री ने शिक्षा की जरूरत पर भी जोर दिया और मुस्लिम समुदाय से मदरसों के बजाय चिकित्सा और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों पर ध्यान देने का आग्रह किया. उन्होंने बेटियों को शिक्षित करने और उन्हें पैतृक संपत्ति पर विरासत का अधिकार देने की बात कही.

वर्ष 2022 में असम कैबिनेट ने आधिकारिक तौर पर लगभग 40 लाख असमिया भाषी मुसलमानों को 'स्वदेशी असमिया मुसलमानों' के रूप में मान्यता दी. असमिया भाषी स्वदेशी मुस्लिम कुल मुस्लिम आबादी का लगभग 37% हैं. बाकी 63% प्रवासी बंगाली भाषी मुस्लिम हैं. कैबिनेट की मान्यता में पांच विशिष्ट समूह शामिल हैं, जिनमें गोरिया, मोरिया, जोलाह (केवल चाय बागानों में रहने वाले), देसी और सैयद (केवल असमिया भाषी) शामिल हैं.

ये सभी लोग भौगोलिक स्थिति के आधार पर पहचाने जा रहे हैं. जैसे मोरिया, जोलाह और गोरिया चाय बागानों के करीब बसी आबादी है. वहीं सैयद और देसी नीचे की तरफ बसे हुए हैं लेकिन ये कई पीढ़ियों से असमिया ही बोलते आए हैं. मौजूदा सरकार का मानना है कि ये लोग असम के मूल निवासियों में से हैं, और बांग्लादेश से इनका कोई संबंध नहीं.

माना जाता है कि ये समुदाय 13वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य इस्लाम में परिवर्तित हुए थे, और इनकी संस्कृति हिंदुओं से मिलती-जुलती है. ब्रिटिश काल में असम के पहले प्राइम मिनिस्टर सैयद मुहम्मद सादुल्ला उन्हें छोटा नागपुर से लेकर आए थे. ट्री गार्डन में काम करने वाले जोलाह हो गए, जबकि सूफी संतों को मानने वाले सैयद कहलाने लगे.

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

RO.NO. 13207/103

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button