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छत्तीसगढ़दुर्ग-भिलाई

पत्रकारिता विभाग ने मनाया विश्व बाल श्रम निषेध दिवस

बाल श्रम बच्चों को स्कूल जाने के उनके अधिकार से वंचित करता है और गरीबी को पीढ़ीगत बनाता है

भिलाई-श्री शंकराचार्य प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी भिलाई में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग द्वारा विश्व बाल श्रम निषेध दिवस 2024 के थीम आइए अपनी प्रतिबद्धताओं पर कार्य करें: बाल श्रम को समाप्त करें” थीम के तहत मनाया गया. कार्यक्रम में वक्ता के रूप में प्रो. (डॉ.) ए.के. झा कुलपति श्री शंकराचार्य प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी भिलाई एवं प्रभारी कुलसचिव प्रो. (डॉ.) एस. सी. तिवारी रहें. विशिष्ट अतिथि के रूप प्रो. (डॉ.) स्वर्नाली दास पाल, डायरेक्टर, एसएससीपीएस भिलाई एवं डॉ. रवि श्रीवास्तव, डायरेक्टर रिसर्च की गरिमामई उपस्थिति रही.

इस अवसर पर कुलपति प्रो. झा ने अपने व्यक्तव्य में कहा कि सरकार को गरीब और कमज़ोर परिवारों को व्यापक सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिये ताकि उन्हें बाल श्रम का विवशतापूर्ण सहारा लेने से रोका जा सके। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 और संविधान के अनुच्छेद 21A के अनुरूप सभी बच्चों को 14 वर्ष की आयु तक निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्राप्त हो। उन्होंने कहा कि बच्चे स्कूलों में पढ़ने के लिये बने होते हैं, कार्यस्थलों में कार्य करने के लिये नहीं। बाल श्रम बच्चों को स्कूल जाने के उनके अधिकार से वंचित करता है और गरीबी को पीढ़ीगत बनाता है। बाल श्रम शिक्षा में एक प्रमुख बाधा के रूप में कार्य करता है, जो स्कूल में उपस्थिति और प्रदर्शन दोनों को प्रभावित करता है। कुलसचिव डॉ. एस. सी. तिवारी ने अपने उद्बोधन में कहा कि यदि कोई व्यक्ति अथवा नियोक्ता अपने अथवा किसी अन्य के घरेलू कार्यों को पूरा करने के लिये बच्चों को काम पर रखता है, ऐसे में इसे आम तौर पर घरेलू बाल श्रम कहा जाता है। घरेलू कार्य में बाल श्रम से तात्पर्य उन स्थितियों से है जहाँ घरेलू काम के लिये निर्दिष्ट न्यूनतम आयु से कम उम्र के बच्चे खतरनाक परिस्थितियों अथवा वातावरण में काम करते है।

विशिष्ट अतिथि प्रो. स्वर्नाली दास पाल ने कहा कि भारत में घरेलू काम में बाल श्रम की वृद्धि के पीछे परिवारों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति, वयस्क श्रमिकों को पर्याप्त मज़दूरी सुनिश्चित करने वाली प्रभावी नीतियों की कमी और परिवार की आय के पूरक हेतु निर्धन परिवारों के बच्चों पर पड़ने वाला बोझ शामिल है। इस स्थिति के कारण अक्सर बच्चों को न्यूनतम वेतन दिया जाता है और उन्हें उनकी शारीरिक एवं मानसिक क्षमता से अधिक कार्य करने के लिये मजबूर किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप 24×7 घरेलू नौकर रोज़गार के रूप में गुलामी का एक व्यवस्थित जाल बन जाता है। उक्त कार्यक्रम डॉ. नरेश कुमार साहू के संयोजन एवं विभागीय प्राध्यापकों के सह-संयोजन में आयोजित किया गया। इस अवसर पर विद्यार्थियों एवं प्राध्यापकों कि गरिमामई उपस्थिति रहीं।

Dinesh Purwar

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