राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

जापान का बुरा हाल, महंगाई हुई बेकाबू, चावल की कीमत ने तोड़ा 54 साल का रेकॉर्ड

टोक्यो
कभी अमेरिका की इकॉनमी के लिए मुश्किलें पैदा करने वाले जापान आज भारत से भी पिछड़ गया है। जापान को पछाड़कर भारत दुनिया की चौथी बड़ी इकॉनमी बन गया है। उधर जापान की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। देश में महंगाई ने कई साल का रेकॉर्ड तोड़ दिया है। अप्रैल में चावल की कीमत में पिछले साल की तुलना में 98.4% तेजी आई जो 1971 के बाद इसकी सबसे बड़ी मासिक उछाल है। मार्च में यह तेजी 92.1 फीसदी रही थी। इसी तरह एनर्जी की कीमत देश में 9.3% बढ़ गई। अप्रैल में देश में महंगाई 3.5% बढ़ी जो मार्च में 3.2 फीसदी बढ़ी थी। देश में लगातार पांचवें महीने महंगाई में तीन फीसदी से ज्यादा तेजी आई है।

इस बीच पहली तिमाही में जापान की इकॉनमी में 0.7% गिरावट आई। 2024 की पहली तिमाही के बाद जापान की इकॉनमी में पहली बार गिरावट आई है। चावल जापान का मुख्य आहार है। लेकिन हाल में इसमें काफी तेजी आई है। इसके कई कारण हैं। 2023 में खराब मौसम के कारण चावल की पैदावार प्रभावित हुई। इस बीच देश में रेकॉर्ड पर्यटकों के आने से चावल की डिमांड बढ़ी है। इस बीच सरकार ने आपूर्ति बढ़ाने के लिए चावल की खेप बाजार में जारी की लेकिन इसका कोई असर देखने को नहीं मिला।

जापान वर्सेज जर्मनी

कुछ साल पहले जापान को पछाड़कर जर्मनी दुनिया की तीसरी बड़ी इकॉनमी बना था। लेकिन दोनों देशों की इकॉनमी में एक अजीब विरोधाभास देखने को मिल रहा है। बैंक ऑफ जापान का पॉलिसी रेट अभी 0.50 परसेंट है और जापान का डेट-टु-जीडीपी रेश्यो 250% है। उधर यूरोप की सबसे बड़ी इकॉनमी जर्मनी का पॉलिसी रेट 2.25 फीसदी और डेट-टु-जीडीपी रेश्यो 62 फीसदी है। यानी जर्मनी की पॉलिसी रेट जापान से 4.5 गुना है जबकि डेट-टु-जीडीपी रेश्यो एक चौथाई है। दोनों देशों के 30 साल की मैच्योरिटी अवधि वाले सरकारी बॉन्ड्स पर यील्ड 3.1 फीसदी है।

1990 के दशक से पहले जापान की इकॉनमी रॉकेट की स्पीड से दौड़ रही थी और माना जा रहा था कि वह अमेरिका को पछाड़ देगा। लेकिन उसके बाद वह ऐसे गर्त में फंसी कि उसे बाहर निकलने में कई दशक लग गए। 25 साल से भी अधिक समय तक देश डिफ्लेशन में की स्थिति रही। हालात ऐसी हो गई है कि देश के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने हाल में कहा कि जापान की हालत ग्रीस से भी बदतर हो गई है। ग्रीस पिछले कई साल से आर्थिक संकट से जूझ रहा है।

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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