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भारत ने फिलीपींस की संप्रभुता का समर्थन किया तो चीन को लग गई मिर्ची

नई दिल्ली
 भारत हमेशा 'जियो और जीने दो' की नीति में विश्वास करता रहा है। हम सिर्फ अपना फायदा नहीं देखते हैं बल्कि दूसरों के हितों का भी सम्मान करते हैं। ऐसे में किसी तीसरे को मिर्ची लगे तो लगे। भारत ने अब इसकी फिक्र करनी भी छोड़ दी है। तभी तो जब फिलीपींस की संप्रुभता की बात आई तो भारत बेधड़क उसके साथ खड़ा हो गया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ कहा कि फिलीपींस अपनी संप्रभुता की रक्षा करने के लिए जो भी कदम उठाता है, वो सराहनीय है। इस पर चीन तिलमिला उठा है। उसने भारत को 'तीसरा पक्ष' बताते हुए कहा कि हमारे विवादों में किसी को दखल देने का अधिकार नहीं है।

जयशंकर के बयान से चिढ़ा चीन

दरअसल, मामला दक्षिण चीन सागर (एससीएस) में चीन-फिलीपींस के बीच बढ़ते तनाव का है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर मंगलवार को फिलीपींस की राजधानी मनीला में थे। वहां उन्होंने अपने समकक्ष एनरिक मानलो के साथ बैठक के बाद फिलीपींस की संप्रभुता को बनाए रखने के प्रयासों का समर्थन किया। इस बैठक से एक दिन पहले फिलीपींस ने दक्षिण चीन सागर में चीन की 'आक्रामक कार्रवाइयों' के खिलाफ विरोध दर्ज कराने के लिए चीनी राजदूत को तलब किया था। चीन दक्षिण चीन सागर के लगभग 90 प्रतिशत हिस्से पर अपना दावा करता है। भारतीय विदेश मंत्री के फिलीपींस का समर्थन किए जाने से चीन इसलिए भी तिलमिला उठा क्योंकि पिछले हफ्ते अमेरिका ने भी फिलीपींस के वैध समुद्री अभियानों के खिलाफ चीन की 'खतरनाक' कार्रवाइयों की निंदा की थी।

जयशंकर ने चीन को याद दिलाई वो बात

जयशंकर ने नियम आधारित व्यवस्था के सख्त पालन का आह्वान किया और 'फिलीपींस को उसकी राष्ट्रीय संप्रभुता बनाए रखने के लिए भारत के समर्थन' को दोहराया। उन्होंने समुद्र के संविधान के रूप में यूएनसीएलओएस (संयुक्त राष्ट्र समुद्र विधि सम्मेलन), 1982 के महत्व बताते हुए सभी पक्षों से इसका अक्षरशः पालन करने की अपील की। चीन इस पर भी चिढ़ गया जबकि इस बार भारत और फिलीपींस के विदेश मंत्रियें ने जून 2023 में हुई बैठक के बाद दिया बयान नहीं दुहराया। उस वक्त तो फिलीपींस के साथ विवाद में चीन के विस्तारवादी दावों का जोरदार खंडन किया गया था। तब दोनों विदेश मंत्रियों ने चीन से 2016 के कानूनी रूप से बाध्यकारी फैसले का पालन करने की अपील की थी। वह पहला वक्त था जब भारत ने दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर चीन के खिलाफ फिलीपींस का साथ दिया था। यूएनसीएलओएस मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने न केवल बीजिंग की नौ डैश लाइन को बल्कि फिलीपींस के समुद्री क्षेत्र में उसकी गतिविधियों को अवैध बताया था।

जयशंकर ने की हिंद प्रशांत क्षेत्र की भी बात

जयशंकर ने कहा कि भारत अपने एक्ट ईस्ट पॉलिसी और हिंद प्रशांत क्षेत्र पर विशेष नजरिए के कारण इस इलाके में हरेक गतिविधि पर गहराई से नजर रखता है। उन्होंने कहा, 'हम आसियान के केंद्रीय महत्व, सदस्य देशों के बीच सामंजस्य और एकता के प्रबल समर्थक हैं। हमें पक्का यकीन है कि इस क्षेत्र की प्रति और समृद्धि नियम आधारित व्यवस्था के तहत ही सुनिश्चित होगी।' जयशंकर ने अपने फिलीपीनी समकक्ष मनालो को लाल सागर और अरब सागर में भारतीय नौसेना की तैनाती के बारे में भी जानकारी दी और उन्हें बताया कि कैसे समुद्र में सभी तरह के खतरों से निपटने की पूरी तैयारी है।

आखिर क्यों चिढ़ रहा चीन?

चीन को इन्हीं बातों से मिर्ची लग गई। उसके विदेश मंत्रालय ने कहा कि समुद्री विवाद संबंधित देशों के बीच के मुद्दे हैं और तीसरे पक्ष को किसी भी तरह से हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियां ने कहा, 'हम संबंधित पक्षों से आग्रह करते हैं कि वे दक्षिण चीन सागर मुद्दे पर तथ्यों और सच्चाई पर गौर करें और चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता और समुद्री अधिकारों और हितों एवं दक्षिण चीन सागर को शांतिपूर्ण और स्थिर रखने के लिए क्षेत्रीय देशों के प्रयासों का सम्मान करें।' चीन दक्षिण चीन सागर के अधिकांश हिस्से पर अपना दावा करता है जबकि फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई और ताइवान के अपने-अपने दावे हैं।

बढ़ रही है भारत-फिलीपींस की दोस्ती

ध्यान रहे कि पिछले कुछ वर्षों से भारत और फिलीपींस संबंधों में गरमाहट आ रही है। दोनों देशों के बीच खासकर रक्षा क्षेत्र में आपसी रिश्ते मजबूत हो रहे हैं। भारत ने मनीला को सस्ते दरों पर लोन ऑफर किया है। व्यापार, रक्षा और समुद्री सहयोग के अलावा दोनों देश स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, शिक्षा के साथ-साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में भी पारस्परिक सहयोग कर रहे हैं।

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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